सड़क पर पिस्तौल लहराने वाले की कैसी प्राइवेसी, पोस्टर लगाना सही: SC में योगी सरकार

सुप्रीम कोर्ट में योगी सरकार ने अपने फ़ैसले को सही ठहराया

उत्तर प्रदेश में दंगाइयों के पोस्टर लगाने के मामले में आज गुरुवार (मार्च 12, 2020) को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इलाहबाद हाईकोर्ट ने उन पोस्टर्स को ‘अन्यायपूर्ण’ बताते हुए ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन’ करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस यूयू ललित और अनिरुद्ध बोस ने इस मामले की सुनवाई की। सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने बताया कि प्रशासन ने जब पाया कि उक्त 57 व्यक्ति दंगों में शामिल थे, तभी होर्डिंग्स लगाए गए। उन्होंने कोर्ट को बताया कि इन दंगाइयों में विभिन्न समुदायों के लोग शामिल हैं। एसजी ने एक जजमेंट का हवाला देते हुए ‘राइट टू प्राइवेसी’ वाली दलील को नकार दिया।

जस्टिस ललित ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति किसी वीडियो में दंगा करते हुए पाया जाता है तो वहाँ ‘राइट टू प्राइवेसी’ वाली दलील को बहुत हद तक किनारे किया जा सकता है, लेकिन सरकार के पास होर्डिंग्स लगाने की शक्ति कहाँ से आई, किस नियम के अनुसार मिली? उन्होंने कहा कि ऐसा कोई तो क़ानून होगा, जो इस फ़ैसले को सही ठहराए। इसके बाद एसजी मेहता ने जस्टिस पुत्तुस्वामी द्वारा दिए गए निर्णय और ऑटो शंकर केस फ़ैसले को पढ़कर सुनाया, जिसमें ऐसे मामलों में ‘प्राइवेसी के अधिकार’ को महत्ता नहीं दी गई है।

एसजी मेहता ने एक उदाहरण के जरिए अपनी बात साबित करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि कोई व्यक्ति सड़क पर पिस्तौल लहराते हुए घूम रहा है, तो उसे ‘राइट टू प्राइवेसी’ के तहत राहत नहीं दी जा सकती। उन्होंने इंग्लैंड के सुप्रीम कोर्ट का एक निर्णय भी पढ़ कर सुनाया। एसजी तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि दंगाइयों को हर्जाने की वसूली के लिए 13 फ़रवरी से 1 महीने तक का समय दिया गया था। एसजी ने एक पुराने जजमेंट्स का हवाला देकर यूपी सरकार के फ़ैसले को सही ठहराया। इसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को तीन सदस्यीय पीठ को रेफर कर दिया।

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राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ कोर्ट जाने वाले आइएएस अधिकारी की तरफ़ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए कॉन्ग्रेस नेता व वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने एसजी मेहता की दलीलों का विरोध किया। उन्होंने कहा कि अगर कोई किसी को ‘शेम’ करने के लिए पोस्टर्स लगा रहा है तो कोई लिंच करने का भी इरादा तो रख सकता है? उन्होंने कहा कि यहाँ कोई अराजकता तो है नहीं कि सरकार ये सब मनमानी करने लगे। उन्होंने कहा कि ‘नेम एंड शेम’ के नाम पर लोगों को भड़काया जा रहा है कि वो पोस्टर में नामित लोगों की लिंचिंग कर दें।

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वकील कॉलिन गोंजेल्व्स ने पूछा कि ऐसा कैसे साबित किया गया कि फलाँ व्यक्ति ने सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाई है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो इस डिटेल में नहीं जाना चाहते। उन्होंने पूछा कि होर्डिंग्स में नामित विडियो सबूत हैं क्या? मोहम्मद शोएब की तरफ से पेश कॉलिन ने कहा कि वो अल्पसंख्यकों के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं, उनका चित्र पोस्टर लगवा कर उनकी लिंचिंग कराई जा सकती है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया