दिल्ली वाला दंगाई शाहरुख़ पठान अब ‘बेटा, दोस्त और शख्सियत’: The Quint का नया कारनामा, पहले लादेन को बनाया था ‘पिता-पति’

'The Quint' ने दिल्ली के दंगाई शाहरुख़ पठान का किया महिमामंडन

क्या आपको शाहरुख़ पठान याद है? वही शाहरुख़ पठान, जो दिल्ली का दंगाई है। पुलिस पर पिस्तौल तानी हुई उसकी तस्वीर सामने आने के बाद हिंसा भड़की थी। वही, जिसे अनुराग मिश्रा बता कर रवीश कुमार सरीखों ने इस्लामी कट्टरपंथ पर पर्दा डालने की कोशिश की थी। अब वही शाहरुख़ पठान ‘The Quint’ का दुलारा बन गया है। उसके ग्राफिक्स बना कर खबर प्रकाशित की गई है। उसके ‘मानवीय पहलुओं’ को दिखाया जा रहा है।

आगे बढ़ने से पहले बता दें कि ये वही ‘The Quint’ है, जिसे हजारों लोगों की हत्या के गुनहगार अलकायदा का गठन करने वाले ओसामा बिन लादेन में ‘पिता और पति’ दिखता है। फिर भला शाहरुख़ पठान जैसे दंगाइयों का महिमामंडन करने में इनका क्या जाता है। ‘The Quint’ ने अपनी खबर में बताया है कि किस तरह शाहरुख़ पठान बंदूक लेकर निकलने से पहले अपनी अम्मी के हाथ की बनी बिरयानी के लिए इंतजार कर रहा था।

उसने कपड़े पहने, दोस्तों के साथ बाहर जा रहा था, 60 साल की अम्मी ने कहा कि नमाज पढ़ कर बिरयानी दूँगी, वो अच्छे कपड़े पहनता था, अच्छा दिखता था, बालों में जेल लगाता था, TikTok वीडियो बनाता था, खुद को आईने में देखता था, फोटो लेता था, मासूम था, सीधा-सादा था – ‘The Quint’ ने सब बताया है। साथ ही कपिल मिश्रा को भी दोष देना नहीं भूला है। लिखा है कि शाहरुख़ पठान के घर से कुछ ही दूरी पर पत्थरबाजी व नारेबाजी हो रही थी, क्योंकि भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने ‘भड़काऊ भाषण’ दिया था।

ये पत्थरबाजी व नारेबाजी कौन कर रहे थे, इस सम्बन्ध में उसने चुप्पी साध ली है। जाफराबाद और मौजपुर को हिन्दू बहुल इलाका बताते हुए ‘The Quint’ ने अपनी ग्राउंड रिपोर्टिंग के हवाले से दावा किया है कि वहाँ RSS के लोग हिंसा कर रहे थे। ग्राउंड रिपोर्टिंग तो ऑपइंडिया ने भी की थी, असली वाली। दंगों का केंद्र AAP के पार्षद रहे ताहिर हुसैन का घर और फैसल फारुख का स्कूल था। दोनों इमारतें सील हुई थीं।

लेकिन नहीं, शाहरुख़ पठान की अम्मी तो इन सबसे दूर, एकदम अलग, कुछ नहीं जानती थी और नमाज पढ़ रही थी। लिखा है कि शाहरुख़ पठान ने जब सुना कि ‘कई पुरुष महिलाओं को मारने के लिए निकले हैं’ तो वो दोस्तों संग भागा। शाहरुख़ पठान के अब्बा सिख से इस्लाम में धर्मांतरित हैं। अब्बा के हवाले से बताया गया है कि भीड़ थी, हिंसक लोग थे, एक के हाथ में पिस्टल था, शाहरुख़ ने खुद को बचाने के लिए उसे पीटा तो पिस्टल उसके हाथ में आ गया, फिर उसने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए गोली चला दी।

अब्बा-अम्मी के हवाले से बताया गया है कि ‘अल्लाह के करम’ से शाहरुख़ पठान बच गया, उसने कई लोगों की जान बचाई, हाथ में पिस्टल नहीं रहता तो वो मर जाता, परिवार गरीब है, घर में छूने दौड़ते हैं, चूहों को मारने के लिए रैट किलर खरीदा जाना है, घर में सामान्य फर्नीचर हैं, शाहरुख़ का भाई फैज तबलीगी जमात में है और इस्लाम का प्रचार-प्रसार करता है, पैसे नहीं हैं, शाहरुख़ जिम जाता था, अब्बू-अम्मी को गिरफ्तार होने का डर है, भीड़ ने उनके घर पर भी हमला किया था – ये सब UPSC की तैयारी वाली जानकारियाँ ‘द क्विंट’ ने जुटाई है।

दंगाई शाहरुख़ पठान के महिमामंडन के लिए ‘The Quint’ ने लिखा लेख

आखिर ‘The Quint’ को ऐसी क्या ज़रूरत आन पड़ गई कि उसे कई ग्राफिक्स बना कर शाहरुख़ पठान के परिचितों से बात कर के उसका महिमामंडन करना पड़ा? कहीं से ऐसा आदेश आया था या फिर ट्रैफिक की कमी थी वेबसाइट पर? कोई दंगाई क्या खाता-पीता-पहनता है, इससे किसी को क्यों कुछ मतलब हो सकता है? हाथ में बंदूक आने को लेकर भी एक ऐसी कहानी गढ़ी गई है, जो बताता है कि ये मीडिया संस्थान पुलिस और न्यायालय पर तनिक भी भरोसा नहीं करते।

https://twitter.com/SirJadeja/status/1188742792169824257?ref_src=twsrc%5Etfw

‘The Quint’ के लिए जिस तरह आतंकी ओसामा बिन लादेन ‘पिता और पति’ है, उसी तरह हिन्दू विरोधी दंगाई शाहरुख़ पठान ‘बेटा, दोस्त और शख्सियत’ है। साथ ही हिंसा करते हुए उसकी तस्वीर प्रोपेगंडा पोर्टल के लिए ‘आइकोनिक’ है, प्रतिष्ठित है। वैसे भी ये पोर्टल ओसामा बिन लादेन के महात्मा गाँधी से प्रेरित होने, उसके लैपटॉप में टॉम एन्ड जेरी के एपिसोड होने और पर्यावरण प्रेमी होने को लेकर कई लेख लिख चुका है।

https://twitter.com/NehaT_/status/993710369469292544?ref_src=twsrc%5Etfw

जम्मू कश्मीर के आतंकियों के लिए भी ‘The Quint’ अक्सर सहानुभूति बटोरता रहता है। उसने मोहम्मद रफ़ी भट्ट नाम के आतंकी के मारे जाने के बाद उसे विनम्र, मृदुभाषी, और विद्वान करार दिया था। उसके दोस्तों से बात कर के उसका महिमामंडन किया गया था। इसी तरह वामपंथी मीडिया ने हिज्बुल आतंकी रियाज नाइकू के मारे जाने के बाद उसे ‘गणित का विद्वान’ साबित कर दिया था। भारतीय संविधान से मिली ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ का दुरुपयोग इनसे ज़्यादा शायद ही कोई करता हो।

अब जानिए शाहरुख़ पठान की करतूतों के बारे में

दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगों के दौरान दिनदहाड़े पुलिस पर बंदूक तानने वाला शाहरुख पठान न्यूजलॉन्ड्री में लिखने वाले इस्लामी कट्टरवादी शरजील उस्मानी के लिए हीरो है, जिसकी धमकी के बाद NDTV को हाल ही में उस तस्वीर को डिलीट करना पड़ा था, जिसमें एक मुस्लिम को कोरोना टेस्ट कराते हुए दिखाया गया था। इधर जमानत के लिए शाहरुख़ पठान कोर्ट में कभी अम्मी-अब्बू के तबीयत खराब होने की बात कहता है, कभी उसे तिहाड़ जेल में डर लगता है तो कभी कोरोना का खतरा उसे सताता है।

जफराबाद कॉन्स्टेबल पर पिस्तौल ताने शाहरुख़ पठान की तस्वीरों पर दिल्ली हाईकोर्ट तक ने कहा था कि इन वीडियो क्लिपिंग और तस्वीरों ने इस कोर्ट की अंतरात्मा को हिला दिया है कि ये व्यक्ति कानून और व्यवस्था को अपने हाथों में कैसे ले सकता है। हिंसा के दौरान शाहरुख ने जाफराबाद इलाके में 8 राउंड फायरिंग की थी। उसके पास से एक पिस्तौल तथा दो कारतूस जब्त किए गए थे। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने दिल्ली में शाहरुख के घर से पिस्टल और तीन कारतूस बरामद किए थे। 

‘The Quint’ के दलीलों की मानें तो हो सकता है कि शाहरुख़ पठान ने ‘भगवा आतंकवादी’ को मार कर उसके हाथ से बंदूक छीनी, जिसके बाद वो बंदूक दो बंदूक बन गई और उसमें से एक उसके घर में जाकर गिरी और एक ने उसके हाथों में आकर अपनेआप 8 राउंड की फायरिंग कर डाली। वजीराबाद पुलिस ट्रेनिंग स्कूल के हेड कॉन्स्टेबल दीपक दहिया ने बहादुरी दिखाते हुए फायरिंग कर रहे दंगाइयों को रोकने का प्रयास किया तो उन पर गोली चला दी गई थी।

किसी तरह झुक कर उन्होंने जान बचाई थी। फिर भी हाथ में पिस्तौल लिए शाहरुख़ पठान उनकी तरफ बढ़ गया था। क्या इन वामपंथी मीडिया पोर्टलों में से किसी ने भी इन पुलिसकर्मियों के घर जाकर उनके परिवार का हालचाल जाना, जिन्होंने अपनी जान मुट्ठी में रख कर जनता की रक्षा की, दंगाइयों से भिड़े। कॉन्स्टेबल रतन लाल के घर कभी गए हैं क्विंट वाले, जिनकी भीड़ ने हत्या कर दी थी? उनके परिवार की दुर्दशा जानने की कोशिश की?

पुलिस को दिए अपने बयान में उसने बताया था कि दिल्ली के मौजपुर चौक पर सीएए-विरोध प्रदर्शन के एक वीडियो को यूट्यूब पर देखने के बाद वो उत्तेजित हो गया था। इसके बाद वह भी सीएए-विरोध में शामिल हो गया। यानी, लिबरल गिरोह के लिए वो एक ‘भटका हुआ नौजवान’ है। दंगाइयों का महिमामंडन करने वाले इन प्रोपेगंडा पोर्टलों ने कभी बलिदानी पुलिसकर्मियों व सैनिकों के परिवार के लिए आवाज़ उठाने में कोई दिलचस्पी नहीं रहती।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया