हंगामे में आगे, जाँच में पीछे… ‘पेगासस’ पर सुप्रीम कोर्ट को दिए गए सिर्फ 2 फोन, जाँच में आगे नहीं आ रहे हल्ला मचाने वाले

'पेगासस' पर हल्ला मचाने वाले जाँच के समय गायब हैं (प्रतीकात्मक फोटो साभार: लाइव हिंदुस्तान)

‘पेगासस’ स्पाईवेयर का नाम ले-ले कर मोदी सरकार को बदनाम करने वाले सुप्रीम कोर्ट की जाँच में सहयोग नहीं कर रहे हैं। इजरायली कंपनी NSO के इस सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल के आरोपों की जाँच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक कमिटी बनाई थी, लेकिन अब तक इस कमिटी के सामने मात्र 2 मोबाइल फोन्स ही सबमिट किए गए हैं, जबकि कई नेताओं और पत्रकारों ने खुद के ट्रैक किए जाने को लेकर सोशल मीडिया पर हंगामा मचाया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (3 फरवरी, 2022) को इसकी समयसीमा 8 फरवरी तक बढ़ा दी है।

जिन लोगों को आशंका है कि उनके मोबाइल फोन को ‘पेगासस’ के जरिए निशाना बनाया गया है, उन्हें जाँच समिति के समक्ष पेश होने और अपना मोबाइल फोन सबमिट करने के लिए कहा गया है। लेकिन, जाँच में सहयोग को ये नेता-पत्रकार तैयार ही नहीं हैं। जाँच समिति इन उपकरणों के डिजिटल इमेज लेकर उसकी जाँच करेगी। इससे पहले इसी साल 2 जनवरी को नोटिस जारी कर के ऐसे लोगों को आगे आने के लिए कहा गया था। तकनीकी समिति के पास पेश हो कर इन लोगों को बताना था कि उन्हें ऐसा क्यों लगता है कि उनके फोन को निशाना बनाया गया है।

साथ ही उनसे ये भी पूछा जाना था कि क्या वो अपने डिवाइस की जाँच सुप्रीम कोर्ट की कमिटी को करने देंगे? तीन सदस्यीय कमिटी ने कहा था कि ज़रूरत पड़ने पर डिवाइस को सबमिट करने का निवेदन भी किया जाएगा। अब नए नोटिस में कहा गया है कि डिवाइस का ‘डिजिटल इमेज’ लिया जाएगा। जिस व्यक्ति का वो मोबाइल फोन होगा, उसके सामने ही ये प्रक्रिया पूरी की जाएगी। साथ ही तुरंत ही उस मोबाइल फोन को उस व्यक्ति को लौटा भी दिया जाएगा।

इसके बाद उस ‘डिजिटल इमेज कॉपी’ की जाँच की जाएगी। 30 नवंबर, 2021 को भी समिति ने तकनीकी जाँच के लिए मोबाइल फोन्स दिखाने को कहा था। इस समिति के सदस्य नवीन कुमार चौधरी भी हैं, जो गुजरात के गाँधीनगर स्थित ‘नेशनल फॉरेंसिक साइंसेज यूनिवर्सिटी’ के डीन हैं। उनके अलावा केरल स्थित ‘स्मृता विश्व विद्यापीठ’ के प्रोफेसर डॉक्टर प्रभाकरन पी और IIT बॉम्बे के ‘इंस्टिट्यूट चेयर एसोसिएट प्रोफेसर’ डॉक्टर आश्विन अनिल गुमाश्ते भी इस कमिटी के सदस्य हैं।

कॉन्ग्रेस पार्टी और उसके समर्थकों ने तो यहाँ तक दावा किया था कि सिर्फ नेता, पत्रकार और एक्टिविस्ट्स ही नहीं, बल्कि कई केंद्रीय मंत्रियों के मोबाइल फोन्स पर भी ‘पेगासस’ के जरिए निगरानी रखी जा रही है। 27 अक्टूबर को CJI एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने जस्टिस रवीन्द्रन की निगरानी में इस कमिटी के गठन की घोषणा की थी। कमिटी को काम सौंपा गया कि वो मोबाइल फोन्स की जाँच कर के बताए कि क्या उनमें चैट्स को पढ़ने, सूचनाएँ इकट्ठा करने और डेटा लेने के लिए ‘पेगासस’ का इस्तेमाल किया गया था।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया