रामायण को सेक्युलर बनाना चाहते थे राजदीप के ससुर, उस समय थे दूरदर्शन के हेड: रामानंद सागर ने लिखा था – कॉन्ग्रेस राज में हिन्दू भयभीत

शेफाली वैद्य ने कहा भास्कर घोष रामायण दिखाए जाने के पक्ष में नहीं थे

दूरदर्शन का लोकप्रिय सीरियल रामायण (Ramayana) एक बार फिर चर्चा में है। 1987 में आए रामायण सीरियल के निर्माता रामानंद सागर के बेटे प्रेम सागर द्वारा लिखी गई उनकी बायोग्राफी का हवाला देते हुए कॉलमनिस्‍ट शेफाली वैद्य ने कहा, “जिस वक्त रामायण का प्रसारण शुरू हुआ पत्रकार सागरिका घोष के पिता और राजदीप सरदेसाई के ससुर भास्कर घोष, जो उस वक्त दूरदर्शन के हेड थे वह इसे दिखाए जाने के पक्ष में नहीं थे। घोष को ये लगता था कि रामायण का प्रसारण इस देश के सेक्युलर चरित्र को बदल देगा और हिंदुत्व की अवधारणा को बढ़ाएगा।” लेखिका ने ट्वीट के साथ तीन स्क्रीनशॉट साझा किए हैं।

दरअसल, पश्चिम बंगाल कैडर के आईएएस अधिकारी रहे घोष रामायण को उस रंग-रूप में बिल्कुल नहीं दिखाना चाहते थे, जैसा रामानंद सागर कर रहे थे। भास्कर घोष को उस वक्त दर्शकों पर किए गए शोध से ये पता चला था कि रामायण को देखने वाला अकेला हिंदू समाज ही नहीं था, बल्कि मुस्लिम भी बड़ी तादाद में उसे देखते थे, क्योंकि सीरियल का निर्माण उस समय के स्डैंडर्ड के हिसाब से किया गया था। रामायण सिर्फ मनोरंजन ही नहीं था, बल्कि इसमें आदर्शों और मूल्यों की बात भी की गई थी। ऐसे में वह अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए रामायण को धर्मनिरपेक्ष बनाना चाहते थे। हालाँकि राजीव गाँधी सरकार में ऐसे कई मामले देखने को मिले जब हिंदू और मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए राजनीति की गई।

रामानंद सागर की बायोग्राफी के पेज नंबर 273 में लिखा गया है, “भारत के इतिहास में पहली बार कॉन्ग्रेस के राज में हिंदू भयभीत महसूस कर रहे थे। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कॉन्ग्रेस ने अल्पसंख्यकों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। वह भावनाओं में बहकर हर कार्य कर रहे थे। उस दौरान एक कट्टर हिंदू नेता की आवश्यकता थी, जो हिन्दुओं की रक्षा के लिए आगे आ सके और जिसमें कॉन्ग्रेस पार्टी का विरोध करने की क्षमता हो।”

प्रेम सागर के मुताबिक, “एन वक्त पर भाजपा ने मोर्चा संभाला और एलके आडवाणी ने इसके खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार किया। उन्होंने पार्टी के संसाधनों और जनशक्ति का इस्तेमाल जमीनी स्तर पर पार्टी के कार्यकर्ताओं के माध्यम से देश के कोने-कोने में इस बारे में जागरूकता फैलाने और अपने पक्ष में समर्थन हासिल करने के लिए किया। यह भाजपा के उदय और हिंदुत्व आंदोलन की पुरजोर शुरुआत थी।”

बताया गया है कि उस वक्त जब हिंदू कॉन्ग्रेस से आक्रोशित थे, भाजपा अपनी जमीनी स्थिति मजबूत करने में जी जान से जुटी हुई थी। इसको लेकर राजीव गाँधी काफी डर गए थे, उन्होंने भांप लिया था कि इस बार हिंदू उन्हें चुनाव में वोट नहीं करेंगे। इस स्थिति में उन्होंने संभावित विकल्पों को तलाशना शुरू कर दिया था। अयोध्या विवाद, जो तीस साल से अधिक समय से चला आ रहा था, हिन्दुओं के धैर्य की परीक्षा लेने लगा था। हिंदू विवादित ढाँचे बाबरी मस्जिद के द्वार खोलने और यहाँ पूजा करने की माँग कर रहे थे। यह मामला न्यायपालिका के दायरे में था, लेकिन राजीव गाँधी ने हिंदुओं को खुश करने के लिए इसमें हस्तक्षेप किया और दरवाजे खोलने के लिए अपील दायर की गई।

इस मामले में सरकार और न्यायपालिका ने जिस तेजी से काम किया उसने सभी को हैरान कर दिया था। बिना समय बर्बाद किए, राजीव गाँधी सरकार ने गवाही दी कि पूजा के लिए द्वार खोलना सुरक्षित होगा (अर्थात, कानून व्यवस्था को प्रभावित नहीं करेगा) और फैसले के कुछ घंटों के भीतर ही द्वार खोल दिए गए।

यह विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था, जिसने दशकों के विरोध और धैर्य के बाद अपनी लड़ाई जीती थी। साथ ही, इसने भाजपा को अपना अगला जनसमूह शुरू करने के लिए एक मंच प्रदान किया। इस तरह, राजीव गाँधी की हिंदू तुष्टिकरण की रणनीति ने भाजपा के विकास के लिए एक मंच तैयार किया था।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया