बंगाल में डर के साये में जी रहे हैं आदिवासी: चुनाव के बाद हिंसा पर TMC सरकार को NCST की लताड़

NCST ने किया बंगाल का दौरा, सबमिट की रिपोर्ट

पश्चिम बंगाल में चुनावी नतीजे आने के बाद राज्य में हुई हिंसा पर मानवाधिकार आयोग (NHRC) के अलावा राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने भी प्रदेश का जुलाई में दौरा किया और अपने निष्कर्षों की 11 पेज की रिपोर्ट राज्य के चीफ सेक्रेट्री और डीजीपी के पास दाखिल की। इससे पहले NHRC ने अपनी रिपोर्ट में टीएमसी नेताओं को गुंडा कहा था। साथ ही मामले में सीबीआई जाँच की माँग की थी।

रिपोर्ट में आयोग ने बताया कि उन्हें इस बात के सबूत मिले हैं कि टीएमसी कार्यकर्ताओं ने चुनाव में जीत के बाद हिंदुओं के घरों को निशाना बनाकर लगातार हिंसा की। आयोग ने कहा कि अनुसूचित जनजाति समुदाय राज्य में चुनाव के बाद से डर में जी रहा है। वह पुलिस के समक्ष या रेवेन्यू अधिकारियों के पास शिकायत भी नहीं कर पा रहे हैं।

राज्य भर में हिंसा, आगजनी, तोड़फोड़, जातिगत भेदभाव के मामले उजागर हुए: NCST

मिदनापुर जिले में आयोग ने पाया कि मुंडा जनजाति के लोगों को हिंसक भीड़ ने निशाना बनाया और उन्हें उनके घर में घुसे रहने को इतना मजबूर किया कि वह बाजारों में अपनी कृषि उपज बेचने भी नहीं जा पाए। रिपोर्ट में शारीरिक हमले और जातिगत भेदभाव के अपराधों पर ध्यान दिलाया गया।

आयोग के मुताबिक ऐसे कई आदिवासी मिले जिन्होंने कहा कि उनके वाहन को सड़कों पर चलाने की अनुमति तक नहीं दी गई। वहीं अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को समाज के कुछ वर्गों से बहिष्कार का सामना करना पड़ा जिससे उन्हें कोरोना काल में आर्थिक संकट से जूझना पड़ा।

इसी प्रकार अन्य जगहों पर जहाँ टीमें गई उन्होंने पाया कि स्थानीय आदिवासी लोगों पर हमले हुए और उन्हें टीएमसी ने जीत के बाद प्रताड़ित किया। आयोग ने यह भी कहा कि राजनीतिक हत्याओं पर कोई रिपोर्ट नहीं हुई क्योंकि स्थानीय पुलिस ने आरोपितों के विरुद्ध कार्रवाई करने से मना कर दिया।

झरगाम जिले में संतल जनजाति का एक व्यक्ति संदिग्ध परिस्थितयों में मृत मिला। उसके घरवालों ने भी कहा कि ये हत्या है लेकिन पुलिस ने उस पूरे केस को ही सड़क दुर्घटना की तरह लिया। जब आयोग ने उसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट जाँची तो पता चला कि उसके सिर पर दोनों तरफ पत्थरों और किसी अन्य चीज से मारा गया था।

हुगली में भी संतल जनजाति पर कई तरह के अत्याचार रिपोर्ट किए गए। वहाँ 25 संतल जनजाति वाले परिवारों पर हमला हुआ, जहाँ उनको उनके घरों में घुसे रहने को मजबूर किया गया, साथ ही महिलाओं पर भी अटैक हुए।

पूर्वी वर्धमान जिले में NCST टीम ने स्थानीय लोगों से मुलाकात की। कुछ ने बताया कि हिंसक भीड़ ने उनके घरों को नतीजे आने के बाद फूँक डाला। इसके अलावा क्षेत्र में अत्याचार, बलात्कार की भी घटनाएँ हुईं। लोगों ने आयोग को कहा कि आरोपितों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं हुई जबकि आरोपित जाने पहचाने थे।

नॉर्थ 24 परगना जिले के कई इलाकों में भी चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामले आए। इन जिलों में महतो, मुंडा, बेडिया और उरांव समुदाय के लोगों के साथ हिंसा हुई। कहीं जरूरी सामान की लूटपात हुई, कहीं घरों और दुकानों को नष्ट कर दिया गया और कहीं-कहीं सोने की चेन, साइकल, किचन के सामानो की चोरी के मामले भी आए। टीम ने अपनी जाँच में पाया कि यहाँ भी किसी प्रकार की शिकायत पुलिस ने दर्ज करने से मना कर दी और उलटा स्थानीयों को धमकाया। आयोग ने पाया कि जिन लोगों ने उन्हें आपबीती सुनाई उनके साथ भी मारपीट हुई। उन्हें टीम से न मिलने के लिए धमकाया गया और मोबाइल फोन जबरन लेकर स्विच ऑफ किया गया।

NCST की माँग

राज्य में ऐसे कुप्रबंधन और कानून-व्यवस्था की चरमराई स्थिति को देखकर एनसीएसटी आयोग ने उन अधिकारियों के लिए जवाबदेही तय करने की सिफारिश की है जो या तो संबंधित समय पर ड्यूटी थे या फिर उस स्टेशन के प्रभारी थे, जिन्होंने हिंसा रोकने में कोई कार्रवाई नहीं की। इसमें यह भी कहा गया कि आदिवासियों के जहन में आत्मविश्वास जगाने के लिए सारी शिकायतों को स्वतंत्र एजेंसियों को ट्रांस्फर किया जाना चाहिए।

आयोग ने प्रभावित इलाकों में पैरामिलिट्री फोर्स तैनात करने की माँग की है क्योंकि स्थानीय लोग पुलिस पर से अपना विश्वास खो चुके हैं। इसके अलावा माना जा रहा है कि आयोग ने जनजातीय लोगों की बुनियादी सुविधाओं को बढ़ाने की माँग की है ताकि वे सम्मानजन जीवन जी सकें। आयोग ने मामले में जाँच हेतु एसआईटी के गठन की माँग की है। साथ ही राज्य द्वारा सीधे लाभार्थी के खाते में उचित मुआवजा प्रदान करने और आगजनी और तोड़फोड़ के कारण अपने घरों को खोने वाले आदिवासी लोगों के पुनर्वास को भी कहा है।

NHRC ने कलकत्ता HC में सौंपी रिपोर्ट

उल्लेखनीय है कि NCST से पहले NHRC ने इस मामले पर अपनी जाँच के बाद रिपोर्ट कलकत्ता हाई कोर्ट में दी थी। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि राज्य में ‘कानून का शासन’ नहीं बल्कि ‘शासक का कानून’ है। NHRC की इस रिपोर्ट में राज्य प्रशासन की कड़ी आलोचना की गई थी और कहा गया था कि राज्य प्रशासन ने जनता में अपना विश्वास खो दिया है।

NHRC की 7 सदस्यीय टीम ने 20 दिन में 311 से अधिक जगहों का मुआयना करने के बाद राज्य में चुनाव के बाद हुई हिंसा पर अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट में हिंसा की जाँच सीबीआई से कराने की सिफारिश की थी। इसके अलावा, यह भी कहा गया था कि मामलों की सुनवाई राज्य के बाहर फास्ट ट्रैक अदालत गठित कर हो। रिपोर्ट में पीड़ितों की आर्थिक सहायता के साथ पुनर्वास, सुरक्षा और आजीविका की व्यवस्था करने को कहा गया था।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया