‘राम मंदिर के लिए चंदा नहीं दोगे तो घर पर निशान और सरकार को सूचना’ – हिंदुओं को ऐसे बदनाम कर रहा गालीबाज पटनायक

राम मंदिर डोनेशन पर प्रोपेगंडा फैला रहा देवदत्त पटनायक

आपने देखा होगा कि मोहल्ले में कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें कोई काम नहीं होता। वो दूर से ही आपको ‘काँव-काँव’ कर के चिढ़ाएँगे और फिर भाग जाएँगे, क्योंकि उन्हें पता होता है कि उन्होंने जूता खाने वाला काम किया है। देवदत्त ‘नालायक’ पटनायक अब इसी श्रेणी में आ चुका है। उसने राम मंदिर और भगवान श्रीराम का नाम लेकर हिन्दुओं को बदनाम किया है। साथ ही वो अपनी ट्वीट्स की रिप्लाइज बंद कर के भी भागता फिर रहा है।

ट्विटर पर वामपंथियों की आजकल ये फेवरिट तकनीक है। कोई भी बात कह दो और रिप्लाइज ऑफ कर के भाग खड़े हो। खुद को रामायण और महाभारत से लेकर वेदों और उपनिषदों तक में पारंगत बताने वाला देवदत्त पटनायक भी लोगों के तर्कों का जवाब नहीं दे सकता, क्योंकि उसे भी पता है कि उसने बकलोली की है – इसीलिए, उसने एक फालतू बात कह दी और भाग गया। पता उसे भी है कि उसने गाली सुनने वाला काम किया है।

दरअसल, देवदत्त ‘नालायक’ ने दावा किया कि ‘हिंदुत्व’ भारत के हर घर से अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के लिए धनराशि इकट्ठा कर रहा है। उसने आगे लिखा कि जो भी दान देने से इनकार कर देता है, उसके घर को चिह्नित कर लिया जाता है और सरकारी प्रशासन को इसकी सूचना दे दी जाती है। इसके बाद वो खुद ही पूछने लगा कि क्या ये सच है या फिर एक फेक न्यूज़ है? उसने लोगों से पूछा कि आप सब बताएँ।

उसने ‘Anyone?’ लिख कर लोगों से प्रतिक्रिया देने को तो कहा, लेकिन बेशर्मी और बौद्धिक स्तर की निम्नता की घोर हद देखिए कि उसने प्रतिक्रिया देने के विकल्प को ही बंद कर दिया। ‘Is this True? Shocking if True?’ वाला फॉर्मूला अब तक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ही अपनाते रहे हैं, जो हर ट्वीट्स को क्वोट कर के ये पूछा करते थे। सही हुआ तो एजेंडा मिल गया, गलत हुआ तो मैंने थोड़ी न सही बताया था। बस सवाल पूछा था।

इसी तरह देवदत्त पटनायक ने भी किया। अब मैं ट्वीट् कर दूँ कि ‘विकासदीप सरगोसाईं’ एक बिका हुआ पत्रकार है, जिसे सरकार के खिलाफ प्रोपेगंडा फैलाने के लिए दलाली मिलती है। इसके बाद मैं लिख दूँ कि पता नहीं ये सच है या झूठ… इससे ‘चित भी मेरी और पट भी मेरी’ वाली कहावत भी चरितार्थ होती है। कोई अदालती केस की भी संभावना ख़त्म हो जाती है। वामपंथी इस हथियार का अच्छा इस्तेमाल करते हैं।

सोशल मीडिया पर खुलेआम ‘माँ-बहन की गाली’ बकने के लिए कुख्यात देवदत्त पटनायक भी रुका नहीं और उसने इसके बाद एक तस्वीर शेयर की। इसमें श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के लिए दिए गए ऐच्छिक दान का कूपन था। वो 1000 रुपए का था। इसी तरह से अलग-अलग कूपन उपलब्ध हैं और लोगों को इसकी रसीद भी दी जाती है। इस तस्वीर से देवदत्त पटनाटक के पिछले तर्क का कुछ लेना-देना नहीं था।

लेकिन, उसका बौद्धिक स्तर देखिए कि उसने दावा कर दिया कि इस कूपन से साबित होता है कि उसकी बात का पहला हिस्सा एकदम सही है। हिंदी कमजोर होने के कारण अंग्रेजी में हिन्दू ग्रंथों को उलटा-सीधा और आधा-अधूरा पढ़ कर अपनी मनमर्जी से उनके कंटेंट्स का दुष्प्रचार करने वाले देवदत्त पटनायक ने उस कूपन में हिंदी में लिखा ‘ऐच्छिक’ नहीं देखा, जिसका अर्थ है कि लोग अपनी स्वेच्छा से दान कर रहे हैं, इसमें कोई जोर-जबरदस्ती नहीं है।

इसके बाद उसने आशा जताई कि मीडिया कम से कम इस चीज की जाँच करेगा। ‘मीडिया ट्रायल’ के भरोसे वामपंथी कुछ ज्यादा ही रहते हैं। ये ऐसी चीज है जो ओसामा बिन लादेन को एक अच्छा पति, आतंकी रियाज़ नाइकू को गणित का शिक्षक और देवदत्त पटनाटक को ‘हिन्दू इतिहास का विशेषज्ञ’ बना देता है। इसके बाद वो पूछने लगा कि इस कूपन में माँ सीता क्यों नहीं हैं, सिर्फ राम ही क्यों हैं?

उसने इसके बाद इसे ‘टिपिकल हिंदुत्व’ का नाम दिया। आजकल भगवान राम का दशकों से विरोध करने वाले माँ सीता के झूठे भक्त बने हुए हैं। कल को पूछने लगेंगे कि इस तस्वीर में हनुमान जी क्यों नहीं हैं, क्या ये उनका अपमान नहीं। उसके बाद जामवंत, विभीषण और शत्रुघ्न भी उन्हें चाहिए होंगे। फिर सवाल उठेगा कि अयोध्या की जनता इस तस्वीर में क्यों नहीं, क्या श्रीराम और उनके भक्त अयोध्या की प्रजा को याद नहीं करना चाहते?

https://twitter.com/devduttmyth/status/1351120662706974726?ref_src=twsrc%5Etfw

इस तरह से एक प्रोपेगंडा को ढकने के लिए एक सीरीज सी चल पड़ती है। ये होता है असली खबरें छिपाने के लिए। उज्जैन के महाकाल मंदिर के पास ही राम मंदिर के लिए चंदा इकट्ठा करने निकले हिन्दुओं पर हमला होता है, पत्थरबाजी होती है। इस घटना को ढकने के लिए कुछ तो चाहिए? इसके 3 दिनों के भीतर इंदौर में हिन्दुओं को निशाना बनाया जाता है, क्योंकि वो राम मंदिर संकल्प निधि के लिए दान माँग रहे थे।

ऐसी घटनाओं पर कहीं जनता का ध्यान न चला जाए, इसीलिए ये कुचक्र रचा जाता है। गुजरात में एक ही दिन में दो-दो जगह ऐसी घटनाएँ होती हैं। कच्छ स्थित गाँधीधाम के किदाना में दंगे जैसे हालात बना दिए जाते हैं, हिंसा और आगजनी में पुलिसकर्मियों तक को नहीं बख्शा जाता। महाराष्ट्र में मुंबई पुलिस दान के लिए इस्तेमाल किए जाए रहे पोस्टर्स ही फाड़ डालती है। इन सब पर लिबरल गैंग चुप रहता है और इन्हें छिपाने की कोशिश करता है।

इन वास्तविक हिन्दूफोबिया से ग्रसित घटनाओं पर पर्दा डालने के लिए कभी पूछा जाता है कि तस्वीर में राम के साथ सीता क्यों नहीं हैं, तो कभी दावा किया जाता है कि चन्दा न देने वालों को चिह्नित किया जा रहा है। अगर ऐसा होता तो मसूरी के महमूद हसन घर की माली हालत ठीक न होने के बावजूद ये कह कर राम मंदिर के लिए 1100 रुपए नहीं देते कि मुसीबत के समय हिन्दू ही काम आते हैं। लेकिन, ‘नालायक’ जैसों का कहना है कि इन सबके लिए मजबूर किया जा रहा।

देवदत्त पटनायक को अब सोशल मीडिया पर पड़ने वाली गालियाँ भी काम नहीं आ रही है, इसीलिए वो भगोड़ा अब इस तरह की बातें कर रहा है। जहाँ तक माँ सीता की बात है, नेपाल में जनकनंदिनी का भव्य मंदिर है, जहाँ की वो राजकुमारी थीं। वहाँ उन्हें मंदिर के लिए अयोध्या की तरह इंतजार नहीं करना पड़ा। सीतामढ़ी के पुनौरा में उनका जन्मस्थान माना जाता है और वहाँ मंदिर है। क्या ये ‘नालायक’ कभी वहाँ दर्शन करने गया, जो आज उनका भक्त बन कर प्रोपेगंडा फैला रहा है?

इनके लिए आज सबसे बड़ी समस्या ये आन खड़ी हुई है हिन्दू आज एक है और अपनी क्षमता का हर तरह से प्रदर्शन कर रहा है। राम मंदिर के लिए मात्र 2 दिन में 100 करोड़ रुपए जमा हो गए। पीएम केयर्स फण्ड में लोगों ने बढ़-चढ़ कर योगदान दिया। ये सब इन छद्म बुद्धिजीवियों से देखा नहीं जा रहा, इसीलिए वो बिलबिलाए हुए हैं। हिन्दुओं की ये एकता उनके शरीर में जगह-जगह चिकोटी काट रही है।

अनुपम कुमार सिंह: भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।