इस बार हम डरने के इरादे से मैदान में नहीं हैं: इमरान प्रतापगढ़ी

इमरान प्रतापगढ़ी लखनऊ से लेकर दिल्ली तक लोगों को भड़काने में लगे हुए हैं

नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन के नाम पर जगह-जगह हो रहे उपद्रवों में कुछ चेहरे हैं जो घूम-घूम कर लोगों को भड़काने में लगे हैं। इनमें से एक चेहरा शायर इमरान प्रतापगढ़ी का भी है। इमरान गणतंत्र दिवस के दिन रविवार (जनवरी 26, 2020) को लखनऊ के घंटाघर के पास जमा हुए प्रदर्शनकारियों को सम्बोधित करने पहुँचे। वहाँ कई महिलाएँ धरने पर बैठी हुई हैं। इमरान लगातार घूम-घूम कर लोगों को बता रहे हैं कि उन पर जुल्म हो रहा है और सरकार छात्रों एवं महिलाओं पर अत्याचार कर रही है। इमरान कहते हैं कि वो कुवैत में मुशायरे का ऑफर छोड़ कर सीएए के ख़िलाफ़ चल रहे प्रदर्शन में घूम रहे हैं।

इमरान की एक शेर की एक पंक्ति देखिए- “मोदी जी आपकी हुकूमत पर, एक शाहीन बाग़ भारी है।” इस पंक्ति से सीधा पता चलता है कि कुछ मजहबी नाम वाले शायर हैं, वो देश भर में अराजकता फैलाने में लगे हैं। इमरान बार-बार ‘काग़ज़ नहीं दिखाएँगे‘ भी दोहराते हैं, जो सीएए विरोधियों का फेवरिट तकिया कलाम बन गया है। शायरों के इस गैंग का नेतृत्व मुनव्वर राणा और राहत इंदौरी कर रहे हैं और इमरान जैसे लोग घूम-घूम कर उसे फैला रहे हैं। इमरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और देश के गृह मंत्री अमित शाह के बारे में कहते हैं कि वो गुंडों की भाषा में बात करते हैं।

मोदी सरकार को इमरान ने भारत के संविधान का ‘कातिल’ करार दिया। जबकि, जिस शाहीन बाग़ की ब्रांडिंग में वो लगे हैं, उसी विरोध प्रदर्शन का मुख्य साज़िशकर्ता संविधान के बारे में कहता है कि इस पर से समुदाय का भरोसा उठ चुका है। शरजील इमाम ने कहा कि न्यायपालिका पर से समुदाय का भरोसा उठ चुका है। संसद ने उसी संविधान की प्रक्रिया का पालन करते हुए एक क़ानून पारित किया और शरजील उसे ‘काला क़ानून’ बताता हैं, संविधान को गाली देते हैं और बाद में उसी संविधान का कातिल सरकार को बताते हैं। इमरान कहते हैं:

“आधार कार्ड माँगेंगे। पैन कार्ड माँगेंगे? मैं तो उनकी छाती पर खड़े होकर दिल्ली में ऐलान करता हूँ कि आगरा में जाकर देखिए ताजमहल। वही है हमारा आधार कार्ड। आप जहाँ रहते हैं, वहाँ से मात्र ढाई किलोमीटर की दूरी पर खड़ा है कुतुबमीनार। वही है हमारा पैन कार्ड। जाकर देखिए। अगर आपको हमारा जन्म प्रमाण पत्र चाहिए तो जाइए लाल किले को देखिए। वही है हमारा बर्थ सर्टिफिकेट। हमसे हमारा बर्थ प्लेस पूछा जाता है। मोदी जी और अमित शाह जी, जामा मस्जिद की जो सीढियाँ हैं, वही है हमारा जन्मस्थान। जाइए, देख लीजिए। इस बार हम डरने के इरादे से मैदान में नहीं हैं।”

इमरान की मजहबी कट्टरवादी भाषा पर गौर कीजिए। भारत को सेक्युलर बताने वाले इन लोगों के कथित रहनुमाओं को लगता है कि लाल किला, ताज महल, जामा मस्जिद और क़ुतुब मीनार ‘इनका’ है, और इनके पूर्वजों ने बनाया है। ये नहीं मानते हैं कि ये सब राष्ट्र की संपत्ति है। ये इन चीजों को कौमी नज़र से देखते हैं। मजहबी एक्टिविस्ट्स को शायद पता नहीं है कि बाबरी मस्जिद जैसी अनगिनत ऐसी इस्लामी इमारते हैं, जिनके नीचे कई मंदिर दफ़न हैं। हिन्दुओं के ढाँचों को तोड़ कर, वहाँ रह रहे हिन्दू श्रद्धालुओं को मार कर, कइयों को जबरन इस्लाम कबूल करवा कर और ख़ून बहा कर- ऐसे खड़ी हुई है अधिकतर इस्लामी इमारतें।

जामा मस्जिद। वही जामा मस्जिद, जिसकी सीढ़ियों के नीचे कई हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों के दफ़न होने की बात कही जाती है। औरंगजेब के आदेश के बाद उन्हीं सीढ़ियों के नीचे उज्जैन से लूट कर लाइ गई हिन्दू प्रतिमाओं को दफ़न कर दिया गया था, ऐसा औरंगजेब की जीवनी ‘मसीर-ई-आलमगीरी’ में लिखा हुआ है, जिसे साकी मुस्ताक ने लिखा था। इमरान को हमारी सलाह है कि वो इतिहास खँगालें और देखें कि रविवार (मई 24-25, 1689) को जामा मस्जिद में क्या हुआ था। बहादुर ख़ान ने ऐसा क्या किया था, जिससे मुग़ल बादशाह ख़ुश हुआ था और उसे इनाम दिया गया था?

लाल किला, ताज महल, क़ुतुब मीनार और जामा मस्जिद के निर्माण के लिए अरब से रुपए नहीं आए थे। इसी देश की संपत्ति से बनाया गया है इन्हें। विक्टर इस्लामी इमारतों को क्रूर आक्रांताओं ने हिन्दुओं से लूटे हुए धन से ही बनवाया है। क्या बाबर अपने साथ उज्बेकिस्तान से धन लेकर आया था? मुगलों ने इसी धरती को लूट कर यहाँ वो इमारतें खड़ी की, जिन्हें अपने कौम की निशानी बता कर इमरान अपना सीना गर्व से चौड़ा कर रहे हैं। इन्हें गम है इस बात का कि ये इमारतें राष्ट्र की संपत्ति क्यों है। इनका दिवास्वप्न है कि जामा मस्जिद से खलीफा हरा रंग का झंडा फहराए और ये ‘जय हिन्द’ की जगह ‘नारा-ए-तकबीर’ लगाएँ।

शायर इमरान प्रतापगढ़ी ने लखनऊ में मुस्लिमों को जम कर भड़काया

हमने देखा था कि कैसे कमलेश तिवारी की हत्या के बाद हत्यारों ने अपनी बीवी व परिजनों से बात की थी तो सभी इस घृणित कृत्य का समर्थन कर रहे थे। एक लीक हुए फोन कॉल से पता चला कि हत्यारों की बीवियों ने भी इस करतूत का समर्थन किया था। हाल ही में सड़कों पर उतरीं महिलाओं को देखें तो हमें इस मानसिकता के बारे में और भी बहुत कुछ पता चलता है। इमरान की ख़ुद की जुबानी सुनाई गई एक कहानी में इसके बारे में और कुछ पता चलता है। बकौल इमरान, जब वो दिल्ली में जामिया के कथित घायल छात्रों को देखने एम्स जा रहे थे तब उनकी अम्मी ने उन्हें कॉल किया।

इमरान की अम्मी ने फोन पर अपने बेटे से कहा कि अगर उसका ख़ून ठंडा नहीं हुआ है तो उसे जामिया वालों के साथ मजबूती से खड़ा होना चाहिए। ग्रामीण परिवेश से आने वाली इमरान की अम्मी ने इस तरह की भड़काऊ भाषा का इस्तेमाल किया, ऐसा ख़ुद इमरान की कहानी से पता चलता है। ऐसे में कमलेश तिवारी के हत्यारों के परिजनों द्वारा हत्या का समर्थन करना और शाहीन बाग़ में रुपए लेकर अराजकता फैलाना भी इसी मानसिकता का एक हिस्सा है। इमरान कहते हैं कि एक भी मुकदमा हो तो उसे इनाम के रूप में लेना चाहिए। क्या इस भड़काऊ बयान को समुदाय के युवाओं के करियर बर्बाद करने वाला नहीं माना जाना चाहिए?

क्या मजहबी युवा अपने ऊपर जानबूझ कर मुकदमों का पहाड़ लाद ले, जिससे उसे प्राइवेट व सरकारी नौकरियों के लिए दर-दर भटकना पड़े? बाद में फिर यही इमरान जॉब न मिलने का बहाना लेकर आएँगे। इमरान अपने पूर्वजों की बात करते हुए कहते हैं कि उन्होंने अपने घोड़ों की टापों से दुनिया नापी है। जहाँ एक तरफ भारत अपनी इस संस्कृति पर गर्व करता है कि हमारे देश ने किसी भी विदेशी राज्य पर हमला तक नहीं किया, इमरान विदेशी आक्रांताओं को अपना पूर्वज बता कर लोगों को भड़का रहे हैं। कौन हैं उनके पूर्वज? जिन्होंने कभी दूसरे राज्यों पर पहले हाथ नहीं उठाया वो, या फिर जिन्होंने दुनिया भर में ख़ून-ख़राबा मचाया वो?

इमरान प्रतापगढ़ी पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी को ‘शेरनी’ बताते हैं और उन्हें ‘दुर्गा’ कहते हैं। झारखण्ड में भाजपा की हार पर इमरान ख़ुश होते हैं। वो दिल्ली में भाजपा की हार की भविष्यवाणी करते हैं। साथ ही वो ये भी कहते हैं कि एक दिन केंद्र से भी भाजपा चली जाएगी। इसके बाद वो फैज़ अहमद फैज़ की नज्म ‘हम देखेंगे’ गाते हैं। उसी फैज की कविता, जो मानता ही नहीं था कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश प्राचीन काल में एक ही संस्कृति का हिस्सा थे। वही फैज़, जो पाकिस्तान की ‘हज़ारों वर्ष पुरानी’ संस्कृति की बातें करता था।

इमरान प्रतापगढ़ी हिटलर के बारे में बात करते हुए लखनऊ में कहते हैं कि एक दिन वो अपने कमरे में मरा हुआ पाया गया था, उसने आत्महत्या कर ली थी। इमरान का कहना है कि सभी तानाशाहों का अंत ऐसा ही होता है। वो आज के दौर में किसे तानाशाह कह रहे हैं और किसकी मौत की दुआ कर रहे हैं, ये आप सोचिए। वैसे इमरान ने फैज़ की इन पंक्तियों के साथ अपने सम्बोधन का अंत किया, जिनका अर्थ आप भलीभाँति समझते हैं:

जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से सब बुत उठवाए जाएँगे
हम अहल-ए-सफ़ा मरदूद-ए-हरम मसनद पे बिठाए जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे
सब तख़्त गिराए जाएँगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.