विधायक गायब होंगे, वापस आएँगे और केजरीवाल मीडिया के ‘चाणक्य’ बन जाएँगे: मुद्दा शराब-सिसोदिया, AAP ने बना दिया गाँधी-गंगाजल का

अरविंद केजरीवाल ने शराब घोटाले से ध्यान भटकाने के लिए शुरू किया नया ड्रामा?

कुछ नेताओं को लगता है कि राजनीतिक बयानबाजी में कुछ भी सच नहीं होता, झूठ ही झूठ होता है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ऐसी ही राजनीति कर रहे हैं, जैसी नब्बे के दशक की फिल्मों में सफेदपोश गुंडे करते थे। वो जो बयान देते हैं, उसका कोई फैक्ट-चेक नहीं होता। वो जो भी बोल दें, आरोप हो जाता है। वो जो भी कर दें, हाइप बन जाती है। और ये सब करने में मीडिया उनकी बखूबी मदद करता है।

दिल्ली में भी यही हो रहा है। आगे बढ़ने से पहले जरा एक बार संक्षिप्त में घटनाक्रम आपको समझा दें। दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, जो कि प्रदेश के शिक्षा मंत्री के रूप में ज्यादा प्रचारित किए जाते हैं, आबकारी विभाग के मंत्री भी हैं। अतः, शराब वाला विभाग उनके अंतर्गत ही आता है। उन पर शराब माफिया के साथ मिल कर घोटाले का आरोप है। आरोप ये है कि उन्होंने कोरोना महामारी को बहाना बना कर शराब माफिया को टेंडर लाइसेंस में 144.36 करोड़ रुपए की छूट दी।

इसके लिए दिल्ली के आबकारी नियमों में बदलाव कर दिया गया और उप-राज्यपाल की अनुमति तक नहीं ली गई। नवंबर 2021 में दिल्ली की नई एक्साइज पॉलिसी आई थी। CBI ने इस सम्बन्ध में FIR दर्ज की है और मनीष सिसोदिया के घर पर छापेमारी भी की गई। मनीष सिसोदिया पर आरोप है कि उन्होंने विदेशी बियर पर प्रति बोतल 50 रुपए की लगने वाली इम्पोर्ट फीस हटा ली, जिससे शराब माफिया को फायदा पहुँचा, बियर सस्ती हुई और सरकारी खजाने को चूना लगा।

एयरपोर्ट ऑथोरिटी द्वारा अनुमति न मिलने के बावजूद वहाँ दुकान खोलने वाले L1 लाइसेंसधारियों के 30 करोड़ रुपए जब्त करने के बदले उन्हें लौटा दिए जाने के आरोप भी हैं। साथ ही L7Z और L1 लाइसेंस की मान्यता को 2 महीने के लिए LG की अनुमति के बिना ही बढ़ा दिया गया। CBI की FIR में शराब कारोबारी समीर महेन्द्रू का नाम भी शामिल है, जो सिसोदिया का करीबी है। इसमें 15 आरोपित हैं। दिल्ली की शत-प्रतिशत शराब की दुकानें प्राइवेट कर दी गईं।

लेकिन, देखिए कैसे मनीष सिसोदिया के ठिकाने पर हुई छापेमारी को पूरी तरह से राजनीतिक रंग दे दिया गया। पहले तो इसे ‘राजपूत जाति’ से जोड़ा गया। शायद AAP को उम्मीद थी कि इससे राजपूत संगठन और समाज उसके पीछे खड़ा हो जाएगा, भाजपा का विरोध हो जाएगा, या कम से कम इस कार्रवाई का विरोध तो करेगा ही। ठीक ऐसे ही, जैसे दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन पर मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में ED की कार्रवाई को जैन समाज पर अत्याचार बताया गया था।

फिर शुरू हुआ नया ड्रामा। दिल्ली में 70 में से 59 विधायक अरविंद केजरीवाल के हैं, 8 भाजपा के पास हैं। ऐसे में भाजपा कभी नहीं चाहेगी कि सत्ताधारी दल के इतने बड़े बहुमत को तोड़ा जाए और सरकार बनाने के लिए ज़रूरी 28 अतिरिक्त विधायक वहाँ से ले आए जाएँ। महाराष्ट्र का मामला अलग है, क्योंकि वहाँ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है। विद्रोह शिवसेना में हुआ। बिहार में नीतीश कुमार की जदयू ने भाजपा पर उसे तोड़ने की साजिश का आरोप लगाते हुए राजद के साथ गठबंधन कर लिया।

इन सबके बीच अरविंद केजरीवाल ने भी मौका सूँघ लिया और निकल गए ड्रामा करने। ड्रामे का पहला चरण था ये आरोप लगाना कि भाजपा करोड़ों खर्च कर के AAP विधायकों को तोड़ रही है। नेताओं ने अलग-अलग आँकड़े दिए, अंत में जाकर 800 करोड़ रुपए वाला आरोप सेटल हुआ। अब अरविंद केजरीवाल पूछ रहे हैं कि क्या ये रुपए पीएम केयर्स से आएँगे? आरोप लगाने के बाद ‘ऑपरेशन लोटस’ में फेल करने का ड्रामा शुरू हो गया।

इस नाम का कोई ऑपरेशन है भी या नहीं, ये खुद भाजपा को नहीं पता होगा। लेकिन, मीडिया ने कुछ राज्यों में सरकार बदलने के कारण इसे यही नाम दे दिया। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने विधायकों की बैठक बुला ली। खबर दौड़ाई गई कि कुछ विधायकों से संपर्क नहीं हो पा रहा है। फिर बैठक में 9 विधायक गायब थे, जिनमें से मनीष सिसोदिया हिमाचल प्रदेश में चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं। बताया गया कि कोई विधायक गायब नहीं है, फोन पर उनसे बात हुई है।

किसने विधायकों को खरीदने की कोशिश की? AAP की तरफ से कोई नाम नहीं बताया गया है। किन नंबरों से विधायकों को फोन कॉल आए? इस पर कुछ भी नहीं बताया गया है। किस भाजपा नेता ने लालच दिया? किसी का नाम नहीं लिया गया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि अरविंद केजरीवाल खुद अपने लोगों को ‘भाजपा का एजेंट’ बना कर अपने ही विधायकों को फोन कॉल करवा रहे हों? तभी जुबानी हमले ही सिर्फ किए जा रहे हैं। उन्होंने कहीं कोई शिकायत दी है विधायकों को मिल रही तथाकथित धमकी या लालच को लेकर? कहीं कोई FIR दर्ज कराई है? कोई ऑडियो/वीडियो/स्क्रीनशॉट जारी किया है?

अब राजनीति देखिए। मनीष सिसोदिया की तो बात ही नहीं हो रही। बात हो रही है भाजपा की, भाजपा के ऑफर की, अरविंद केजरीवाल और AAP के आरोपों की, विधायकों के बैठक की, तथाकथित ‘ऑपरेशन लोटस’ के फेल होने की और भाजपा द्वारा आरोपों के दिए जा रहे जवाब की। मनीष सिसोदिया छोड़िए, इस शराब घोटाले की ही बात नहीं हो रही। इसे पूरे परिदृश्य से गायब करने के लिए ही तो सारा ड्रामा रचा गया था।

बात शराब घोटाले की थी, अब चर्चा महात्मा गाँधी के राजघाट पर AAP विधायकों के दौरे और फिर वहाँ भाजपा नेताओं द्वारा गंगाजल के छिड़काव की हो रही है। अरविंद केजरीवाल के पक्ष में PR होगा। उन्हें ‘चाणक्य’ बताया जाएगा, जैसे महाराष्ट्र में NCP सुप्रीमो शरद पवार को बताया गया था। ‘केजरीवाल ने अपने विधायकों को एकजुट रखा’ – ये बता कर उनकी छवि चमकाई जाएगी। वैसे भी नीतीश कुमार और ममता बनर्जी के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए विपक्षी चेहरों में वो खुद को शामिल कराना चाह ही रहे हैं।

तो बधाई हो! राजनीति का एक नया चाणक्य पैदा हो गया है, जिसने मीडिया की नज़र में भाजपा को फेल कर दिया। विधायक गायब होंगे, फिर वापस आएँगे – बस अरविंद केजरीवाल बन गए ‘चाणक्य’। अब 800 करोड़ बोलने के लिए एक भी पैसा थोड़े न लगता है। आँकड़ा लिया, आरोप लगा दिया। भाजपा आरोप का जवाब देगी। शराब घोटाला जनता की नज़र से हट जाएगा। फिर पुरानी शराब नीति लागू हो जाएगी 1 सितंबर से। सब कोई सब कुछ भूल जाएगा। जाँच चलती रहेगी।

अनुपम कुमार सिंह: भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।