राम मंदिर के लिए सारे जेवर देना चाहती थीं 54 वर्षीय आशा कंवर, मृत्यु के बाद पति ने समर्पित कर दिए

श्रीराम मंदिर के लिए सारे गहने देने वाली आशा कंवर (साभार: दैनिक भास्कर)

अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण से पहले देश भर में निधि जुटाने निकले कार्यकर्ताओं को तमाम ऐसे रामभक्त मिल रहे हैं, जिनकी आस्था किसी को भी भावुक कर दे। राजस्थान के जोधपुर से एक मामला आया है जहाँ एक पति ने रुंधे गले के साथ अपनी पत्नी के सारे जेवर प्रभु श्रीराम के मंदिर निर्माण के लिए समर्पित कर दिए। पति ने निधि जुटा रहे दल को 4 फरवरी को फोन करके बताया कि उनकी पत्नी की आखिरी इच्छा थी कि सारे जेवर राम मंदिर निर्माण में दिए जाएँ, इसलिए वह लोग आकर ले जाएँ।

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, 4 फरवरी को कॉल करने वाले ने दल के सदस्यों से कहा, “श्रीमान, मैं विजयसिंह गौड़ बोल रहा हूँ। मेरी पत्नी आशा कंवर राम मंदिर के लिए अपने सारे जेवर भेंट करना चाहती थीं। आज वो हमें छोड़कर चली गई। उनकी क्रियाक्रम से पहले कृपया आप लोग आइए और उनकी अंतिम इच्छा के तौर पर सारे गहने प्रभु के लिए ले जाइए।”

घटना जोधपुर के सूरसागर भूरटिया का है। यहाँ आशा कंवर नाम की महिला ने 1 फरवरी को अपने पति और बेटे मनोहर सिंह के अपने जेवर मंदिर निर्माण के लिए समर्पित करने की इच्छा जताई थी। पति और बेटे ने इससे रजामंदी जताते हुए उन्हें भरोसा दिलाया कि वे जल्द पता करेंगे कि कैसे ये गहने मंदिर के लिए दिए जाएँ।

आशा के गहनों में आड़, कानों के झुमके, शीशफूल, हाथ की नोगरी, गले की चेन, दो जोड़ी टॉप्स, एक जोड़ी अँगूठी, एक बोर, कान की बालियाँ, एक कंठी शामिल थी।

बता दें कि 1 फरवरी को पति-पुत्र के सामने राम मंदिर के लिए दान देने की इच्छा प्रकट करने वाली आशा कंवर कोरोना से संक्रमित हो चुकी थीं। 3 फरवरी को रूटीन चेकअप के लिए जब अस्पताल गईं तो फेफड़ों का संक्रमण बता उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया। अगले दिन सुबह 9 बजे उनकी मृत्यु हो गई। दाह संस्कार के बाद परिवार के लोगों ने आशा की अंतिम इच्छा को पूरा करने का संकल्प लिया और अंतत: उनके गहने समपर्ण निधि अभियान के कार्यकर्ताओं को सौंप दिए।

गहने सौंपते हुए आशा कंवर के सभी परिजनों की आँख में आँसू थे। वहीं समर्पण निधि अभियान चलाने वाले भी ऐसी आस्था देख हैरान थे। घरवालों ने बताया कि मृत्यु से कुछ दिन पहले उन्होंने आत्मकथा लिखना शुरू किया था। इसमें उन्होंने विवाह से लकर अपने मायके व ससुराल पक्ष से मिले प्रेम का उल्लेख किया था। अपनी आत्मकथा में उन्होंने प्रभु श्रीराम और रामायण के प्रति लगाव जाहिर किया था। हालाँकि, इसे पूरा कर पाने का समय नियति ने आशा को नहीं दिया और वह मात्र 54 साल की उम्र में परिवार को अलविदा कह गईं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया