क्या शादी के लिए अलग-अलग लिंग का होना जरूरी है: CJI चंद्रचूड़ का सवाल, सुप्रीम कोर्ट में लगातार तीसरे दिन ‘समलैंगिक विवाह’ पर बहस

CJI चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में समलैंगिक विवाह पर सुनवाई (साभार: इंडिया टुडे/वॉग)

समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) की मान्यता वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (20 अप्रैल 2023) को तीसरे दिन भी सुनवाई की। इस दौरान मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि क्या विवाह के लिए पति-पत्नी का दो अलग-अलग लिंगों से होना जरूरी है। 

CJI ने समलैंगिक विवाह के मामले की तेजी से सुनवाई को आवश्यक मानते हुए कहा कि सोमवार (24 अप्रैल 2023) से संवैधानिक पीठ बैठेगी। दरअसल, संविधान पीठ सोमवार और शुक्रवार को नहीं बैठती है। चीफ जस्टिस ने कहा कि अयोध्या मामले में भी संविधान पूरे हफ्ते 5 जजों की बेंच बैठती थी।

बता दें कि इस बेंच में CJI चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एसआर भट्ट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं। यह पीठ समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की माँग करने वाली 20 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा, “हम इन (समलैंगिक विवाह) संबंधों को एक बार का रिश्ता नहीं, बल्कि हमेशा के लिए रिश्तों के रूप में देखते हैं। यह ना सिर्फ शारीरिक, बल्कि भावनात्मक मिलन भी है। हमें विवाह की अवधारणा को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता है, क्योंकि इसके लिए पति-पत्नी के अलग लिंग का होना क्या जरूरी है।”

इस मामले में NCPCR ने बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास का हवाला देते हुए समलैंगिक विवाह में बंधने वाले जोड़ों द्वारा बच्चा गोद देने का विरोध किया। इस पर चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर कोई पिता शराब पीकर अपनी पत्नी से मारपीट करता है तो क्या बच्चों पर इसका असर नहीं पड़ता?

इस दौरान चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने ड्राइवर की बेटी का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि चीन जैसे देश में लोग अब ज्यादा बच्चे पैदा नहीं कर रहे हैं। CJI ने कहा, “मेरे ड्राइवर की एक बेटी है और वह उससे खुश है। वह दूसरा बच्चा नहीं चाहता है। लड़का चाहने की धारणा भी अब धीरे-धीरे दूर हो रही है, क्योंकि लोग अब शिक्षित हो गए हैं।”

सुनवाई के दौरान CJI ने याचिकाकर्ताओं से अपनी बहस पूरी करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि इतना लंबा जिरह करने की जरूरत नहीं है। हालाँकि, याचिकाकर्ता पक्ष की जिरह खत्म न हो पाने के चलते सोमवार को भी उन्हें मौका मिलेगा। उन्होंने कहा कि इसके बाद सरकार और इसका विरोध कर रहे संगठन अगले गुरुवार तक अपनी बात पूरी करें।

इस दौरान चीफ जस्टिस ने सोशल मीडिया में जजों की आलोचना पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि समलैंगिक शादी पर जजों की टिप्पणियों को लेकर उन्हें सोशल मीडिया में ‘ट्रोल’ किया जा रहा है। हालाँकि, उन्होंने यह भी कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

दरअसल, सोशल मीडिया पर सबसे अधिक आलोचना मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की उनकी एक टिप्पणी को लेकर हो रही है। दरअसल, CJI ने कहा था कि पूरी तरह पुरुष या पूरी तरह स्त्री होने की कोई अवधारणा नहीं है। सिर्फ लिंग या जननांग के आधार पर इसे तय नहीं किया जा सकता। यह इससे जटिल विषय है।

इस दौरान जस्टिस भट्ट ने कहा कि समलैंगिक विवाह एक प्रवेश द्वार है। यह बहुत सारी संभावनाएँ खोलता है। इतने सारे अधिकार, जिनका आप आनंद ले सकते हैं, जिनका आप हिस्सा हो सकते हैं।

बताते चलें कि केंद्र सरकार समलैंगिक विवाह का विरोध कर रही है। केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए इसे ‘अर्बन एलिटिस्ट कॉन्सेप्ट’ (शहरों में रहने वाले अभिजात वर्गों की अवधारणा) बताया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दूसरे दिन यानी बुधवार (19 अप्रैल 2023) को कहा था कि इसे एलिट कॉन्सेप्ट बताने के लिए सरकार के पास कोई डेटा नहीं है।

CJI ने कहा था कि शहरी क्षेत्रों में रहने वाले अधिक लोग अपनी यौन पहचान को लेकर मुखर हो रहे हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि ये माँगे संभ्रांत शहरी लोगों तक ही सीमित है। इसे साबित करने के लिए सरकार के पास कोई डेटा है। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस पर सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को पक्षकार बनाने की माँग की है।

समलैंगिक विवाह पर पहले दिन सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से प्रस्तुुत एसजी तुषार मेहता ने कहा था कि केस पर सरकार अपनी आरंभिक आपत्तियाँ बताना चाहती है। इन आपत्तियों को पहले सुना जाना चाहिए, इसके बाद याचिकाकर्ताओं की याचिका पर सुनवाई होनी चाहिए।

इसके बाद CJI चंद्रचूड़ ने कहा था, “मैं कोर्ट का इंचार्ज हूँ। यह फैसला मैं करूँगा। पहले याचिकाकर्ता को सुना जाएगा। इस अदालत में सुनवाई की प्रक्रिया क्या होगी यह बताने की अनुमति मैं किसी को नहीं दूँगा।”

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया