‘पिछड़े समाज की तरह ट्रीट किए जाएँ ट्रांसजेंडर’: आरक्षण की माँग के बाद सरकार को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस, कभी कहा था – राष्ट्रपति तय करेंगे कौन पिछड़ा

सुप्रीम कोर्ट (फोटो साभार: Bar And Bench)

देश में हर उस समाज के उत्थान के लिए प्रयास होना चाहिए, जो आर्थिक या सामाजिक रूप से पिछड़े हुए हैं। इसके लिए भारत के संविधान के कुछ नियम तय कर रखे हैं, राज्य और केंद्र सरकारें समय-समय पर तय करती हैं कि किन्हें ‘बैकवर्ड’ या पिछड़े समाज में सम्मिलित किया जाएगा। कभी-कभी मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर राजनीति करने के लिए उन्हें भी आरक्षण दिए जाने की घोषणाएँ होती रही हैं। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने तय कर रखा है की 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण की सीमा पार नहीं करनी चाहिए।

हालाँकि, विशेष परिस्थितियों में इसे बढ़ाया जाता रहा है। कई राज्य ऐसे हैं, जिन्होंने इस सीमा का उल्लंघन करते हुए कानून बनाए हैं। अब सुप्रीम कोर्ट का ताज़ा फैसला आया है। ट्रांसजेंडर समुदाय को आरक्षण देने के संबंध में केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया गया है। सार्वजनिक नौकरियों में ट्रांसजेंडर समुदाय को आरक्षण दिए जाने के लिए दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को भी नोटिस जारी किया है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश DY चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पार्दीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सुबि KV नामक ट्रांसजेंडर व्यक्ति की याचिका पर शुक्रवार (25 अगस्त, 2023) को सुनवाई की। इस याचिका में 2014 के एक जजमेंट का हवाला देते हुए ये माँग की। बता दें कि उस दौरान ‘NALSA बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2014) 5 SCC 438’ जजमेंट में कहा गया था, “हम केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश देते हैं कि वो ट्रांसजेंडर समुदाय को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा समाज माने।”

इस जजमेंट में ये भी कहा गया था कि शैक्षणिक संस्थानों और सार्वजनिक संस्थानों में उन्हें उन्हें सभी प्रकार के आरक्षण के दायरे में लाया जाए। ताज़ा याचिका में केरल सरकार की ट्रांसजेंडर पॉलिसी की भी चर्चा की गई। साथ ही कर्नाटक, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु के सरकारों द्वारा ट्रांसजेंडर समूह के लिए बनाई गई योजनाओं का जिक्र किया गया। कहा गया कि समाज की मुख्यधारा में उन्हें अभी भी स्वीकार्यता नहीं मिली है। लिखा गया कि राजनीतिक और सांस्कृतिक मामलों में उन्हें शामिल नहीं किया जाता है।

साथ ही इस याचिका में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट का हवाला दिया गया, जिसमें बताया गया था कि भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय को स्किल ट्रेनिंग के मौके नहीं मिले हैं। अधिवक्ता मोहम्मद सादिक TA के माध्यम से ये याचिका दायर की गई है। याद दिला दें कि सुप्रीम कोर्ट ने ही मई 2021 में एक फैसले में कहा था कि शैक्षिक और सामाजिक रूप से पिछड़ा समूह कौन है, इसका निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति का है। राष्ट्रपति केंद्र सरकार की सिफारिश पर फैसलों पर हस्ताक्षर करते हैं।

यानी, संसद से कानून बना कर ही ये तय किया जा सकता है। यानी, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर समुदाय को शैक्षिक और सामाजिक रूप से पिछड़े समाज की तरह ट्रीट करने के लिए भी कहा, साथ ही ये भी कहा कि ये निर्णय सिर्फ राष्ट्रपति, अर्थात केंद्र सरकार ही ले सकती है। यानी, संसद के द्वारा कानून बना कर ही ऐसा किया जा सकता है। अब देखना ये है कि केंद्र सरकार इस पर क्या निर्णय देती है। ट्रांसजेंडर समुदाय के उत्थान को लेकर ‘SMILE’ नामक योजना भी चलाई जा रही है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया