कल तक ‘कसम राम की’ कहने वाली शिवसेना भी ‘जय श्री राम’ पर हुई सेकुलर, बताया- राजनीतिक एजेंडा

उद्धव ठाकरे (फाइल फोटो)

साल 1995 की बात है। बॉलीवुड निर्देशक मणिरत्नम की फिल्म ‘बॉम्बे’ से शिवसैनिक और खुद बाल ठाकरे बेहद नाराज थे। फिल्म के कुछ दृश्यों में शिव सैनिकों को मुस्लिम समुदाय के लोगों की हत्या करते और उन्हें लूटते दिखाया गया था। इस फिल्म के अंतिम दृश्यों में बाल ठाकरे जैसे नजर आने वाले एक कैरेक्टर को इन दंगों पर शोक व्यक्त करते हुए दिखाया गया था।

ठाकरे और उनकी शिवसेना ने तब इस फिल्म के प्रसारण पर भारी विरोध दर्ज करते हुए इसके प्रदर्शन पर रोक लगा दी थी। ऐसे में जब उनके मित्र और बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन ने उनसे सवाल किया था कि क्या उन्हें शिवसैनिकों के इस चित्रण से कष्ट हुआ? इस पर बाल ठाकरे ने जवाब में कहा था कि उन्हें जो बात ख़राब लगी वो ये कि ठाकरे के कैरेक्टर को इन दंगों के लिए खेद प्रकट करते और माफ़ी माँगते दिखाया गया है।

को लेकर बाल ठाकरे हमेशा दावा करते रहे कि शिवसैनिकों ने उसे गिरा दिया। उनके रहते उनकी पार्टी अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने को लेकर हमेशा मुखर रही।

पर अब न बाल ठाकरे रहे और न भगवान राम को लेकर शिवसेना की वैसी ‘निष्ठा’ रही। ये हम नहीं कह रहे। बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना ने खुद कई मौकों पर यह साबित किया है।

यही कारण है कि कल तक ‘कसम राम की’ कहने वाली शिवसेना को अब जय श्री राम के नारे में धार्मिक अलगावाद दिखता है। पार्टी के के मुखपत्र ‘सामना’ में उसने कहा है कि उत्तर प्रदेश और बिहार की तरह पश्चिम बंगाल में भाजपा ने धार्मिक अलगाववाद शुरू किया है।

शिवसेना आज भाजपा को सिर्फ अपना राजनीतिक दुश्मन घोषित नहीं कर रही, बल्कि बंगाल में उसकी विपक्षी पार्टी प्रमुख ममता दीदी को ‘की-पॉइंट्स’ देते हुए ममता के बड़े भाई की भूमिका भी निभा रही है।

सोमवार (जनवरी 25, 2021) के ‘सामना’ के सम्पादकीय में शिवसेना ने भाजपा की आलोचना करते हुए ‘जय श्री राम’ के नारे को राजनीतिक एजेंडा तक घोषित कर दिया है। इस राजनीतिक टकराव के चलते शिवसेना ने उस ममता बनर्जी का ‘राजनीतिक गुरु’ बनने तक का ख्वाब बुनना शुरू कर दिया है, जो ‘जय श्री राम’ का उद्घोष करने वालों को कट्टर और धर्मांध बताते हुए सार्वजानिक मंच पर जमकर इस्लामी नारे लगाती हैं।

वास्तव में, शिवसेना की हालत आज एक मुंबई के उस स्ट्रगलिंग कलाकार जैसी हो चुकी है, जो मुंबई जाता तो मार्लन ब्रैंडो बनने का ख्वाब लेकर है, लेकिन आखिर में उसे प्रेशर कूकर के विज्ञापन कर किसी भी तरह अपना गुजारा करने तक सीमित हो जाना पड़ता है।

राम मंदिर के लिए कभी सीना ठोकने वाले शिवसेना अब ‘सेकुलर’ हो चली है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण, जो कि प्रत्यक्ष तौर पर एक फजीहत ज्यादा थी, सरकार बनाने के लिए उद्धव ठाकरे का अयोध्या दौरा रद्द करना था।

नवंबर 09, 2019 को अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उद्धव ठाकरे ने घोषणा की थी कि वो 24 नवंबर को अयोध्या जाएँगे, लेकिन फिर ‘सुरक्षा कारणों’ का हवाला देकर पलटी मार गए। उस वक़्त उद्धव, परदे के पीछे से कॉन्ग्रेस व शरद पवार की पार्टी के साथ साँठगाँठ में लगे थे।

हालत ये हैं कि हिंदुत्व, भगवा और राम नाम को कभी अपनी विचारधारा का मूल बताने वाली शिवसेना कॉन्ग्रेस की शरण में जाते ही खुलकर ‘जय श्री राम’ का नारा तक नहीं लगा पा रही है। बंगाल में भाजपा के खिलाफ ममता का मार्गदर्शन करने वाली शिवसेना के नेतृत्व वाले मुंबई के मुस्लिम बहुल इलाके मालवणी में भगवान राम के पोस्टर तक फाड़ दिए गए और ‘सेकुलर’ शिवसेना कुछ भी कर पाने में असमर्थ ही नजर आ रही है।

ख़ास बात तो यह रही कि राम मंदिर समर्पण निधि अभियान से जुड़े पोस्टर फाड़ने का आरोप मुंबई पुलिस पर है। शायद शिवसेना के लिए अभी ‘जय श्री राम’ के नारे को ‘चुनावी एजेंडा’ और ‘अलगाववाद को बढ़ाने वाला’ घोषित कर देना ही सत्ता में बने रहने का विकल्प नजर आ रहा हो। विचारधारा से समझौता शिवसेना के लिए यूँ भी कोई नया या चौंकाने वाला कदम नहीं रह गया है।

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