मुलायम सरकार में ‘राम भक्ति’ था अपराध? जिन्होंने भोगी सजा उन्होंने दिखाया जेल वाला ‘कागज’, OpIndia को सुनाई पीड़ा

'रामभक्ति अपराध' में मनोज कुमार को भेजा गया था अलीगढ़ जेल

राम मंदिर आंदोलन के दौरान ना जाने कितने कारसेवकों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। इससे पूरा देश परिचित है। अब इन बलिदानियों का सपना साकार हो रहा है। अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए तैयार है। इन तमाम कहानियों के इतर, हम आज आपके सामने ला रहे हैं उस जिंदा कारसेवक की कहानी, जिसकी रामभक्ति उसके लिए अपराध बन गई।

बात सन 1990 की है। पूरे देश से लोग कारसेवा के लिए उत्तर प्रदेश के अयोध्या जा रहे थे। देश के तमाम हिस्सों की तरह ही अलीगढ़ के लोगों में भी रामभक्ति का संचार था। उन दिनों उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। ये वो सरकार थी, जो रामभक्तों को रोकने के लिए हरेक तिकड़म इस्तेमाल कर रही थी। इन्हीं में से एक थी, ‘रामभक्ति चालान’। शायद इसका नाम आपने पहले ना सुना हो, लेकिन ऐसा हुआ था।

क्या था रामभक्ति चालान?

कारसेवा करने की इच्छा रखने वाले हजारों-लाखों लोग अयोध्या की ओर कूच कर रहे थे। उन्हें प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में रोका जा रहा था, ताकि वे अयोध्या ना पहुँच सकें। उसी समय अलीगढ़ में कारसेवकों को गिरफ्तार कर जेल में डाला जा रहा था। इन्हीं कारसेवकों में से एक हैं मनोज कुमार अग्रवाल। मनोज कुमार अग्रवाल तब महज 23 साल के थे। वे जब अयोध्या कूच कर रहे थे, तब उन्हें अलीगढ़ रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया गया था।

मनोज अग्रवाल को जेल भेजे जाते समय एक प्रमाण पत्र दिया गया था, जिसमें लिखा था कि उनका अपराध क्या है और किस धारा के तहत उन्हें जेल भेजा जा रहा है। उस प्रमाण पत्र पर साफ तौर पर लिखा है, उनका चालान रामभक्ति के कारण हुआ। जी हाँ, उनके ऊपर धारा तो 107/116 लगी है, लेकिन आगे उसमें लिखा है ‘रामभक्त चालानी’।

ऑपइंडिया से एक्सक्लूसिव बातचीत में रामभक्त मनोज कुमार अग्रवाल बताते हैं कि उनके जैसे सैकड़ों लोगों को अलीगढ़ ही नहीं, आसपास के जिलों में भी रोक लिया गया था। हालाँकि, अलीगढ़ ही ऐसी जगह थी, जहाँ लोगों को ‘रामभक्ति चालानी’ वाले कागज पकड़ाए गए थे। मनोज बताते हैं, “हम जैसे जिंदा कारसेवकों का अपराध ये था कि हम रामभक्ति में लीन थे। हमारे कागज भी यही बताते हैं।”

मनोज जेल के दिनों को याद करते हुए कहते हैं, “अलीगढ़ जेल में भजन होता था। शाखा लगती थी। उस समय अलीगढ़ के जेलर एसडी अवस्थी थे। उन्हीं की मुहर भी रामभक्ति चालानी वाले सर्टिफिकेट में लगी है। वो रामभक्तों के प्रति नरम भाव रखते थे। जेल में शांति थी। सैकड़ों लोग बंद थे। रोज सैकड़ों लोगों से मिलने उनके सैकड़ों परिवार वाले आते थे, लेकिन बाहर मुलायम की सरकार का आतंक था।”

मुलायम की सरकार में मुगल काल जैसा माहौल

मनोज अग्रवाल का कहना है कि उस समय पूरे उत्तर प्रदेश में रामभक्तों का दमन किया गया था। उनका कहना है, “हमें रामभक्ति को अपराध बनाने वाला सर्टिफिकेट दे दिया गया था। सर्टिफिकेट बनाने वालों ने तो दूर तक नहीं सोचा, लेकिन सच तो यही था कि उस समय केसरिया पटका लगाकर कोई बाहर निकल जाता था तो गिरफ्तार हो जाता था।”

मुलायम यादव की सरकार में रामभक्ति में लीन हिंदुओं को किस तरह प्रताड़ित किया गया था, उसे मनोज अग्रवाल ने बताया। उन्होंने आगे बताया, “अगर कोई व्यक्ति तिलक लगाकर निकलता था तो उसे पुलिस गिरफ्तार कर लेती थी। लोग पुलिस वाले के सामने राम-राम कहने से भी डरते थे। उस समय बिल्कुल मुगल काल जैसा माहौल था।”

अलीगढ़ का माहौल कैसा था?

मनोज अग्रवाल के अनुसार, “अलीगढ़ मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र था। यह दंगों का शहर था। उस दौरान दंगे खूब हुए और प्रशासन तो दमन की नीति अपना ही रहा था। जेल से आने के बाद एक और आंदोलन चल रहा था रामशिला पूजन का। तब भी खूब गिरफ्तारियाँ हुई थीं। अलीगढ़ कोतवानी में घुटनों पर इतनी लाठियाँ मारी गई थी, आज भी पुरवाई हवा चलती है तो दर्द होता है।”

रामभक्ति के नाम चालान व्यक्तिगत निर्णय

‘रामनामी चालानी’ को लेकर ऑपइंडिया ने उत्तर प्रदेश पुलिस के रिटायर्ड डीएसपी अविनाश गौतम से बातचीत की। अविनाश गौतम ने हमें बताया, “पुलिस की नियमावली में रामभक्ति के नाम पर चालान करने का कोई प्रावधान नहीं है। अगर फिर भी किसी अधिकारी द्वारा ये किया गया तो संभवतः उसका व्यक्तिगत निर्णय भी हो सकता है।”

उन्होंने आगे कहा, “संभव यह भी है कि साल 1990 के कारसेवा के दौरान कई अस्थाई जेलें भी बनाई गई थीं। अन्य कैदियों से कारसेवकों को अलग रखने या पहचान दिखाने के लिए शायद उनकी अलग सेल बनाई गई रही हो और कुछ जगहों पर ‘रामभक्ति चालानी’ शब्द प्रयोग किया गया हो।”

कार्रवाई को किया जा सकता है चैलेंज

वहीं, मुरादाबाद सेशन कोर्ट के एडवोकेट अनुज विश्नोई ने ऑपइंडिया से बातचीत में कहा, “ये नियमतः कार्रवाई नहीं, बल्कि सरकारी जबरदस्ती है। इसे मिसयूज ऑफ पॉवर कहा जाएगा, क्योंकि ऐसा कोई प्रावधान है ही नहीं। इस एक्शन को अभी भी कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है, अगर पीड़ित की इच्छा हो तो।”

तब के और अब के माहौल में जमीन-आसमान का अंतर

मनोज अग्रवाल ने तब के और अब के माहौल को लेकर कहा कि तब हर तरफ रामभक्तों में आतंक था। उस समय की सरकार दमन करती थी और अब तो एक रामभक्त ही उत्तर प्रदेश चला रहा है। उन्होंने ऑपइंडिया को बताया कि आज (03 दिसंबर 2023) को अलीगढ़ के डीआईजी ऑफिस से दो पुलिसकर्मी आए थे, उन्होंने पूछा कि क्या उन्हें किसी तरह की सुरक्षा की जरूरत तो नहीं है?

मनोज अग्रवाल ने कहा कि इसी बात समझा जा सकता है कि तब के माहौल में और अब के माहौल में क्या अंतर है। वैसे, ये पूरा मामला बताता है कि वर्तमान में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के पिता और तत्कालीन मुख्यमंत्री समय मुलायम यादव की सरकार और उनकी मशीनरी रामभक्तों से कितना नफरत करती थी।

राहुल पाण्डेय: धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।