नेहरू से राहुल तक, अयोध्या से कुंभ तक… इस्लामी कट्टरपंथियों की तरह कॉन्ग्रेस के निशाने पर हिंदू

नेहरू से राहुल तक वही हिंदू घृणा

ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जब दिल्ली के पहाड़गंज स्थित एक होटल में पुलिस ने दबिश देकर जान मोहम्मद डार उर्फ जहाँगीर को दबोचा था। इस इस्लामी आतंकी के पास से हथियार के अलावा भगवा वस्त्र, कलावा, कुमकुम मिले थे। बताया जाता है कि साधु के वेश में उसे गाजियाबाद के डासना स्थित शिव-शक्ति पीठ के महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती की हत्या करनी थी।

यह इकलौता उदाहरण नहीं है जब हिंदू प्रतीकों की आड़ में इस्लामी कट्टरपंथियों ने हिंदुओं को निशाना बनाने की कोशिश की। याद करिए लखनऊ में भगवा कुर्ता पहने जेहादियों द्वारा कमलेश तिवारी की हत्या। या फिर याद करिए मुंबई में 2008 में हुए आतंकी हमले के दौरान हाथ में कलावा बाँध निदोर्षों पर ताबड़तोड़ फायरिंग करते हुए इस्लामिक जेहादी को। आप याद करते जाएँगे पर ऐसी घटनाओं की फेहरिस्त खत्म नहीं होगी।

यह अजीब विडंबना है कि जब भी बात हिंदुओं की, उनके अराध्य और आस्था की या फिर परंपराओं की आती है, देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल, देश पर सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाली पार्टी, प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष तौर पर सबसे लंबे समय तक हुकूमत करने वाला परिवार, इस्लामिक कट्टरपंथियों की तरह ही अपना चरित्र दिखलाता है। नेहरू से राहुल गाँधी तक कॉन्ग्रेस ने सियासत के कई मोड़ देखे, लेकिन हिंदू घृणा और मुस्लिम तुष्टिकरण की उसकी चाल वैसी ही रही है।

हिंदुओं से कॉन्ग्रेस की घृणा का ताजा-ताजा उदाहरण उसका लीक टूलकिट है। इसमें कुंभ को कोरोना का सुपर स्प्रेडर बताकर प्रोपेगेंडा को हवा देने की रणनीति का खाका खींचा गया है। साथ ही ताकीद की गई कि यदि कोई इसके जवाब में ईद का जिक्र करे तो उसकी अनदेखी कर देनी है।

ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जब इस तरह का चरित्र कॉन्ग्रेस ने अयोध्या राम मंदिर के लिए चलाए गए देशव्यापी धन संग्रह अभियान या उससे पहले अयोध्या में भूमिपूजन और उससे भी पहले राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर दिखाया था। इसी साल फरवरी में यूपीए की सरकार में मंत्री रहे कॉन्ग्रेसी पवन बंसल में कहा था कि उनसे भी राम मंदिर के लिए चंदा माँगा गया, लेकिन उन्होंने नहीं दिया। कॉन्ग्रेस विधायक और पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया ने राम मंदिर के लिए धन संग्रह को दारूबाजी से ही जोड़ दिया था।

राहुल और प्रियंका की आज की कॉन्ग्रेस से एक पीढ़ी पीछे चलें तो राम सेतु पर यूपीए सरकार का सुप्रीम कोर्ट में दिया हलफनामा हमारे सामने है। इस हलफनामे के जरिए भगवान राम के अस्तित्व को कॉन्ग्रेस ने तब नकारा था, जब पर्दे के पीछे से राहुल की माँ सोनिया गाँधी हुकूमत को हाँक रही थी। इसी दौर में कॉन्ग्रेस के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश के संसाधनों पर बहुसंख्यक हिंदुओं के अधिकार को एक तरह से खारिज करते हुए अल्पसंख्यकों का पहला हक बताया था।

ऐसा भी नहीं है कि भाजपा और हिंदुत्व के उभार ने कॉन्ग्रेस को हिंदू घृणा में सनने को राजनीतिक तौर पर मजबूर किया है। आजादी के बाद से ही उसका यह चरित्र लगातार दिखता रहा। सबसे पहले तो देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इसका प्रदर्शन किया था। ये नेहरू ही थे जो अयोध्या से रामलला को उनके भाइयों के साथ बेदखल करवाने पर अमादा थे।

आज राजनीतिक जमीन पर कॉन्ग्रेस भले नेहरू-इंदिरा के जमाने की तरह मजबूत नहीं रही। लेकिन, हिंदुओं की आस्था पर उसका हमला उसी सुनियोजित तरीके से जारी है। यही कारण है कि जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज जैसों को आगे आकर इससे सचेत करना पड़ रहा है। जैसा कि उन्होंने कहा है, एक सुनियोजित तरीके से भारत की संस्कृति, भारत के संस्कार, परंपरा, मूल्यों, विशेषकर सांस्कृतिक निष्ठा पर प्रहार किया जा रहा है।

जरूरी है कि अब हर हिंदू कॉन्ग्रेस और उसके शीर्ष परिवार से सवाल करे कि आखिर चरित्र में वह इस्लामी कट्टरपंथियों की तरह क्यों दिखती है? चूके तो नतीजे कश्मीर जैसे घातक हो सकते हैं।

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