वराह, कमल, विक्रमादित्य, हाथी: राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट में फॅंसीं बाबरी मस्जिद की पैरोकार

खुदाई में वराह सहित कई ऐसी मूर्तियों की चर्चा है, जिन्हें हिन्दू धर्म में इस्तेमाल किया जाता है

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई के दौरान ऐसे कई मौके आए हैं, जब मुस्लिम पक्ष के वकील अपनी ही दलीलों में उलझते नजर आए। खासकर, अयोध्या में खुदाई पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट को लेकर।

मुस्लिम पक्ष की ओर से दलीलें रख रहीं वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने कोर्ट में कहा कि विक्रमादित्य सुंग वंश के थे। इसके बाद जस्टिस अशोक भूषण ने उन्हें याद दिलाया कि वह गुप्त वंश के थे। अरोड़ा ये बोल कर फँस गईं कि उस स्थल पर खुदाई के बाद हाथी की मूर्तियों के मिलने से यह नहीं कहा जा सकता कि वहाँ मंदिर ही था। बता दें कि हिन्दू संस्कृति में हाथी के पूजा का सिद्धांत रहा है। भगवान गणेश को गजानन भी कहते हैं। इंद्र का वाहन भी हाथी ही है। अरोड़ा ने हाथी की मूर्तियों के खिलौना होने की बात कही।

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इसके बाद जजों ने उनसे कमल के निशान को लेकर सवाल पूछा। जजों ने अरोड़ा से पूछा कि क्या मस्जिदों में भी कमल के निशान होते हैं? इस पर साफ़-साफ़ जवाब न दे पाने वाली अरोड़ा ने ये कह कर पल्ला छुड़ाने की कोशिश की कि ऐसा हो सकता है। हालाँकि, पीठ के अन्य जजों ने जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर से ये बात जाननी चाही। जस्टिस नजीर ने साफ़-साफ़ कह दिया कि उनकी जानकारी में कहीं ऐसा नहीं है कि मस्जिदों में कमल के निशान हो। मीनाक्षी अरोड़ा ने दावा किया कि कमल किसी भी धर्म का प्रतीक चिह्न रहा हो सकता है- हिन्दू, मुस्लिम, जैन, बौद्ध या मुस्लिम।

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मीनाक्षी अरोड़ा अदालत में इतनी कन्फ्यूज्ड नजर आईं कि उन्होंने अष्टकोणों को भी हिन्दू धर्म का मानने से इनकार कर दिया। जजों को उन्हें याद दिलाना पड़ा कि अष्टकोण का सिद्धांत हिन्दू धर्म में ही रहा है। जस्टिस एसए बोबडे ने इस दौरान वराह की मूर्ति को लेकर भी सवाल किया। उन्होंने कहा कि एएसआई की रिपोर्ट में वराह का भी जिक्र है, जिसके बारे में हिन्दू धर्म-ग्रंथों में भी चर्चा है। उन्होंने कहा कि वराह तो मस्जिद में नहीं हो सकता। मीनाक्षी अरोड़ा एक बार फिर से बगले झाँकती हुई नज़र आईं। इसी तरह एएसआई की पूरी रिपोर्ट को ही त्रुटिपूर्ण करार देने के चक्कर में उन्होंने कई और गलतियाँ की।

मीनाक्षी अरोड़ा ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि पुरातत्व कोई फिजिक्स या केमिस्ट्री जैसा विज्ञान नहीं है, यह सामाजिक विज्ञान है। अरोड़ा ने कहा था कि कार्बन डेटिंग जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं किया गया। अरोड़ा ने कहा कि चूँकि, आर्कियोलॉजी एक नेचुरल साइंस नहीं है, इसके रिपोर्ट्स में यथार्थता नहीं है। उन्होंने दावा किया था कि पुरातत्व ने अभी तक ऐसा कोई निष्कर्ष नहीं दिया है, जिसे वेरीफाई किया जा सके।

गौरतलब है कि मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली संविधान पीठ मामले की रोजाना सुनवाई कर रही है। पीठ में जस्टिस एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस अब्दुल नज़ीर शामिल हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया