‘ये एक ऐसा इलाज जो बीमारी से भी बदतर’: फेसबुक पर सेंसरशिप लगाने के लिए पहुँचे रोहिंग्या तो बोला हाईकोर्ट, किया था दावा – हमारे खिलाफ हिंसा को मिल रहा बढ़ावा

दिल्ली हाईकोर्ट (फोटो साभार : PTI)

दिल्ली हाईकोर्ट में 2 रोहिंग्या मुस्लिमों ने याचिका दायर की थी कि फेसबुक पर रोहिंग्याओं से नफरत दिखाने वाले वीडियो और कंटेंट के प्रचार-प्रसार पर रोक लगाया जाए, क्योंकि फेसबुक इसको बढ़ावा देकर पैसे कमाता है। इसके लिए कोर्ट आदेश दे कि ऐसे कंटेंट को प्रसारित करने की अनुमति न दी जाए। याचिका में उन्होंने आरोप लगाया है कि फेसबुक पर रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ नफरत भरे भाषण को बढ़ावा दिया जा रहा है। याचिकाकर्ताओं ने माँग की है कि फेसबुक को इस नफरत भरे भाषण को हटाने और रोहिंग्या समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया जाए।

याचिका में कहा गया था कि फेसबुक पर रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ नफरत भरे भाषण के कई उदाहरण हैं। इनमें रोहिंग्याओं को ‘आतंकवादी’, ‘घुसपैठिए’ और ‘भारतीयों के लिए खतरा’ कहा गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस तरह के भाषण रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा दे सकते हैं। इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने गंभीर टिप्पणी की।

‘लाइव लॉ’ की खबर के मुताबिक, दिल्ली हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की बेंच ने कहा कि यह सुझाव कि फेसबुक पर रोहिंग्याओं पर किसी भी कंटेंट के पब्लिश होने से पहले सेंसरशिप होनी चाहिए, ये ‘एक ऐसे उपचार का उदाहरण है जो बीमारी से भी बदतर है।’ इसके साथ ही हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को फेसबुक इंडिया को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ ‘घृणित और हानिकारक सामग्री’ को बढ़ावा देने से रोकने का निर्देश देने से इनकार कर दिया है।

हाई कोर्ट ने कहा, ‘आईटी नियम, 2021 के अनुसार सभी लोगों के पास किसी भी शिकायत की अनुमति है, इसके अनुसार सरकार कार्रवाई करती है। लेकिन याचिकाकर्ताओं ने कंटेंट के प्रकाशित होने से पहले ही रोक लगाने की माँग की है, जो नियमों के अनुसार गलत है। ये तो किसी बीमारी से भी बदतर उसके इलाज जैसी बात है।” कोर्ट ने कहा कि सरकार को ऐसी शक्ति मिल जाने से समस्याएँ ही बढ़ेंगी।

इसी के साथ हाईकोर्ट ने फेसबुक के खिलाफ 2 रोहिंग्या शरणार्थियों मोहम्मद हमीम और कौसर मोहम्मद की याचिका का निपटान कर दिया। इसमें फेसबुक के एल्गोरिदम की शिकायत करते हुए कहा गया था कि फेसबुक पैसा बनाने के लिए रोहिंग्या लोगों के खिलाफ कंटेंट को बढ़ावा देता है। लेकिन, कोर्ट ने कहा कि फेसबुक के खिलाफ माँगी गई राहतें बरकरार रखने योग्य नहीं हैं, क्योंकि रिट याचिका में ऐसा कोई आरोप नहीं है कि अधिकारी आईटी नियम 2021 के तहत अपने वैधानिक दायित्वों का पालन करने में विफल रहे हैं।

याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि फेसबुक एक बड़ी सोशल मीडिया कंपनी है। इसकी पहुँच दुनिया भर में है। ऐसे में, फेसबुक पर नफरत फैलाने वाले भाषण का असर भी बहुत बड़ा होता है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि फेसबुक को नफरत फैलाने वाले भाषण को रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए।

वहीं, फेसबुक का कहना है कि उनकी कंपनी नफरत फैलाने वाले भाषण को रोकने के लिए प्रतिबद्ध है। कंपनी के पास नफरत फैलाने वाले भाषण को पहचानने और हटाने के लिए तकनीक है। हालाँकि, कंपनी का कहना है कि यह पूरी तरह से नफरत फैलाने वाले भाषण को रोकना संभव नहीं है। फेसबुक ने यह कहते हुए याचिका खारिज करने की माँग की थि कि इसमें इस बात का कोई संदर्भ नहीं दिया गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म द्वारा लगाए गए दिशानिर्देश कैसे अप्रभावी हैं, क्योंकि याचिकाकर्ता ने एक भी ऐसा उदाहरण नहीं दिया।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया