बीमार पिता जो उठ-बैठ नहीं सकते, कुँवारी बहन और टूटा-फूटा घर: कर्ज में डूबा एक किसान परिवार हरिओम मिश्रा का भी

हरिओम मिश्रा की माँ (बाएँ), बीमार वृद्ध पिता (दाएँ)

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा में जो लोग मारे गए, उनमें से एक हरिओम मिश्रा भी है। पेशे से ड्राइवर हरिओम मिश्रा भाजपा के कार्यकर्ता भी थे। वो काफी गरीब घर से आते थे और उनके जाने के बाद अब परिवार बेसहारा हो गया है। उनका एक टूटा-फूटा सा घर है। उनके वृद्ध पिता की तबीयत काफी खराब रहती है। घाव व अन्य बीमारियों की वजह से उनका पाँव भी सीधा नहीं हो पाता।

गरीबी से जूझ रहा लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए हरिओम मिश्रा का परिवार

हरिओम मिश्रा के घर का वीडियो देखने पर पता चलता है कि उसमें उनके वृद्ध पिता लेटे रहते हैं और उनके लिए एक विशेष लकड़ी की कुर्सी बनवाई गई है, जिस पर बैठा कर उन्हें स्नान व शौच करवाया जाता है। उनकी शारीरिक स्थिति काफी दयनीय है। कुछ ही दिनों पहले हरिओम मिश्रा अपने बीमार पिता के लिए एक गद्दा लेकर आए थे, जिस पर उन्हें लिटाया जाता था। दो कमरों वाले टूटे-फूटे और अस्त-व्यस्त इस घर में हरिओम मिश्रा की माँ भी रहती हैं।

हाँ, एक गाय ज़रूर है जिसे घर में ही रखा जाता है और उसकी सेवा-सुश्रुवा की जाती है। हरिओम मिश्रा के भाई ने अपने घर की इस दयनीय हालत पर वीडियो बनाया है। घर में पानी के लिए चापाकल है, नल की सुविधा नहीं है। मृतक के भाई ने बताया कि नेता लोग भी उनसे अब तक मिलने नहीं आए हैं, जबकि वो लोग भी तो किसान हैं। उन्होंने बताया कि भाजपा के कुछ नेता ज़रूर वहाँ आए हैं।

उनकी एक कुँवारी बहन भी हैं, जिनकी शादी में बड़ा खर्च है। हरिओम मिश्रा की माँ ने बताया कि वो उनकी और अपने पिता की खूब चिंता करते थे और दवाइयों का ख्याल रखते थे। उन्होंने बताया कि जब हिंसा की खबर आई तो वो भगवान से प्रार्थना कर रही थीं कि उनका बेटा कुशल वापस आ जाए, लेकिन अगले दिन उनकी लाश आई। उन्होंने बताया कि वो लोग छोटे किसान हैं, जिनकी रोजी-रोटी कोटा में मिलने वाले राशन से चलती है।

गरीबी और बेटे के जाने का गम: हरिओम मिश्रा की माँ का छलका दर्द

उन्होंने बताया कि हरिओम मिश्रा घर का सारा कामकाज खुद चलाते थे और बाकी लोगों को पता भी नहीं था कि वो किस तरह कमा कर कैसे सब कुछ चलाते थे। उनकी माँ ने बताया कि हरिओम मिश्रा के पिता को काफी देखभाल की ज़रूरत है और इसके लिए पैसा तक नहीं है। उन्होंने कहा कि पूरा परिवार यही सोच रहा है कि अब गुजारा कैसे होगा। उन्होंने बताया कि अपने बेटे को भी उन्होंने काफी गरीबी में पाला है।

पीड़ित माँ ने बताया कि बचपन में उनके बेटे के पास खाने के लिए रोटी तक नहीं होती थी और दूध भी नहीं होता था, जिससे वो काई कमजोर हो गए थे। हरिओम मिश्रा के वृद्ध पिता को होश नहीं है और उन्हें पता तक नहीं है कि उनके बेटे की मौत हो चुकी है। उन्होंने कहा कि उनका बेटा ‘श्रवण कुमार’ की तरह था, जो अब दुनिया से चला गया। अपने पिता की सेवा करने के लिए उन्होंने 25,000 रुपए की नौकरी भी छोड़ दी थी।

परिजनों का कहना है कि किसी तरह कर्ज लेकर वो इस घर को चला रहे थे। कृषि के अलावा कुछ सहारा नहीं था। उन्होंने कहा कि उनके बेटे को कैसे मारा गया, ये भी अब तक नहीं बताया गया है। गाँव में उनका किसी से न कोई लड़ाई-झगड़ा था। वो कहते थे कि वो किसी पार्टी के समर्थक नहीं, बल्कि जहाँ थोड़े-बहुत पैसे की कमाई हो जाती है वहाँ रहते हैं। गाँव के बच्चे भी उन्हें खोजते हुए आते थे।

हरिओम मिश्रा की माँ ने बताया कि उनके बेटे अपने कपड़े भी खुद ही साफ़ कर लेते थे और उन पर काम का बोझ नहीं देते थे। उनकी चिंता ये है कि अब कर्ज कैसे चुकाया जाएगा। साथ ही उनके पिता के इलाज में भी काफी खर्च है। कई जगह उन्हें दिखाने भी ले जाया गया था। हरिओम मिश्रा ही अपने पिता को शौच करवाया करते थे, वो खुद से उठ-बैठ नहीं सकते। उनकी मौत के बाद से पिता का इलाज भी बंद है।

‘क्या हम किसान नहीं हैं?’ – हरिओम मिश्रा के परिवार का सवाल

हरिओम मिश्रा की माँ ने बताया कि उनके बेटे हमेशा उन्हें दिलासा देते थे और उनके खाने-पीने को लेकर भी सजग रहते थे। साथ ही वो अपनी बहन के लिए लड़का भी देख रहे थे। हरिओम मिश्रा की माँ ने पूछा कि क्या सिर्फ भाला-बरछी लेकर मारने वाले ही किसान हैं, हम किसान नहीं हैं? उन्होंने कहा कि न सपा वाले आए हैं न ही राहुल गाँधी उनसे मिलने आए। उन्होंने पूछा कि हम खेत में काम करते हैं, तो क्या हम किसान नहीं हैं?

उनका दुःख इस बात को लेकर छलका कि हिंसा करने वालों के परिवार को डेढ़-डेढ़ करोड़ रुपए मिल रहे हैं और उन्हें कोई अब तक पूछने तक नहीं आया, लेकिन वोट माँगने सब आते हैं। उन्होंने कहा कि उनका बेटा तो मजदूर था। उन्होंने कहा कि किसान को हथियार की क्या जरूरत है, उसके पास तो कुदाल और हसिया होता है, तलवार-भाला नहीं। उन्होंने कहा कि उनके घर में कोई हथियार नहीं है।

उन्होंने कहा, “क्या सिर्फ सिख और सरदार ही किसान होते हैं? ब्राह्मण मर जाए, फिर भी उसे कुछ नहीं मिलता। ये लोग ब्राह्मण समाज को नष्ट कर देना चाहते हैं। कुछ तो हमारी फ़िक्र करो। हम तो मेहनत कर के चार पैसे कमाने वाले लोग हैं, ताकि बच्चों को खाना मिल सके। हम भगवान के सहारे हैं। बेटा चला गया, पति बीमार हैं, एक बेटी अस्पताल में है। हमारी सहायता के लिए कोई नहीं है।”

(ये रिपोर्ट हमारे लिए आदित्य ने कवर की है।)

Aditya Raj Bhardwaj: I play computer games take photos and ride big bikes.