यूँ ही PM मोदी ने नहीं जताया राम मंदिर पर बाबरी ताले का खतरा, रामलला की मूर्ति हटवाने पर अड़ गए थे नेहरू: इंदिरा गाँधी ने भी लिया था बदला

राम मंदिर से कॉन्ग्रेस सरकार हिन्दुओं को हटाना चाहती थी (चित्र साभार:@ShriRamTeerth/X & Defense Forum India)

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार (7 मई, 2024) मध्य प्रदेश के धार में एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। इस जनसभा में पीएम मोदी ने राम मंदिर को लेकर बात करते हुए बताया कि उन्हें 400 सीट क्यों चाहिए। पीएम मोदी ने कहा है कि उनकी सरकार को 400 सीट इसलिए चाहिए ताकि कॉन्ग्रेस अयोध्या में राम मंदिर पर बाबरी ताला ना लगा दे।

पीएम मोदी ने कहा, “मोदी 400 सीटें क्यों माँग रहा है, यह देश को जानना जरूरी है। मोदी को 400 सीटें चाहिए ताकि मैं INDI गठबंधन की हर साजिश को रोक सकूँ। मोदी को 400 सीट चाहिए ताकि कॉन्ग्रेस अयोध्या में राम मंदिर पर बाबरी ताला ना लगा दे।”

पीएम मोदी के इस बयान से ठीक एक दिन पहले आचार्य प्रमोद कृष्णम ने भी इसी तरह की साजिशों का दावा किया था। तीन दशक तक कॉन्ग्रेस नेता रहे आचार्य प्रमोद कृष्णम ने बताया था राहुल गाँधी कॉन्ग्रेस सरकार बनने पर राम मंदिर को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को पलटने की योजना बना चुके थे। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का राम मंदिर को लेकर फैसला पलटने की बात राहुल गाँधी ने एक मीटिंग में की थी।

पीएम मोदी और आचार्य प्रमोद कृष्णम कॉन्ग्रेस की राम मंदिर की मंशा को लेकर जो आशंका व्यक्त कर रहे हैं, वह हवा-हवाई नहीं है। कॉन्ग्रेस का राम मंदिर को लेकर जो दृष्टिकोण रहा है और अतीत में उसने जो किया है, उससे लगता है कि यदि कॉन्ग्रेस सरकार में आती है तो तुष्टिकरण के एजेंडे को धार देने के लिए वह फिर से कोई तिकड़मी रास्ता अपना सकती है।

कॉन्ग्रेस आजादी के बाद से ही राम मंदिर को लेकर किए गए प्रयासों में रोड़ा अटकाते आई है और इसके लिए प्रयास करने वालों को दण्डित तक किया है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तक राम मंदिर में मूर्तियाँ हटाने को लेकर पत्र लिख रहे थे।

कॉन्ग्रेस के इन प्रयासों का बड़ा उदाहरण ICS अधिकारी केके नायर को लेकर की गई कार्रवाई है। नायर को 1 जून, 1949 को  अयोध्या (फैजाबाद) के उपायुक्त सह जिला मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त किया गया था। अयोध्या का वह दौर उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया था। नायर को राम जन्मभूमि मुद्दे पर एक रिपोर्ट करने के लिए उत्तर प्रदेश की कॉन्ग्रेस सरकार की तरफ से एक पत्र मिला था।

इस मुद्दे पर रिपोर्ट को प्रस्तुत करने के लिए उन्होंने अपने सहायक गुरु दत्त सिंह को भेजा। जिसके बाद 10 अक्टूबर, 1949 को सिंह ने अपनी रिपोर्ट में, उस स्थान पर एक भव्य राम मंदिर के निर्माण की सिफारिश की। सिंह ने स्थल का दौरा कर यह देखा कि उस स्थल के लिए हिंदू और मुस्लिम आपस में लड़ रहे थे।

उन्होंने लिखा, ”हिंदू समुदाय ने इस आवेदन में एक छोटे मंदिर के बजाय एक विशाल मंदिर के निर्माण का सपना देखा है। इसमें किसी तरह की परेशानी नहीं है। उन्हें अनुमति दी जा सकती है। हिंदू समुदाय उस स्थान पर एक अच्छा मंदिर बनाने के लिए उत्सुक है, जहाँ भगवान रामचंद्र जी का जन्म हुआ था। जिस भूमि पर मंदिर बनाया जाना है, वह नजूल (सरकारी भूमि) है।” हालाँकि, हिन्दुओं को तब की कॉन्ग्रेस सरकार ने मंदिर बनाने की अनुमति नहीं दी। इसके उलट रामलला विराजमान की मूर्तियों को हटाने का आदेश जरूर दिया गया।

नेहरू का निर्देश, फिर भी नहीं झुके केके नायर

प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निर्देश पर, उत्तर प्रदेश के कॉन्ग्रेसी मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने राम मंदिर से हिंदुओं को बेदखल करने की कोशिश की। हालाँकि, केके नायर ने हिन्दुओं को राम मंदिर से हटाने का निर्णय मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का आदेश नहीं माना। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि हिंदू उस स्थल पर पहले से पूजा कर रहे हैं। नायर ने राम मंदिर से मूर्तियों को हटाने से भी इनकार कर दिया। कॉन्ग्रेस सरकार ने नायर को इसकी सजा दी और उन्हें जिला मैजिस्ट्रेट के पद से भी निलंबित कर दिया।

यानी जिस अधिकारी ने देश की बहुसंख्यक आबादी की आस्था को चोट पहुँचाने से इनकार कर दिया, उसे कॉन्ग्रेस ने निलम्बित करके अपना बदला लिया। हालाँकि,नायर ने कॉन्ग्रेस सरकार के खिलाफ मुकदमा लड़ा था और उन्हें अपना ICS का पद वापस मिल गया था। राम मंदिर के लिए प्रयास करने वाले नायर बाद में सांसद बने थे। उनकी पत्नी भी सांसद बनी थीं। हिन्दुओं के पूजा अधिकार को ना छीनना कॉन्ग्रेस को लम्बे समय तक चुभता रहा और इंदिरा गाँधी ने नायर और उनकी पत्नी को आपातकाल के दिनों में गिरफ्तार भी करवाया था।

लेकिन इन घटनाओं से समझा जा सकता है कि कॉन्ग्रेस यदि सत्ता में होती है तो वह राम मंदिर को लेकर कैसा रुख अपनाती है। इसका एक और उदाहरण 1992 में लाया गाया प्लेसेस ऑफ़ वरशिप एक्ट है, जो कि हिन्दुओं को उनसे छीने गए पूजास्थलों पर दावा करने से रोकता है।

ऐसे में पहले आचार्य प्रमोद कृष्णम का कॉन्ग्रेस की राम मंदिर को लेकर योजना बताना और फिर पीएम मोदी का इस शंका को लेकर चेताना, सामान्य बात नहीं है। पुराने उदाहरणों ने यह सिद्ध किया है कि कॉन्ग्रेस सत्ता में रहते हुए राम मंदिर के विरुद्ध काम करते आई है।

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