खुद को कानून से ऊपर न देखें, FIR क्यों नहीं दर्ज किया; ये आपका कर्तव्य था: परमबीर सिंह से बॉम्बे हाई कोर्ट

बॉम्बे HC में परमबीर सिंह की सिंह की याचिका पर हुई सुनवाई (फाइल फोटो)

मुंबई पुलिस कमिश्नर के पद से हटाए जाने के बाद परमबीर सिंह ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक चिट्ठी लिखी थी। इसमें राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख पर निलंबित पुलिस अधिकारी सचिन वाजे को 100 करोड़ रुपए की वसूली का टारगेट देने का आरोप लगाया था। इसके बाद अपने तबादले को चुनौती देते हुए इस मामले की जाँच के लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। शीर्ष कोर्ट ने उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट जाने को कहा था, जहाँ बुधवार (31 मार्च 2021) को मामले की सुनवाई हुई।

बॉम्बे HC ने उन्हें फटकार लगाते हुए कहा है कि अगर पुलिस ऑफिसर होने के बावजूद किसी अपराध को लेकर FIR दर्ज नहीं कर रहे हैं तो इसका अर्थ है कि वो अपने कर्तव्यों के निर्वहन में असफल रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की पीठ ने उनकी याचिका पर सुनवाई की।

हाईकोर्ट ने अनिल देशमुख के खिलाफ जाँच का आदेश भी नहीं दिया। कोर्ट ने परमबीर सिंह से पूछा कि उन्होंने FIR क्यों नहीं दर्ज किया, जबकि ये उनका कर्तव्य है? कोर्ट ने कहा कि सिर्फ CM को पत्र भेजने से कुछ नहीं होता, इसके लिए परमबीर सिंह से जवाब माँगा जा सकता है।

HC की पीठ ने कहा कि कोई भी नागरिक अगर किसी अपराध के बारे में पता लगाता है तो उसका कर्तव्य है कि वो FIR दर्ज कराए। पीठ ने ने कहा कि कोर्ट सिर्फ रेयर मामलों में ही FIR का आदेश दे सकता है, सामान्यतः इसके लिए मजिस्ट्रेट कोर्ट का रुख किया जाना चाहिए। परमबीर सिंह को फटकार लगाते हुए कहा कि वो उच्च न्यायालय को मजिस्ट्रेट की अदालत न बनाएँ। कोर्ट ने पूछा कि एक पुलिस अधिकारी के लिए क्या कानून को साइड में रख दिया जाए?

उच्च न्यायालय ने ये भी सवाल पूछा कि क्या नेता-मंत्री और पुलिस अधिकारी कानून से ऊपर हैं? साथ ही परमबीर सिंह को चेताया कि वो खुद को कानून से ऊपर न देखें, कानून उनसे ऊपर है। हाई कोर्ट का कहना था कि एक उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारी होने के नाते परमबीर सिंह को आपराधिक कार्रवाइयों की अच्छी समझ है, इसलिए FIR के बिना ये याचिका कुछ भी नहीं। कोर्ट ने कहा कि उन्हें सीआरपीसी की अच्छी समझ है, उन्हें पहले FIR दर्ज करनी चाहिए थी।

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हाई कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में दो चीजों को देखना है- PIL को बरक़रार रखना और बिना FIR के जाँच का आदेश देने की कोर्ट की शक्ति। वहीं महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश आशुतोष कुम्बकोनी ने परमबीर सिंह पर विक्टिम कार्ड खेलने का आरोप लगाया। साथ ही परमबीर सिंह पर राज्य के गृह मंत्री के साथ उनकी दुश्मनी को छिपाने का आरोप लगाया। पीठ का पूछना था कि वो FIR कहाँ है, जिसके आधार पर CBI को जाँच का आदेश देने पर विचार किया जाए?

महाराष्ट्र सरकार की तरफ से दलील दी गई कि सिंह ने केवल कही-सुनी के आधार पर ही याचिका दायर कर दी और इस मामले में उनके पास कोई सबूत नहीं है। वहीं परमबीर सिंह के वकील ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को भेजे गए पत्र में ‘हार्ड फैक्ट्स’ होने की बात कही। महाराष्ट्र सरकार के वकील ने पूछा कि क्या परमबीर सिंह के पास कोई फर्स्ट हैंड सबूत है?

बता दें कि परमबीर ने ‘बिना किसी पूर्वाग्रह, निष्पक्ष और बिना किसी बाहरी दखल वाले’ जाँच की माँग की थी। उन्होंने आशंका जताई थी कि इस मामले में सबूत मिटाए जा सकते हैंए। उन्होंने खुद को ट्रांसफर के बाद DG (होमगार्ड) बनाए जाने के फैसले को भी चुनौती दी थी। उन्होंने अनिल देशमुख के करतूतों की जाँच के साथ-साथ अपने ट्रांसफर के फैसले पर रोक लगाने का आदेश जारी करने का निवेदन किया था।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया