पंजाब की कॉन्ग्रेस सरकार ने कहकर भी नहीं दी 7 बार की नेशनल चैंपियन को नौकरी, टूटीं मलिका हांडा; लगाया भेदभाव का आरोप

मलिका हांडा (साभार: ट्विटर/द ब्रिज)

पंजाब के जालंधर की रहने वाली दिव्यांग शतरंज प्लेयर मलिका हांडा ने पंजाब सरकार द्वारा नौकरी और वित्तीय सहायता देने में विफल रहने और उदासीनता भरा रवैया अपनाने के बाद अब हताश होकर सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयाँ किया है। 7 बार की नेशनल डेफ चेस चैम्पियन मलिका हांडा ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में कई पदक जीते हैं, जिनमें विश्व मूक-बधिर शतरंज चैम्पियनशिप में गोल्ड और एशियाई शतरंज चैम्पियनशिप में रजत पदक शामिल हैं।

बीते 10 साल से शतरंज खेल रहीं मलिका हांडा बीते सात साल से राज्य सरकार से नौकरी देने के लिए गुहार लगा रही हैं। इसी क्रम में बुधवार (24 नवंबर 2021) को राष्ट्रीय मूक-बधिर शतरंज चैंपियन ने ट्विटर पर एक छोटी वीडियो क्लिप पोस्ट की। इस वीडियो में हांडा का दर्द और फ्रस्ट्रेशन साफ देखा जा सकता है। वह देश के लिए जीते अपने कई पदकों को दिखाते हुए राज्य सरकार से पूछ रही हैं कि आखिर पंजाब सरकार उसके साथ इतना गलत व्यवहार क्यों कर रही है?

इस स्टार प्लेयर ने लिखा, “मैं बहुत दुखी महसूस कर रही हूँ। दो महीने बीत चुके हैं, लेकिन पंजाब सरकार के किसी व्यक्ति ने ना मुझे बुलाया और ना ही नकद पुरस्कार या नौकरी को लेकर बात की। मैं अभी भी इंतजार कर रही हूँ? क्यों-क्यों? मैं स्नातक हूँ, अंतरराष्ट्रीय मूक-बधिर स्वर्ण पदक हासिल किया है, एशियाई खेलों में 6 पदक हैं। पंजाब ऐसा क्यों कर रहा है? क्यों-क्यों?

फूट-फूटकर रोईं मलिका

नेशनल चैम्पियन मलिका अपना ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद इसी साल सितंबर में चंडीगढ़ में पंजाब के खेल विभाग के निदेशक से संपर्क कर नौकरी और आर्थिक सहायता के लिए मदद माँगी थी। लेकिन राज्य सरकार की ओर से उदासीनता भरी प्रतिक्रिया मिली तो डायरेक्टर के केबिन से बाहर निकलने के बाद हांडा के सब्र का बाँध टूट गया। इसके बाद ट्विटर पर सांकेतिक भाषा में उन्होंने अपनी पीड़ा व्यक्त की। उनका वीडियो सोशल मीडिया पर तुरंत वायरल हो गया और लोगों ने उन्हें भावनात्मक रुप से सपोर्ट भी किया।

इस मामले में मलिका हांडा के पिता सुरेश हांडा ने कहा, “मलिका आज बहुत परेशान है। मैं और मेरा बेटा अतुल हांडा उसके साथ खेल विभाग के निदेशक के कार्यालय गए थे, लेकिन उन्होंने लगभग उसकी माँग को मानने से मना कर दिया। मेरी बेटी पिछले 8-10 वर्षों से खेल खेल रही है। वो इस उम्मीद में देश और राज्य के लिए मेडल्स लाती रही है कि अन्य ओलंपियन और पैरा-एथिलीटों की तरह एक दिन उसे भी नौकरी का ऑफर मिलेगा।”

मलिका के पिता ने बताया, “पिछले दो-तीन सालों से मलिका से कहा गया है कि अच्छी सरकारी नौकरी पाने के लिए उन्हें पहले उन्हें ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करनी होगी। बड़ी उम्मीदों के साथ उसने खेल निदेशक से मुलाकात की, लेकिन उन्होंने कहा कि राज्य में अभी तक मूक-बधिर एथलीटों को नौकरी देने की कोई नीति नहीं है। यह मौजूदा सरकार के कार्यकाल का अंतिम चरण चल रहा है। अगर उन्होंने अब तक कोई पॉलिसी नहीं बनाई है तो वे अगले तीन महीने में इसे बना सकते हैं। मेरी बेटी की सारी उम्मीदें धूमिल हो रही हैं, इस कारण से उसे मना पाना काफी मुश्किल है।”

इस बीच पंजाब की खेल निदेशक खरबंदा ने कहा है कि पंजाब सरकार के पास सक्षम खिलाड़ियों और पैरा-एथलीटों (हाथ और पैर की विकलांगता) के लिए नीति है, लेकिन अन्य 21 प्रकार की विकलांगता जैसे अंधापन, बहरापन या मंदबुद्धि जैसी विकलांगता के लिए कोई नीति नहीं है।

मलिका हांडा ने एक कोच और सरकारी नौकरी की माँग की

इससे पहले इसी साल अगस्त में भी मलिका ने पंजाब सरकार से सरकारी नौकरी और एक कोच देने का आग्रह किया था। पंजाब के खेल मंत्री राणा गुरमीत एस सोढ़ी और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को टैग करते हुए हांडा ने पूछा था कि राज्य प्रशासन उनकी अनदेखी क्यों कर रहा है। उन्होंने लिखा, “मैं घर पर बैठी हूँ, क्यों? मैं दिन-ब-दिन अवसाद में जा रही हूँ। कोई मेरी कड़ी मेहनत को नहीं देख रहा है।”

मलिका की माँ रेणु हांडा ने एएनआई को बताया कि सात बार की राष्ट्रीय चैंपियन होने के बावजूद उनकी बेटी को राज्य सरकार की ओर से कोई मान्यता नहीं दी गई है। उन्होंने कहा, “मेरी बेटी इंटरनेशनल डेफ एंड डंब शतरंज चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला है। उसे पिछले साल राष्ट्रपति से राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था। सात बार की राष्ट्रीय चैंपियन होने के बावजूद सरकार ने उसकी सराहना तक नहीं की।”

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया