क्या है सच दिल्ली के सरकारी स्कूलों के परीक्षा परिणामों का? ऐसे फैलाया जा रहा झूठ

दिल्ली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल(फाइल फोटो)

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल सहित आम आदमी पार्टी के सभी कार्यकर्ता और समर्थक यह कहते नहीं थकते कि ‘आप’ के राज में शिक्षा क्रांति हो गयी, दिल्ली के सरकारी स्कूल वर्ल्ड क्लास हो गए। फिर वे करोड़ों खर्च कर दिल्ली के हजारों स्कूलों में से एक में बना जिम और दो में बने स्विमिंग पूल का फोटो दिखाकर कहते हुए पाए जाएँगे कि भई कमाल कर दिया केजरीवाल ने!

आजकल एक और झूठ मार्केट में बड़ी तेजी से फैलाया जा रहा है कि सरकारी स्कूलों ने प्राइवेट स्कूलों को भी पछाड़ दिया है। बारहवीं के परीक्षा परिणामों का संदर्भ देते ऐसे लोग नज़र आते हैं लेकिन जब बात दसवीं के परीक्षा परिणामों की करें तो सब चुप्पी साध लेते हैं। फिर कोई ये नहीं बताता कि दिल्ली के स्कूलों का परिणाम 2006-07 में आये 77.12% के स्तर से भी नीचे क्यों चला गया? 2006-07 के बाद कभी भी दिल्ली का परिणाम विपरीत दिशा में जाता नज़र नहीं आया लेकिन बीते 2 वर्षों में रिकॉर्ड टूट गया। आईये समझते हैं क्या है दिल्ली के सरकारी स्कूलों की कहानी-

पहले बात 12वीं कक्षा की:

1) पहली बार यह सुनना बहुत अच्छा लगता है कि सरकारी स्कूल प्राइवेट से भी बेहतर परिणाम ला रहे हैं लेकिन दिल्ली के मामले में क्या ये पहली बार हो रहा है? दिल्ली के सरकारी स्कूलों ने पहले भी प्राइवेट स्कूलों को पछाड़ा है। 2009 और 2010 में सरकारी स्कूलों का 12वीं में प्रदर्शन प्राइवेट स्कूलों से बेहतर था। देखें सरकारी और प्राइवेट स्कूलों के 12वीं परीक्षा परिणाम का ये आंकड़ा, जो दिल्ली सरकार द्वारा परीक्षा परिणाम आने के बाद हुए Result Analysis के जरिये साझा किया गया। इसलिए ये कहना कि ये ऐतिहासिक घटना है, गलत है!

2) ये भी कहना अतिरेक है कि परीक्षा परिणाम में सुधार केवल आप की सरकार बनने के बाद हुए। आँकड़े बताते है कि दिल्ली के सरकारी और प्राइवेट स्कूलों के परीक्षा परिणामों के गैप पहले के मुकाबले बेहद कम हुए है:

देखिये आंकड़े

यहाँ देखा जा सकता है कि कभी 13% से पिछड़ने वाले दिल्ली के सरकारी स्कूलों ने प्राइवेट स्कूलों की न केवल बराबरी की, बल्कि उसे पछाड़ा भी। बीते 3 साल से यही दुहराया जा रहा है लेकिन सरकारी और प्राइवेट के बीच का फासला बहुत अधिक का नहीं है जैसा बीते दशकों में था।

3) रही बात दिल्ली के बच्चों के प्रदर्शन की तो ये हमेशा से ही बेहतर रहा है। ऊपर के आँकड़े बताते हैं कि 2008-2015 तक दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का परीक्षा परिणाम कभी 85% से कम नहीं हुआ। पिछले 3 सालों में अगर मामूली बढ़त हुई भी है तो उसी अनुपात में प्राइवेट स्कूलों का भी परिणाम सुधरा है। इस वर्ष यानी 2018-19 में अगर सरकारी स्कूलों का आँकड़ा 94% था तो प्राइवेट स्कूलों के आँकड़े भी 90% से ऊपर थे।

4) यहाँ यह भी देखना पड़ेगा कि जहाँ सरकारी स्कूलों में बच्चें कम हो रहे है, वही प्राइवेट स्कूलों में बच्चे बढ़ रहे हैं हर साल।

दिल्ली के इकॉनोमिक सर्वे (2018-19) की रिपोर्ट देखिये:

5) सरकारी स्कूलों में नामांकन घट रहे हैं, वहीं प्राइवेट स्कूलों में कुल नामांकन का शेयर भी दिल्ली में बढ़ता जा रहा है। सरकार द्वारा जारी की गयी इकॉनोमिक सर्वे की रिपोर्ट के आँकड़े इसकी गवाही देते हैं। इसके मुताबिक 2014-15 में जहाँ प्राइवेट स्कूलों का शेयर 31% था, 2017-18 में वह बढ़कर 45.5% से भी अधिक हो गया।

6) यहाँ पर एक बेहद चौंकाने वाली बात है कि परीक्षा परिणाम भले ही चाहे जैसा आये, परीक्षा में बैठने वाले बच्चों की संख्या हमेशा बढ़ती रही है, लेकिन जैसे ही आप सरकार में आई, परीक्षा में बैठने वाले विद्यार्थियों की संख्या घट गई।

देखिये बीते एक दशक से भी अधिक के आंकड़े:

1998-99 से लेकर 2007-08

2008-09 से लेकर 2017-18

जाहिर सी बात है, जब से आप आई है, दिल्ली के सरकारी स्कूलों से 12वीं की परीक्षा में बैठने वाले बच्चों की संख्या कम होती जा रही है।

7) जो सबसे प्रमुख बात है कि हर साल 9वीं एवं 11वीं की परीक्षा में बड़ी संख्या में बच्चों को फेल किया जा रहा है ताकि केवल अच्छे बच्चें ही 12वीं की परीक्षा दे सकें। हर साल परीक्षार्थियों की घटती संख्या इसकी गवाही देते है जहाँ हर साल लगभग 50% बच्चों को 9 वीं में फेल कर दिया जाता है (देखें आँकड़े)

वही 11वीं कक्षा में भी 28-29% बच्चों को फेल कर दिया जाता है। पढ़ें इंडियन एक्सप्रेस की ये ख़बर.

इसके बावजूद परिणामों में आंशिक बढ़ोतरी को इस तरीके से बताया जाता है मानो करामात हो गई।

द प्रिंट की रिपोर्ट पढ़िए कि कैसे फेक तरीके से प्राइवेट स्कूलों को दिल्ली के सरकारी स्कूल पछाड़ रहे हैं- Delhi govt schools beat private schools in class 12 results. Reason: 50% flunk class 9

10वीं का परिणाम आते ही केजरीवाल सरकार के शिक्षा-क्रांति के दावे हवा हो जाते हैं।

जिस 12वीं के परिणाम पर आप और उसके समर्थक सरकार की प्रशंसा करते नही अघाते, उन्हें 10वीं का रिजल्ट आते ही साँप सूंघ जाता है।

जानते हैं कुछ तथ्य

1) इस वर्ष यानी 2018-19 में प्राइवेट स्कूलों के मुकाबले दिल्ली के सरकारी स्कूल 21% पीछे रहे है। जहाँ दिल्ली के सरकारी स्कूलों का सामूहिक प्रतिशत 71.58% था, प्राइवेट स्कूलों का परिणाम 93.12% था। (संदर्भ)

2) पिछले सत्र यानी 2017-18 में 10वीं के परीक्षा परिणाम आये तो जहाँ सरकारी स्कूलों के 69.32% बच्चे पास हुए थे, प्राइवेट स्कूलों के बच्चों के पास होने का प्रतिशत 89.45% था। यानी प्राइवेट और सरकारी स्कूलों के बीच फासला 20% का था। (संदर्भ)

दिल्ली बीते दो सालों में 10वीं की परीक्षा में राष्ट्रीय औसत से भी बेहद घटिया परिणाम दे रहा है इसके बावजूद इसकी जिम्मेवारी लेने के लिए कोई आगे नही आ रहा।

3) दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 10वीं के रिजल्ट की हालत एक दशक पहले भी ऐसी नही थी। यह आप सरकार को श्रेय जाता है कि दिल्ली का प्रदर्शन पिछले एक दशक का भी रिकॉर्ड तोड़ अपने सबसे निम्नतम स्तर पर आ गया है।

4) प्राइवेट और सरकारी के बीच के गैप को पाटने में जो मेहनत दिल्ली के सरकारी स्कूलों में आप की सरकार बनने से पहले हुई थी, उसे चौपट करने की जिम्मेवारी दिल्ली सरकार को ही लेनी चाहिए। सरकारी और प्राइवेट के बीच के नेगेटिव फासले को यानी -45% से जो सरकारे प्लस में ले आई थी, 2013 में प्राइवेट स्कूलों को पछाड़ने का काम किया हो, आप की सरकार उसे दुबारा -21 में ले आई.

5) यह हालत तब है जब पिछले साल लगभग 42% बच्चे 9वीं की परीक्षा में फेल हो गए थे। यानी बेहतर बच्चे ही अगली कक्षा में भेजे गए।

जैसा कि ऊपर भी बताया गया, जिस 10वीं की परीक्षा में दिल्ली के सरकारी स्कूलों के परीक्षा परिणाम बीते दो सालों से बेहद ख़राब आ रहे है, उसी 10वीं की परीक्षा में 2013 में दिल्ली के बच्चों का प्रदर्शन प्राइवेट स्कूलों से बेहतर था। (संदर्भ)

5) दिल्ली के सरकारी स्कूलों में बड़ी संख्या में उन बच्चों को दुबारा नामांकन नहीं लेने दिया जा रहा, जो फेल हो गए थे। पिछले सत्र (2017-18) में ऐसे बच्चों की संख्या 66% थी।

पढ़ें दिल्ली हाई कोर्ट में अधिवक्ता अशोक अग्रवाल की याचिका का ये हिस्सा:

दिल्ली सरकार को 12वीं के Manipulated Achievement पर वाहवाही बटोरने की वजाए कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों का जबाब देना चाहिए कि –

1) लर्निंग आउटकम बढ़ाने के बड़े बड़े दावों के साथ “मिशन चुनौती” और “मिशन बुनियाद” चलाने के बावजूद भी इस तरह के परिणाम क्यों आ रहे हैं?

2) परीक्षा परिणामों को सुधारने के लिए बच्चों को क्यों फेल किया जा रहा है?

3) जो बच्चें फेल हो रहे है, उन्हें दुबारा नामांकन क्यों नही लेने दिया जा रहा?

4) सरकार चुनिन्दा स्कूलों की रंगाई-पुताई और कुछ भवन बनाकर वाहवाही लुटने की वजाए पढ़ने-पढ़ाने के ऊपर ध्यान क्यों नहीं दे रही?

दिल्ली सरकार के मुखिया को ध्यान रखना चाहिए कि कागज़ी आंकड़ों की बाजीगरी करके भले आप वाहवाही लूट लें, करोड़ों लुटाकर मीडिया का ध्यान भटका दें, जिन गरीब के बच्चों को स्कूली व्यवस्था से दूर कर रहे हैं, उन बच्चों के साथ खिलवाड़ कर राष्ट्र-अपराध कर रहे हैं।

Abhishek Ranjan: Eco(H), LL.B(University of Delhi), BHU & LS College Alumni, Writer, Ex Gandhi Fellow, Ex. Research Journalist Dr Syama Prasad Mookerjee Research Foundation, Spent a decade in Students Politics, Public Policy enthusiast, Working with Rural Govt. Schools. Views are personal.