#SayNoToWar का रोना रोने वालो, कभी #SayNoToTerrorism भी कह लिया होता

आतंकियों पर कार्रवाई होते ही ये गैंग सक्रिया हो उठता है

आज देश आतंकवाद को लेकर एक निर्णायक मोड़ पर आ खड़ा हुआ है। 14 फरवरी के दिन पुलवामा में हुए आतंकी हमले में हमारे 40 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए। जब मीडिया का एक वर्ग बलिदानी जवानों की जाति खोज रहा था, तब हमारे नीति नियंता और सेना इस योजना पर कार्य कर रही थी कि इस आतंकी हमले का जवाब कैसे देना है? हमारे जवान वापस नहीं आ सकते लेकिन दोषियों को सज़ा देना सरकार का कार्य है, जनता की माँग है। सरकार ने डॉक्टर मनमोहन सिंह वाला रुख न अपना कर आतंकियों को सबक सिखाने की ठानी और मंगलवार (फरवरी 26, 2019) को पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक के जरिए कड़ी कार्रवाई की।

पल-पल बदलता घटनाक्रम

भारत ने पिछले पाँच दशक में पहली बार पाकिस्तानी सीमा पार कर सैंकड़ों आतंकियों को जहन्नुम पहुँचा दिया। पल पल बदल रहे घटनाक्रम के बीच बौखलाए पाकिस्तान ने भारत स्थित सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया, जिसके जवाब में भारतीय वायु सेना ने एक पाकिस्तानी लड़ाकू विमान को मार गिराया। इतना कुछ होने के बाद इमरान ख़ान भी निकले और उन्होंने पुलवामा हमले की जाँच की बात कह शांति एवं बातचीत का रास्ता अपनाने की अपील की। विडंबना यह कि सुबह में पाकिस्तानी सेना भारतीय सैन्य ठिकानों पर हमला करती है और शाम को उस देश का मुखिया शांति की अपील करता है।

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इस घटनाक्रम के बीच भारतीय लिबरल गैंग के एक समूह विशेष को ख़ास तवज्जोह नहीं मिल पा रही थी। पुलवामा हमले के बाद उन्होंने सरकार पर हमला करते हुए जवानों की जान न बचा पाने का दोष मढ़ा था। सरकार की सक्रियता, प्रधानमंत्री की निर्णायक क्षमता और सेना के शौर्य का मिला जुला उदाहरण हमें ‘सर्जिकल स्ट्राइक 2’ के रूप में देखने को मिला। लिबरल गैंग ने इसके बाद वायुसेना की प्रशंसा करनी शुरू कर दी (जो होनी भी चाहिए)। लेकिन, हमने याद दिलाया कि कैसे डॉक्टर मनमोहन सिंह के समय भी यही वायुसेना थी, हमारे जवान तब भी साहसी, तैयार और शौर्यवान थे, यही मिराज 2000 था- लेकिन मुंबई हमलों में मारे गए पौने दो सौ लोगों के हत्यारों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।

हमने बताया कि कैसे डॉक्टर सिंह ने तत्कालीन वायुसेना प्रमुख को एयर स्ट्राइक करने से मना कर दिया था और युद्ध के भय से सीमा पार खुले साँढ़ की तरह विचर रहे आतंकियों पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई करने की कोई ज़रूरत नहीं समझी गई। जबकि इस सरकार ने कड़ा निर्णय लिया। पाकिस्तानी जवाबी कार्रवाई के बाद लिबरल गैंग सक्रिय हो उठा और उसने #SayNoToWar ट्रेंड कराना शुरू कर दिया। युद्ध के ख़िलाफ़ दलीलें दी जाने लगीं और युद्ध से बर्बाद हुए शहरों की तस्वीरों के जरिए जनता की भावनाओं को अपने पक्ष में करने की कोशिशें की जाने लगी। जनता को डराया जाने लगा कि युद्ध हुआ तो उनका और उनके इलाक़े का बुरा हाल होगा।

लिबरल गैंग की टाइमिंग और उनका कुटिल अभियान

सबसे बड़ी विडंबना तो यह कि युद्ध के ख़िलाफ़ रोना रोने वालों में वह भी शामिल हैं जो बन्दूक की नोक पर लाल सलाम बोल कर आज़ादी लेने की बात करते हैं। ये वो गैंग है, जो यूँ तो कभी शांति की बातें नहीं करेगा लेकिन ऐसे निर्णायक मौक़ों पर भारतीय हितों की परवाह किए बिना अपना घटिया एजेंडा चलाएगा। ऐसे समय पर जब हमारे देश की सेना पैंतरेबाज़ पाकिस्तान के किसी भी हमले का कड़ा प्रत्युत्तर देने के लिए तैयार बैठी है, युद्ध को लेकर हौवा फैलाने वालों को क्या सबसे पहले यह नहीं सोचना चाहिए कि यह सब शुरू कहाँ से हुआ? क्या आतंकियों पर कार्रवाई युद्ध को बढ़ावा देना है?

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पाकिस्तानी चैनलों पर बरखा दत्त की दलीलें चलाई जा रही हैं। पाकिस्तानी पत्रकार भारतीय चैनलों पर आकर राजदीप सरदेसाई के विचारों का हवाला देते हैं। जो अपने देश, सरकार और सेना के साथ ही नहीं खड़ा है, उसके साथ क्या किया जाना चाहिए? सवाल पूछे जाने चाहिए, चर्चाएँ होनी चाहिए लेकिन देशहित की क़ीमत पर नहीं। लिबरल गैंग से हमारा पहला सवाल- क्या पाकिस्तानी आतंकी दशकों से भारत में जो कर रहे हैं, वो युद्ध नहीं है क्या? अगर वो युद्ध नहीं है तो आपको युद्ध की परिभाषा समझने की ज़रूरत है। इसके लिए हम अपना समय व्यर्थ नहीं करेंगे बल्कि वो आपको ख़ुद डिक्शनरी में जाकर देखना पड़ेगा।

युद्ध तो कब से चल रहा है…

आँकड़े बोलते हैं और कभी-कभी तमाचों का काम करते हैं। हालाँकि, यहाँ जिन आँकड़ों का जिक्र हम करने जा रहे हैं, वे हरेक भारतीय के लिए दुःखदाई है लेकिन हालात को पूरी तरह समझे बिना टिप्पणी नहीं की जा सकती। पिछले 27 वर्षों में जम्मू-कश्मीर में 41,000 जानें गई हैं। सरकारी डेटा के अनुसार, कश्मीर में प्रत्येक वर्ष औसत 1500 से भी अधिक जानें जाती हैं, यानी 1 दिन में क़रीब 4 लोग काल के गाल में समा जाते हैं। हमारे 14,000 नागरिक मारे गए और 5000 से भी अधिक जवान वीरगति को प्राप्त हुए- क्या यह युद्ध नहीं है क्या? जवाबी कार्रवाइयों में 22,000 आतंकियों को मौत के घात उतारा गया।

आत्मघाती हमले, बम विस्फोट, हिंदुत्व के ख़िलाफ़ जिहाद का प्रशिक्षण, पाकिस्तान में भारत विरोधी भाषणों का खुलेआम प्रचार-प्रसार, भारत के सार्वजनिक स्थलों पर हमले, घुसपैठ, सीमा पर सीजफायर का उल्लंघन, भारतीय मुस्लिम युवकों को बहकना, अलगाववाद की बात, कश्मीर की कथित आज़ादी के लिए ख़ूनी अभियान, भारतीय जवानों के ऊपर हमले पर हमले- यह सब क्या है? कौन कर रहा है? इसके मास्टरमाइंड कहाँ बैठे हैं? ये बातें लगभग सभी को पता है लेकिन युद्ध तो भारत भड़का रहा है न! बिना युद्ध के हमारे 5000 से भी अधिक जवान वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं तो ठीक लेकिन 350 आतंकियों को मौत के घाट क्या उतारा गया, लिबरल गैंग की तो नींद ही उड़ गई।

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1993 में मुंबई में बम ब्लास्ट, 1998 कोयम्बटूर बॉम्बिंग्स, 2001 में भारत की संसद पर हमला, 2002 में अक्षरधाम जैसे पवित्र स्थल को निशाना बनाया गया, 2003 और 2006 में मुंबई में ब्लास्ट्स, 2005 में दिल्ली में, 2006 में बनारस में, 2007 में समझौता एक्सप्रेस में धमाके, हैदराबाद में आतंकी कार्रवाई, 2008 में दिल दहला देने वाला 26/11, 2016 में उरी और पठानकोट- यह सब क्या था? क्या यह सब भारत के ख़िलाफ़ युद्ध नहीं था? लगातार एक पर एक हमले और बम ब्लास्ट कर भारतीय नागरिकों और जवानों को नुक़सान पहुँचाने के साथ-साथ भारत के बड़े सार्वजनिक स्थलों को बर्बाद करने की कोशिशें- इस से बढ़ कर युद्ध क्या होता है? उन्हें शांति का पाठ पढ़ाया आपने?

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यह एक एकतरफा युद्ध है। आतंकियों और उनके पोषकों द्वारा भारत के ख़िलाफ़ चलाया जा रहा एकतरफा युद्ध। भारत तो बस आतंकियों पर कार्रवाई करता है, जो लिबरल गैंग की नज़र में युद्ध है। भारत की भूमि पर हुए हर एक आतंकी हमले के बाद अगर यहाँ के लिबरल्स ने ‘से नो टू वॉर’ ट्रेंड कराया होता तो शायद भारतीयों का मनोबल बढ़ता और आतंकियों के हौंसले पस्त होते। लेकिन, ऐसा न हो सका। उन्हें युद्ध के ख़िलाफ़ दलीलें तभी याद आई जब सरकार आतंकियों पर कड़े प्रहार करने का निश्चय कर चुकी है, कर रही है और आगे भी आतंकियों के प्रति कोई नरमी नहीं बरतने की बात हो रही है।

क्या आतंकियों के हाथों हमारी क्षति तुम्हें सुकून देती है?

लिबरल गैंग से हमारा दूसरा सवाल- क्या आतंकियों को खुली छूट दे दी जाए कि वे जब चाहे आएँ और हम में से किसी की भी हत्या कर चलते बनें? हमारे ख़ुफ़िया तंत्र को सटीक जानकारी है कि वे आतंकी कहाँ छिपे हैं (एयर स्ट्राइक के दौरान बनाए गए सटीक निशानों को ही ले लीजिए), और यह सब जान कर भी सरकार अपने लोगों और जवानों को मरने के लिए छोड़ देती है तो फिर सरकार का औचित्य ही क्या? यह सही है कि युद्ध समस्या का हल नहीं है लेकिन आतंकियों का सफाया करना सरकार का दायित्व है, यह युद्ध नहीं है। युद्ध वो है जिसे आतंकियों द्वारा छेड़ा गया है, भारत के ख़िलाफ़। युद्ध वो है जो पाकिस्तान द्वारा आतंकियों को संरक्षण और समर्थन देकर शुरू किया गया है।

बन्दूक की नाली पर सत्ता लेने की बात करने वाले जब #SayNoToWar का रोना रोने लगे, तो समझ जाइए कि दाल में कुछ काला है। इन्हें हमारे जवानों की चिंता तब नहीं सताती जब दंतेवाड़ा में नक्सलियों द्वारा धोखे से हमारे 76 सीआरपीएफ जवानों को मार दिया जाता है। इन्हें तब हमारे जवानों की चिंता नहीं सताती जब पुलवामा में एक साथ 40 जवानों को बम से उड़ा दिया जाता है। तब ऐसे अभियान नहीं चलाए जाते। तब युद्ध के ख़िलाफ़ दलीलें नहीं दी जाती। लेकिन, जैसे ही आतंकियों पर कार्रवाई का समय आता है, ये अपने बिल से निकल आते हैं और युद्ध बनाम शांति की बहस क्रिएट कर उसमें कूद पड़ते हैं।

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अभी समय है देशवासियों का मनोबल ऊँचा रखने का। अभी समय है ऐसा कोई भी पब्लिक परसेप्शन नहीं तैयार करने का, जिस से सरकार की सोच और निर्णयों पर गलत असर पड़े। अभी समय है जनता को समझाने-बुझाने का, युद्ध का हौवा दिखा कर डराने का नहीं। अभी समय है देश की सुरक्षा को सर्वोपरि रख कर आतंकियों की निंदा करने का। अगर लिबरल गैंग में हिम्मत है तो आतंकियों द्वारा शुरू किए गए इस युद्ध की जड़ तक पहुँचें और जनता को बताएँ कि युद्ध में कौन है और कौन नहीं। अगर सरकार, सेना और देश पर भरोसा नहीं रख सकते हैं तो देश को अपना कहना छोड़ दीजिए।

और #SayNoToWar वाले गीत उन आतंकियों को सुनाए जाने चाहिए जिन्होंने भारत के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ रखा है। ये रोना उनके सामने रोना चाहिए जिन्होंने बिना युद्ध के ही हमारे 5000 से भी अधिक जवानों की जान ले ली। ये सीख उन्हें सिखाई जानी चाहिए जिन्होंने हमारे सैन्य ठिकानों पर हमले किए। भारत सरकार ने आतंकियों पर कार्रवाई की, यह शांति की दिशा में किया गया प्रयास है- युद्ध नहीं है। गलत समय पर गलत ट्रेंड चला कर जनता को बरगलाने के प्रयासों का पर्दाफाश किया जाना चाहिए।

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.