SC का IIT बॉम्बे को आदेश, 18 साल के छात्र को दिया जाए अंतरिम दाखिला: इस वजह से रद्द हुई थी सीट

सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर लगाई रोक

देश की सबसे बड़ी अदालत ने बुधवार (9 दिसंबर 2020) को एक आदेश जारी किया। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने आईआईटी बॉम्बे (IIT Bombay) को निर्देश दिया है कि 18 साल के एक छात्र को इंजीनियरिंग (engineering) में अंतरिम दाखिला (Interim Admission) प्रदान करें। दरअसल, उस छात्र ने दाखिले की ऑनलाइन प्रक्रिया के दौरान गलत लिंक पर क्लिक कर दिया था, जिसकी वजह से उसका प्रवेश रद्द कर दिया गया था। 

आगरा के रहने वाले सिद्धांत बत्रा ने आईआईटी बॉम्बे के बी. टेक (B.Tech) इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग (Electrical Engineering) में ऑनलाइन दाखिले की प्रक्रिया के दौरान अनजाने में एक गलत लिंक पर क्लिक कर दिया था। जिस लिंक पर सिद्धांत ने क्लिक किया वह अपना दाखिला वापस लेने के लिए था। सिद्धांत बत्रा की जेईई (JEE) 2020 में ऑल इंडिया रैंक 270 थी। न्यायाधीश एसके कौल की अगुवाई वाली पीठ ने छात्रों के वकील प्रह्लाद परंजे की तरफ से दायर की गई याचिका का संज्ञान लेते हुए आईआईटी बॉम्बे को निर्देश दिया कि सिद्धांत बत्रा को ‘प्रोविज़नल दाखिला’ प्रदान किया जाए। 

परंजे ने यह भी कहा था कि संस्थान में छात्र की याचिका के बाद संस्थान में प्रवेश न्यायालय के निर्णय के अधीन होगा। न्यायाधीश दिनेश माहेश्वरी और ह्रषिकेश रॉय भी इस पीठ का हिस्सा थे, जिन्होंने आईआईटी बॉम्बे को इस संबंध में नोटिस भेज दिया है। इसके अलावा पीठ ने शीतकालीन अवकाश के बाद सिद्धांत की याचिका पर सुनवाई तय की है। पहले यह याचिका बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर की गई थी जिसे न्यायालय ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि जब सारी सीटें भर चुकी हैं। ऐसे में न्यायालय इस संबंध में दखल नहीं दे सकता है, दाखिले की प्रक्रिया से संबंधित नियमों का पालन करना होगा।

हाईकोर्ट ने शुरुआत में आईआईटी बॉम्बे को निर्देश दिया था कि सिद्धांत की याचिका पर संज्ञान लिया जाए और इस संबंध में उचित आदेश दे। सिद्धांत ने अपनी याचिका में कहा था कि उसने अनजाने में गलत लिंक पर क्लिक कर दिया था जिसकी वजह से उसकी सीट चली गई थी। 23 नवंबर को बॉम्बे हाईकोर्ट की खंड पीठ ने याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद सिद्धांत ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस याचिका में उसने सुप्रीम कोर्ट से निवेदन करते हुए कहा था कि उसका नुकसान हुआ है। इसे मद्देनज़र रखते हुए मानवीय आधार पर आईआईटी बॉम्बे एक नई सीट बनाए और दाखिल प्रदान करे। 

सिद्धांत आगरा में अपने दादा-दादी के साथ रहता है, उसके माता-पिता नहीं है। याचिका में अपना पक्ष रखते हुए उसने कहा कि तमाम परेशानियों के बावजूद उसने बड़ी मुश्किल से आईआईटी जेईई की परीक्षा पास की थी। बचपन में ही उसके पिता की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद उसकी माँ ने उसे पाल पोस कर बड़ा किया। 2018 में सिद्धांत की माँ का भी निधन हो गया था। याचिका के अनुसार दाखिले का फॉर्म भरते हुए पेज पर ‘फ्रीज़’ (freeze) ऑप्शन नज़र आया। जिसे देख कर सिद्धांत को यह लगा कि इसका मतलब है अपनी सीट कन्फर्म करना और दाखिले की प्रक्रिया पूरी करना। 

याचिका में यह भी लिखा गया था, “31 अक्टूबर 2020 को आईआईटी पोर्टल पर सर्फिंग के दौरान सिद्धांत ने एक लिंक पर क्लिक किया। जिसके बाद एक डिकलेरेशन नज़र आई, जिसमें ऐसा कहा गया था कि मैं JoSAA (जॉइंट सीट अलोकेशन अथॉरिटी) की सीट वितरण प्रक्रिया से पीछे हटना चाहता हूँ।” इसके बाद नवंबर 2020 को आईआईटी बॉम्बे ने छात्रों के नाम की अंतिम सूची जारी की थी जिसमें सिद्धांत का नाम शामिल नहीं था। आईआईटी बॉम्बे का इस संबंध में कहना था कि नाम वापस लेने की कार्रवाई पूरी तरह संज्ञेय (conscious) था क्योंकि यह ‘टू स्टेप प्रोसेस’ होता है। जो छात्र अंतिम राउंड के पहले अपना नाम वापस लेना चाहते हैं वह ऐसा कर सकते हैं और उनकी फीस वापस कर दी जाती है। जैसे ही छात्र अपना नाम वापस लेता है वैसे ही उसकी सीट रद्द कर दी जाती है।            

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया