हिंदुओं के रेप में जाति का समीकरण परोसता मीडिया, TRP के लिए 13 साल पहले ही दिख गया था मीडिया का गिद्ध रूप

फर्जी स्टिंग के कारण उमा खुराना की हुई थी सरेआम पिटाई

हाथरस मामले के बीच ये याद करने की ज़रूरत है कि बारह वर्ष पहले, साल का करीब-करीब यही वक्त था (अक्टूबर 2008), जब उमा खुराना ने एक स्टिंग ऑपरेशन को लेकर अपना मानहानि का मुकदमा वापस लिया। उनका कहना था कि टीवी न्यूज़ चैनल के साथ, अदालत के बाहर ही संतोषजनक तरीके से मामला सुलझा लिया गया है।

उमा खुराना ने नवम्बर 2007 में चैनल के रिपोर्टर और सीईओ पर झूठी खबर चला कर उनकी इज्जत उछालने का मुकदमा करवाया था। क्या मामला सिर्फ मानहानि का था? चाहे कितनी भी तमीज से कह लिया जाए, ये सिर्फ मानहानि का मामला नहीं कहा जा सकता।

उमा खुराना को भीड़ ने पकड़कर खूब पीटा था, उनके कपड़े फाड़ दिए गए। सरेआम दिल्ली में जब ये घटना हुई थी तो जनता की सहानुभूति भी मीडिया लिंचिंग की शिकार हुई इस महिला के साथ नहीं थी। उस वक्त उमा खुराना केन्द्रीय दिल्ली के सर्वोदय कन्या विद्यालय में गणित की शिक्षिका थीं।

दिल्ली में एक समाचार चैनल “जनमत चैनल” को नाम बदलकर “लाइव इंडिया” के नाम से दोबारा लॉन्च किया गया था। मार्कंड अधिकारी के ब्रोडकास्ट इनिशिएटिव्स लिमिटेड के इस चैनल पर पहले चर्चाओं और विचारों वाले कार्यक्रम आते थे, लेकिन अब इस चैनल का ध्यान 24X7 न्यूज़ पर था। अगस्त 2007 में “लाइव इंडिया” के कार्यक्रमों में बदलाव आना शुरू भी हो चुका था।

ऐसे कामों के लिए नई भर्तियाँ भी हो रही थीं और रजत शर्मा के न्यूज़ चैनल “इंडिया टीवी” से निकलकर सुधीर चौधरी ने मार्च 2007 में “लाइव इंडिया” में सीईओ के तौर पर काम करना शुरू कर दिया था। “लाइव इंडिया” ने अपना टैग लाइन बदलकर “खबर हमारी फैसला आपका” रख लिया था। उसके टैग लाइन की ही तरह लोगों ने फैसला भी लिया।

अगस्त 2007 में ही आईबीएन7 से लाइव इंडिया में आए पत्रकार प्रकाश सिंह ने एक दिन एक स्टिंग ऑपरेशन दिखा दिया। इसमें उमा खुराना पर शिक्षिका होने की आड़ में वेश्यावृति करवाने के आरोप थे। स्टिंग को बिना किसी जाँच के सुधीर चौधरी ने अपने चैनल पर चलवा दिया। इसका नतीजा ये हुआ कि गुस्साई हुई भीड़ ने उमा खुराना के कपड़े फाड़ डाले और उनके साथ जमकर मार पीट की।

सच्चाई सुधीर चौधरी, प्रकाश सिंह, और लाइव इंडिया चैनल की दिखाई खबर में कितनी थी, इसकी जाँच जब तक होती, उससे पहले ही काफी कुछ हो चुका था। मीडिया लिंचिंग में सरे बाजार कपड़े फाड़े जाने और पिटाई के अलावा भी उमा खुराना को काफी कुछ भुगतना पड़ा था। दिल्ली के शिक्षा विभाग ने उन्हें नौकरी से भी निकाल दिया था।

जब मामले की जाँच शुरू हुई तो पता चला कि प्रकाश सिंह का बनाया हुआ स्टिंग का वीडियो फर्जी था। जिस लड़की को दिखाया गया था, उसे पत्रकार बनना था, और यही लालच देकर प्रकाश सिंह ने कैमरे पर उससे उमा खुराना पर झूठा, वैश्यावृति करवाने का आरोप लगवाया था

प्रकाश सिंह को गिरफ्तार किया गया और उस पर मुकदमा भी दाखिल हुआ था। सुधीर चौधरी ने कहा कि उनके साथ धोखा हुआ है। सारी गलती उनके फर्जी पत्रकार प्रकाश सिंह की थी और उनसे पूरी जाँच ना कर पाने भर की मानवीय भूल हुई है। मीडिया लिंचिंग करवाने वाले सुधीर चौधरी अब एक दूसरे बड़े चैनल में अक्सर नजर आ जाते हैं। उमा खुराना का क्या हुआ मालूम नहीं।

प्रकाश सिंह जैसे पत्रकार और फर्जी स्टिंग चलाने की आदत सुधरी हो, ऐसा कहा नहीं जा सकता। ब्रेकिंग न्यूज़ की टीआरपी लेने के चक्कर में ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं और किसी ना किसी बेगुनाह को मीडिया लिंचिंग का शिकार होना पड़ता है।

हाथरस मामले में भी ऐसा ही हुआ लगता है। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ये आम बात है कि प्रेम प्रसंगों में जब युगल पकड़े जाते हैं या उनके भाग जाने पर भी मुकदमा होता है तो युवक पर अपहरण और बलात्कार के अभियोग लगाए जाते हैं। गैर जमानती धाराओं से छूटकर आने में युवक को जितना समय लगता है, उतने में अक्सर लड़की की शादी कहीं और हो चुकी होती है।

बलात्कार के मामलों में “कन्विक्शन रेट” के 30% से भी कम होने की एक वजह ये भी है कि इनमें से कई मामले फर्जी होते हैं। जुलाई 2014 में वीमेन कमीशन ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें बताया गया था कि अप्रैल 2013-जुलाई 2014 के बीच दर्ज हुए बलात्कार के 53.2% मामले झूठे थे

ऐसे मामलों में मीडिया लिंचिंग भी कोई नई बात नहीं है। अख़बारों में ऐसी ख़बरों के शीर्षक अक्सर “नाबालिग से दरिंदगी” जैसे होते हैं। इसके अलावा लम्बे समय तक फिल्मों के जरिए ठाकुरों को आततायी, ब्राह्मणों को धूर्त या गाँव के लाला को उधार के बदले शोषण करने वाला दर्शाने का भी समाज पर असर पड़ा होगा। इस वजह से जब बलात्कार जैसे मामलों को जातिय कोण के साथ “परोसा” जाता है तो समाज पर उसका असर और त्वरित प्रतिक्रिया स्वाभाविक ही है।

गौरतलब ये भी है कि जातियों का कोण समाचारों में तभी नजर आता है, जब मामला हिन्दुओं का हो। दूसरे समुदायों के बलात्कारियों की खबर अगर चलती भी है तो मजहब या जाति जैसे मामले नजर नहीं आते।

जो भी हो, हाथरस मामले को सीबीआई को सौंपे जाने की अनुशंसा हो गई है। इस एक मामले की आड़ में यूपी के ही सर काट लेने या बुलंदशहर जैसे दूसरे मामले दब भी गए हैं। पंद्रह दिनों तक दिल्ली में इलाज करवा रही लड़की को दिल्ली के ही नेता, मौत के बाद हाथरस में देखने क्यों पहुँचे, ये सवाल पूछना चाहिए या नहीं, ये हमें मालूम नहीं।

Anand Kumar: Tread cautiously, here sentiments may get hurt!