डर का माहौल! भारत के सबसे ‘ईमानदार’ पत्रकार 3 दिन से कहाँ गायब? क्या यह चुप्पी ही है आज का शो

मुख्यधारा मीडिया में डर का माहौल है!

जिन्हें लगता है कि साल 2014 में भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद से सब कुछ चौपट हो चुका है उनके लिए वह व्यक्ति एक अकेली उम्मीद है और तमाम मूक लोगों की एकमात्र आवाज है। उनका हर रात एक घंटे का शो आता है, सिर्फ़ इसीलिए ताकि इस जहरीली दुनिया में उनके दर्शकों को कुछ पल सुकून के मिल सकें। 

उनके शो में कोई डर का माहौल नहीं होता, कोई निराशा नहीं होती, कहीं अहिष्णुता नहीं होती, कुछ होता है तो वो होता बस और बस न्याय। वह अपनी साधारण सी आवाज में विषय को उठाते हैं और इस तरह तथ्यों को रखते हैं कि जो कोई भी उनके कटघरे में खड़ा होता है वह दोषी बने बिना बाहर नहीं निकलता।

यही सच्ची पत्रकारिता है। सच बोलना बिलकुल वैसे जैसी आपसे उम्मीद हो।

लेकिन, बावजूद इतनी लोकप्रियता के वह पिछले तीन दिनों से कहाँ हैं? हमारे जीवन में जो आशा की किरण थी वह चली गई है और ये चारों तरफ अंधेरा क्यों है भाई?

क्या देश के सबसे ईमानदार पत्रकार की दी न्यूज के साथ कुछ हुआ है जो उन्हें छिपना पड़ रहा है? वो कहाँ है? या कोई एक ऐसी कहानी आ गई है जिसे वह कवर नहीं करना चाहते? वह डर रहे हैं क्या? नहीं-नहीं वह तो निडर हैं…तो फिर? उनकी क्या मंशा है?

और इस संकट की घड़ी में उनके लाखों फॉलोवर्स का क्या हुआ? उनके ज्ञान के बिना उनके दर्शक क्या करेंगे? पिछली बार तो मैंने सुना था कि उनके फॉलोवर्स उनके प्यार में इतना डूबे कि वह अपने नाम से उनका नाम जोड़ रहे हैं। ये लोगों का उनके लिए और उनकी निडर पत्रकारिता के लिए प्यार और श्रद्धा नहीं तो क्या है? एक रात उन्हें अपने ही शो में इस प्यार का पता चला था, सोचिए उनके फॉलोवर्स के लिए वो दिन क्या रहा होगा?

विचार करिए कि सिंघू बॉर्डर के साथी उनके समर्थन में अपना नाम बदल लें। या कल्पना करिए कि कोई पूरा का पूरा गाँव उन्हीं के नाम पर अपना नाम रख ले और उनके पीछे पीछे चलने लगे…. कैसा लगता है न ये सब सुन कर? है विश्व का कोई अन्य पत्रकार जो इतनी वफादारी कमा पाए?

इतने प्यार के बावजूद हमारे प्रिय पत्रकार कहाँ हैं? वह क्यों देश से इस सबसे बड़ी खबर को छिपा रहे हैं? उन्हें किस बात का डर है। सब तो उनका है। वह अपने शो में विपक्षियों के मत को जगह नहीं देते। उनके शो में कोई नहीं चिल्लाता। सिर्फ़ वही होते हैं। उनके पास कहने को सच्चाई होती हैं, जिसकी प्रमाणिकता भी यही होती है कि वह बात उन्होंने बोली हैं।

यही चीज उनके शो को महान बनाती है कि उसमें सिर्फ़ और सिर्फ वही बोलते हैं। शायद शो में यदि कोई और आ जाएगा तो उनकी आवाज में खलल पड़े और उनका शो भी बाकी चैनल पर आने वाले शो जैसा हो जाए। जाहिर है चीजें अच्छे से तभी हो पाती हैं जब आपका एक नजरिया हो और बिना किसी हल्ले वाली एक आवाज हो। और सबसे बड़ी बात तो ये है कि जब उन्होंने हमें सच दिखाने को कहा हुआ है तो हम कहीं और क्यों जाएँ?

उनके तो कर्मचारी भी उनसे डरते हैं। एक बार उन्होंने अपने एम्प्लॉय को वीडियो के क्लिप्स काटकर यूट्यूब पर अपलोड करने से मना कर दी थी। जरा सोचिए! क्या मोनालिशा टुकड़ों में बिखरी अच्छी लगती हैं क्या? नहीं न। तो हमारे पत्रकार का शो क्यों क्लिपों में जाए? मान लीजिए कि यदि ऐसा हो जाता तो क्या आप उस मास्टरपीस को सराह पाते? अब मैं तो छोटा आदमी हूँ। मैं तो मोनालिशा को पूरा देख कर नहीं समझ पाता उसके टुकड़ों को तो क्या ही समझूँगा। लेकिन मुझे पता है कि अन्य लोग जानते होंगे। उनका शो बिलकुल वैसा ही है। इसलिए उन्होंने कहा कि यूट्यूब पर पूरा शो ही अपलोड होना चाहिए।

उन पर यदि अपना तरीका होता तो शायद वह लोगों को यूट्यूब या टीवी पर सिर्फ़ अपना ही शो देखने देते। कहीं बीच में छोड़कर जाने की इजाजत नहीं होती। कुछ खाना नहीं होता। स्विच तो भूल कर भी नहीं बदलना होता। बिलकुल सावधान स्थिति में हर रात उनके ऐतिहासिक घोषणाएँ सुननी होतीं। मैं शर्त लगा सकता हूँ कि सिंघू बॉर्डर पर आधे से ज्यादा साथी ऐसा कर भी रहे होंगे।

तब भी, पता नहीं वो कहाँ चले गए हैं? वो अपने शो से खुद को क्यों छिपा रहे हैं? वह क्यों अपने फॉलोवर्स को नजर नहीं आ रहे।

इससे पहले अन्य लोगों ने उन्हें बहुत बार चुप करवाने की कोशिश की थी। लेकिन वह हर बार हमेशा अपने दर्शकों तक पहुँच जाते थे। वह अपने फॉलोवर्स के लिए अंधेरी स्क्रीन के पीछे से बोलते सुनाई देते थे। जहाँ सिर्फ़ आवाज आती थी और कोई विजुअल्स नहीं दिखता था।

इसके अलावा जब जब असहिष्णुता बढ़ती थी वह अपने दर्शकों तक किसी न किसी तरह बात रखते थे। वह चेहरों को पेंट करवा कर शो में बात करते और खुद ही उनके मतलब भी समझते। बाद में वही भाषा अपने दर्शकों को भी समझा देते। एक महान ज्ञानी आदमी को अपने अनुयायियों तक पहुँचने से कोई फासीवादी सरकार नहीं रोक सकती थी। लेकिन अब चीजें बदल गई हैं। अगर कोई बड़ी स्टोरी आई है और आप मौके पर हैं तो आप उसे इग्नोर कर सकते हैं। लेकिन यदि आपने उस स्टोरी को उठा लिया है तो आपको सच बोलना होगा और सच बोलने के लिए कोई अंतरराष्ट्रीय अवार्ड नहीं मिलेंगे।

शायद इसलिए रेडियो चुप है। कोई ब्लैक स्क्रीन नहीं है। कहीं पेंट हुए चेहरे नहीं हैं और कोई मीम नहीं है। सिर्फ़ चुप्पी है।

इसलिए उनके दर्शकों को मैं कहना चाहता हूँ: यही चुप्पी तुम्हारे रक्षक की हकीकत है। ये चुप्पी ही आज का शो है।

Abhishek Banerjee: Abhishek Banerjee is a columnist and author.