‘ये आपको आसान लग सकता है, लेकिन परिणाम दूरगामी’: सुप्रीम कोर्ट ने नहीं सुनी नूपुर शर्मा की गिरफ़्तारी की माँग वाली याचिका, कहा – वापस लीजिए

नूपुर शर्मा की गिरफ्तारी की माँग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से किया इनकार (फाइल फोटो)

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार (9 सितंबर, 2022) को भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) की गिरफ्तारी की माँग वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित, जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने धारा 32 के तहत दायर की गई याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए याचिकाकर्ता को इसे वापस लेने का सुझाव दिया।

मुख्य न्यायाधीश UU ललित ने कहा, “यह आपको आसान लग सकता है, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम हैं। अदालत को निर्देश जारी करते समय चौकस रहना चाहिए। हम आपको याचिका वापस लेने का सुझाव देते हैं।” इसके बाद इस याचिका को खारिज कर दिया गया। एडवोकेट अबू सोहेल ने अधिवक्ता चाँद कुरैशी के माध्यम से दायर याचिका में घटना की ‘स्वतंत्र, विश्वसनीय और निष्पक्ष जाँच’ के लिए निर्देश देने की माँग की थी।

देश भर में मुस्लिमों ने की थी हिंसा

बता दें कि नूपुर शर्मा पर पैगंबर मुहम्मद (Prophet Mohammad) के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी करने और मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाया गया था। इसे लेकर देश भर में कट्टर मुस्लिमों ने हिंसा की थी। उदयपुर और अमरावती में नूपुर शर्मा का समर्थन करने वाले का गला रेत दिया गया। वहीं, नूपुर शर्मा के खिलाफ कई मामले दर्ज कराए गए थे और उन्हें जान से मारने की धमकी भी दी गई थी। जुलाई 2022 में शर्मा ने अपने खिलाफ सभी मामलों को क्लब करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दी थी। इसकी सुनवाई न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति पारदीवाला की खंडपीठ ने की थी।

यह महिला अकेले जिम्मेदार: न्यायमूर्ति सूर्यकांत

इस याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा था, “जिस तरह से उन्होंने पूरे देश में भावनाओं को भड़काया है, देश में जो हो रहा है उसके लिए यह महिला अकेले जिम्मेदार है।” अदालत ने यह भी कहा था कि उन्हें पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है और उन्होंने आम नागरिकों के लिए उपलब्ध न्यायिक अधिकार खो दिया है।

महाभियोग के लिए ऑनलाइन अभियान

हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस टिप्पणी को अपने लिखित आदेश में शामिल नहीं किया था, फिर भी देश भर में इसका विरोध शुरू हो गया था। न्यायाधीशों की इस टिप्पणी के खिलाफ 15 सेवानिवृत्त जजों, 77 रिटायर्ड नौकरशाहों और 25 पूर्व सैन्य अधिकारियों ने खुला पत्र जारी कर इसे ‘दुर्भाग्यपूर्ण और गलत उदाहरण पेश करने वाला’ बताया था। वहीं, इन न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग के लिए ऑनलाइन अभियान भी शुरू किया गया था। बाद में इसी पीठ ने उन्हें गिरफ़्तारी से राहत प्रदान करते हुए सभी FIR को दिल्ली ट्रांसफर करने का आदेश दिया।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया