रामायण में कहीं भी जन्मस्थान का जिक्र नहीं, 1949 से शुरू हुई पूजा: सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्षकार

मुस्लिम पक्षकार ज़फ़रयाब जिलानी ने SC में कहा कि वाल्मीकि कृत रामायण में जन्मस्थान का जिक्र नहीं

राम मंदिर मामले में जब से नियमित सुनवाई की शुरुआत हुई, तब से अब तक लगभग एक महीने की सुनवाई पूरी हो चुकी है। आज सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष ने अपनी दलीलें रखी। मुस्लिम पक्ष की तरफ से जिरह करते हुए वकील ज़फ़रयाब जिलानी ने महर्षि वाल्मीकि की रामायण और तुलसीदास रचित रामचरितमानस का जिक्र करते हुए कहा कि हिन्दुओं की आस्था इन्हीं दोनों पुस्तकों पर आधारित है लेकिन इन दोनों ही पुस्तकों में कहीं भी जन्मभूमि मंदिर के बारे में कुछ नहीं कहा गया है।

जिलानी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि 1949 से पहले मुख्य गुम्बद के नीचे पूजा होने का कोई साक्ष्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने जिलानी से पलट कर सवाल पुछा कि अगर इन दोनों पुस्तकों में जन्मस्थान मंदिर का जिक्र नहीं है तो इससे हिन्दुओं की आस्था पर क्या फ़र्क़ पड़ता है? जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि अगर रामायण और रामचरितमानस में जन्मस्थान मंदिर के सटीक लोकेशन के बारे में कुछ नहीं कहा है तो क्या हिन्दू आस्था नहीं रख सकते कि ये जगह जन्मस्थान है?

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जिलानी ने जस्टिस चंद्रचूड़ के सवाल का जवाब देते हुए दावा किया कि जन्मस्थान अयोध्या में ही है लेकिन विवादित स्थल पर नहीं है, कहीं और है। इससे पहले मुस्लिम पक्षकार राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि पूरे अयोध्या को ही जन्मस्थान माना जाता है और इसके बारे में कोई सटीक स्थान का जिक्र नहीं है। राजीव धवन ने उदाहरण देते हुए कहा कि भारत में मंदिर और पूजा को लेकर तरह-तरह की मान्यताएँ हैं; जैसे, कामाख्या देवी और सती के अंग जहाँ-जहाँ गिरे, वहाँ मंदिर बनाया गया।

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जस्टिस बोबडे ने राजीव धवन को याद दिलाया कि ऐसा एक मंदिर पाकिस्तान में भी है। राजीव धवन ने कहा कि अयोध्या में रेलिंग के पास जाकर पूजा होती थी तो उसे मंदिर नहीं माना जाना चाहिए। धवन ने दावा किया कि भगवान राम की मूर्ति गर्भगृह में नहीं थी। उन्होंने कहा कि मूर्ति गर्भगृह में कैसे गई, इस बारे में उन्हें कुछ नहीं पता।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया