गुलाम नबी आजाद जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री रहे। केंद्र में कई महकमों के मंत्री रहे। कुछ साल पहले तक राज्यसभा में विपक्ष के नेता हुआ करते थे। कॉन्ग्रेस के बड़े नेताओं में उनकी गिनती होती थी। सत्ता में रहते हुए उन्होंने तुष्टिकरण के उस एजेंडे को पूरी तरह लागू किया जिसकी कॉन्ग्रेस जनक रही है। उनकी ‘उपलब्धियाँ’ भी वही हैं जो इस देश में मुस्लिमों के हर राजनीतिक ठेकेदार की होती है।
लेकिन फिलहाल गुलाम नबी आजाद अपने उस बयान को लेकर वायरल हैं, जिसमें वे कह रहे हैं कि 600 साल कश्मीर में सब पंडित ही थे। हिंदू को प्राचीन धर्म बताते हुए कहा है कि भारत के सभी मुस्लिम कन्वर्टेड हैं। उनके भी पुरखे हिंदू थे। कॉन्ग्रेस से अलग होकर डेमोक्रेटिव प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (DPAP) बनाने वाले गुलाम नबी शायद अपने राजनीतिक जीवन के अंतिम दौर में हैं। पर जब उनका राजनीतिक ग्राफ चढ़ान पर था तो उन्होंने जम्मू-कश्मीर में मुफ्ती और अब्दुल्ला की तरह ही तुष्टिकरण, लैंड जिहाद और डेमोग्राफी चेंज को मुकम्मल करने का काम किया।
आगे बढ़ने से पहले जान लीजिए कि 9 अगस्त 2023 को डोडा के चिरल्ला गाँव में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए गुलाम नबी आजाद ने क्या कहा था, जिसका वीडियो वायरल है। उन्होंने कहा,
“मैं संसद में भी यह बात कह चुका हूँ। लेकिन बहुत सारी चीजें आप तक नहीं पहुँचती है… हमारे हिंदुस्तान में इस्लाम तो वैसे भी 15 सौ साल पहले ही आया है। हिंदू धर्म बहुत पुराना है। जो लोग (मुस्लिम) बाहर से आए होंगे, वो केवल 10-20 होंगे और वो भी उस वक्त मुगलों की फौज में थे। बाकी तो सब यहाँ (भारत) हिंदू से कन्वर्ट हुए मुसलमान हैं।600 साल पहले कश्मीर में कोई मुस्लिम नहीं था। सब कश्मीरी पंडित थे। सब इस्लाम अपनाकर मुस्लिम बने हैं।”
दिलचस्प यह है कि जिस डोडा जिले में गुलाम नबी आजाद ने यह बात कही है, उनकी पैदाइश भी उसी जिले की है। इस बयान से वे अपने उस अतीत से वैसे ही पीछा छुड़ाने की कोशिश करते दिख रहे हैं, जैसे उन्होंने कॉन्ग्रेस छोड़ी। जिस राज्य ने घाटी से हिंदुओं का सफाया देखा, वहाँ जम्मू क्षेत्र में हिंदुओं को अल्पसंख्यक बनाने के खेल में वे शामिल रहे। जम्मू के हिंदू बहुसंख्यक क्षेत्रों को मुस्लिम बहुल बनाने में फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के साथ ही गुलाम नबी आजाद का भी अहम योगदान रहा है।
जम्मू क्षेत्र हिंदू बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है। कई ऐसे इलाके थे जहाँ एक भी मुस्लिम परिवार नहीं रहता था। लेकिन अब वे मुस्लिम बहुल इलाकों में बदल चुके हैं। इसे बात से समझ सकते हैं कि जम्मू में 2020 आते-आते मस्जिदों की संख्या 3 से 100 हो चुकी थी और आबादी की बात करें तो जम्मू के कई इलाकों में 80 प्रतिशत मुस्लिम हो चुके थे। ये मुस्लिम कभी सीमा पार से आए, तो कभी घाटी से आए, कभी रोहिंग्या की शक्ल में आए, तो कभी बांग्लादेशी घुसपैठिए बनकर। इन्हें वहाँ रहने, बसने और घुसपैठ करने का मौका मिलता रहा और ये मौका उपलब्ध कराया उन्हीं राजनीतिक पार्टियों और उनके धुरंधरों ने, जिनका जिक्र ऊपर किया गया है।
रोशनी एक्ट की आड़ में खेल
जम्मू-कश्मीर में फारूक अब्दुल्ला की सरकार साल 2001 में एक कानून लेकर आई थी। इसे रोशनी एक्ट के नाम से जानते हैं। इस कानून की आड़ में 1990 तक हुए कब्जों को सरकारी मान्यता दी गई। फिर मुफ्ती सरकार ने इस कट ऑफ को 2005 में बढ़ाकर 2004 तक कर दिया। इसका मतलब था कि उस समय एक साल पहले तक जितने भी कब्जे होते, उन्हें मान्यता दी जाती और मामूली ‘फीस’ के नाम पर वो जमीन उस व्यक्ति को दे दी जाती। इस ‘फीस’ से जो पैसा आता, वो जम्मू-कश्मीर के उन हिस्सों में बिजली पहुँचाने में इस्तेमाल होती, जो बिजली से दूर थे। गुलाम नबी आजाद ने मुख्यमंत्री बनने पर इस कट ऑफ को बढ़ाकर 2007 तक कर दिया। इस तरह 2007 तक जम्मू-कश्मीर में लाखों कैनाल जमीन पर अवैध कब्जों को वैधानिकता की चादर ओढ़ा दी गई। रही बात ‘रोशनी’ की, तो वो एक भी गाँव में नहीं पहुँची। लेकिन इसकी आड़ में जमीनों पर इस्लामी कब्जे जमकर हुए।
रिपोर्ट में हुआ था ‘लैंड जिहाद’ पर चौंकाने वाला खुलासा
साल 2020 में ‘एकजुट जम्मू’ नाम की संस्था ने एक फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि फारूक अब्दुल्ला और गुलाम नबी आजाद ने भटिंडी के जंगलों की जमीन पर पहले खुद कब्जा किया। वहाँ पर अपने घर बनाए। बाद में मजहबी लोगों को वहाँ आकर बसने के लिए प्रोत्साहित किया। रिपोर्ट के अनुसार जम्मू में 1990 के बाद 1,00,000 घरों का निर्माण हुआ। 50 लाख कनाल सरकारी जमीन पर अतिक्रमण हुआ। एक कनाल 505.857 वर्गमीटर के बराबर होता है। 1994 में जम्मू शहर में केवल 3 मस्जिद। लेकिन देखते ही देखते वहाँ 100 से ज्यादा मस्जिद बना दिए गए।
सेकुलरिज्म और अलग पहचान के नाम पर खेल
जम्मू-कश्मीर की दिशा और दशा तय करते रहे ‘खानदानी’ अब्दुल्ला, मुफ्ती, आजाद, द्राबू, किचलू, वाणी परिवार सेकुलरिज्म और कश्मीरियत का राग अलापते हैं। वो सत्ता में रहते हुए सेकुलर ‘दिखने’ की कोशिश करते रहे, लेकिन सेकुलरिज्म की आड़ में धीरे-धीरे जम्मू को भी मुस्लिम बहुल क्षेत्र बना दिया गया। बाहर से लाकर लोगों को बसा दिया गया। साल 2011 में प्रोफेसर एसके भल्ला जम्मू के इस्लामीकरण के मामले को लेकर कोर्ट पहुंचे। इस मामले का उदाहरण तवी नदी के कछार में अतिक्रमण करने वाले 668 लोगों में से 667 का मुस्लिम होना भी है। इन ‘लाभार्थियों’ में रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिए भी शामिल हैं। ऐसा ही उदाहरण भटिंडी नाम की कॉलोनी से भी समझा जा सकता है। इसे स्थानीय लोग मिनी पाकिस्तान भी कहते हैं, सुन्जवाँ और सिद्धड़ा भी अतिक्रमण के बड़े ठिकाने रहे हैं।
यहाँ बसे लोगों को वोटर बनवा दिया गया। जम्मू के हिंदुओं की आवाज को दबा दिया गया और रोशनी एक्ट की आड़ में जेहादी एजेंडे को पूरा किया गया। ये लोग सत्ता में रहते हैं, तो अपने धर्म और कट्टरता की ‘हवस’ पूरी करते हैं और जब सत्ता हाथ से छिटक जाती है, तो मीडिया में आकर सेकुलरिज्म और भाई चारे का पाठ पढ़ाने लगते हैं।