सुप्रीम कोर्ट ने पीएम केयर फंड का पैसा NDRF में ट्रांसफर करने की माँग ठुकराई, कहा- दोनों फंड अलग

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

पीएम केयर्स फंड को NDRF में ट्रांसफर करने और राष्ट्रीय आपदा के दौरान राहत के लिए एक समान योजना बनाने की माँग पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पीएम केयर्स फंड को एनडीआरएफ में ट्रांसफर करने की माँग खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ये दोनों फंड अलग हैं। सरकार जरूरत के हिसाब से फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है।

कोरोना के मद्देनजर राष्ट्रीय आपदा के दौरान राहत के लिए नई योजना बनाने की माँग पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नवंबर 2019 में बनी योजना ही पर्याप्त है। किसी नए एक्शन प्लान और न्यूनतम मानकों को अलग करने की आवश्यकता नहीं है।

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि पीएम केयर्स फंड भी चैरिटी फंड ही है। लिहाज़ा रकम ट्रांसफर करने की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि कोई भी व्यक्ति या संस्था NDRF में रकम दान कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पीएम केयर्स फंड में जमा पैसों को एनडीआरएफ में ट्रांसफर करने की माँग सही नहीं है। आम लोग भी एनडीआरएफ में योगदान दे सकते हैं। पीएम केयर्स फंड में लोग स्वैच्छिक योगदान देते हैं।

बता दें कि याचिकाकर्ता एनजीओ, सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (CPIL) ने दावा किया था कि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत कानूनी जनादेश का उल्लंघन करते हुए पीएम केयर्स फंड बनाया गया था। याचिका में कहा गया था कि आपदा प्रबंधन अधिनियम के मुताबिक आपदा प्रबंधन के लिए किसी भी व्यक्ति या संस्था द्वारा दिया गया कोई भी अनुदान अनिवार्य रूप से एनडीआरएफ को ट्रांसफर किया जाना चाहिए।

सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने याचिकाकर्ता एनजीओ की ओर से दलील पेश करते हुए कहा था कि हम किसी पर सवाल नहीं उठा रहे है लेकिन पीएम केयर फंड का गठन नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के प्रा‌वधान के विपरीत है। दवे ने कहा था कि एनडीआरएफ का ऑडिट नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा होता है लेकिन पीएम केयर फंड का ऑडिट प्राइवेट ऑडिटर द्वारा कराया जा रहा है।

एक अन्य पक्षकार की ओर से वरिष्ठ अधिवकता कपिल सिब्बल ने भी दलीलें रखी। उन्‍होंने कहा कि सीएसआर योगदान के सारे लाभ पीएम केयर्स फंड को दिए जा रहे हैं जो बहुत ही गंभीर मामला है जिस पर विस्तार से गौर करने की जरूरत है। 

वहीं केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत के समक्ष पेश सॉलिसीटर तुषार मेहता ने अपने हलफनामे में इस तर्क को खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा कि साल 2019 में एक राष्ट्रीय योजना तैयार की गई थी जिसमें जैविक आपदा जैसी स्थिति से निबटने के तरीकों को शामिल किया गया था। उस दौरान किसी को भी कोरोना महामारी के बारे में जानकारी नहीं थी। यह जैविक और जन स्वास्थ्य योजना है जो राष्ट्रीय योजना का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि पीएम केयर्स फंड राहत कार्य करने के लिए स्थापित एक कोष है और अतीत में इस तर्ज पर कई ऐसे कोष बनाए जा चुके हैं। अत: कोई योजना नहीं होने की दलील गलत है। 

गौरतलब कि केंद्र सरकार ने 28 मार्च को प्राइम मिनिस्टर्स सिटिजन असिस्टेंस ऐंड रिलीफ इन इमर्जेंसी सिचुएशंस (PM CARES) फंड का निर्माण किया था, ताकि कोविड-19 महामारी जैसे आपातकालीन परिस्थितियों से निपटने में मदद मिल सके। जिसमें देश के बड़े-बड़े उद्योगपतियों से लेकर आम लोगों तक ने मदद दी है।

इस फंड का इस्तेमाल कोरोना वायरस से जुड़े खर्च में किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर देश के आम से लेकर खास लोगों ने पीएम केयर्स फंड में पैसे जमा किए थे। फंड की शुरुआत होने के कुछ ही दिनों के भीतर इसमें 6500 करोड़ रुपए से अधिक धन जमा हो गए थे।

बता दें कि पीएम केयर्स फंड को लेकर विपक्ष ने लगातार केंद्र सरकार पर आरोप लगाए थे। वहीं सरकार ने उसमें जमा पैसों से देश के अस्पतालों को वेंटिलेटर्स, पीपीई किट, एन-95 मास्क बाँटे। साथ ही लॉकडाउन में घर लौटे प्रवासी मजदूरों के खाने के लिए भी पैसे दिए गए।

कॉन्ग्रेस ने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर माँग की थी कि PM-CARES फंड के तहत जमा हुए सभी पैसे को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (PMNRF) में स्थानांतरित कर दिया जाए। कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के अनुसार, यह ‘बेहतर पारदर्शिता, जवाबदेही और दक्षता’ के लिए किया जाना था। हालाँकि, मोदी सरकार ने कॉन्ग्रेस अध्यक्ष द्वारा की गई माँग को नजरअंदाज कर दिया था।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया