पानि में माछ आ नौ कुट्टी बखरा… क्या कर्नाटक और कॉन्ग्रेस को चैन से जीने देगी खुशफहमी वाला ये जनादेश

नतीजों के बाद से ही इस पद के लिए पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और कर्नाटक कॉन्ग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार के बीच प्रतिस्पर्धा बताई जा रही है (फोटो साभार: न्यूज 18)

16 मई 2023 का दिन भी बीत गया। कॉन्ग्रेस कर्नाटक के लिए मुख्यमंत्री (Karnataka CM) का नाम तय नहीं कर पाई। नतीजों के बाद से ही इस पद के लिए पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया (Siddaramaiah) और कर्नाटक कॉन्ग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार (DK Shivakumar) के बीच प्रतिस्पर्धा बताई जा रही है। पर अब लिंगायत समुदाय (Lingayat community) भी इस पर दावा कर रहा है। यहाँ तक कि डिप्टी सीएम पद के लिए भी दावेदारी जताई जा रही है।

कर्नाटक में लिंगायत प्रभावशाली समुदाय हैं। कर्नाटक की राजनीति में येदियुरप्पा के उभार के बाद से वे बीजेपी समर्थक माने जाते रहे हैं। लेकिन इस बार कई लिंगायत प्रभाव वाली कुछ सीटों पर भी ​बीजेपी को पराजय मिली है। अखिल भारतीय वीरशैव महासभा (All India Veerashaiva Mahasabha) ने कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पत्र लिखकर इसकी ‘कीमत’ माँगी है।

15 मई को लिखे गए इस पत्र में कहा गया है कि कॉन्ग्रेस ने 46 लिंगायत उम्मीदवार चुनाव में उतारे थे। इनमें से 34 ने जीत हासिल की है। लिंगायत समुदाय ने अन्य 50 सीटों पर कॉन्ग्रेस की जीत में प्रमुख भूमिका निभाई है। लिंगायत समुदाय ने ऐसा भाजपा से अपनी वफादारी को कॉन्ग्रेस की तरफ मोड़कर किया है। वीरशैव महासभा कलबुर्गी के अध्यक्ष अरुण कुमार पाटिल ने कहा है, “लिंगायत समुदाय की मदद से कॉन्ग्रेस जीती है। 39 विधायक लिंगायत हैं। लिंगायत समुदाय से आने वाले कई नेता मुख्यमंत्री पद के योग्य हैं। ऐसे में हमने अपने समुदाय के किसी नेता को मुख्यमंत्री बनाने का आग्रह किया है।”

लिंगायत की तरह ही वोक्कालिगा (vokkaliga community) भी कर्नाटक में प्रभावशाली समुदाय है। वे इस विधानसभा चुनाव से पहले जेडीएस के परंपरागत वोटर माने जाते थे। लेकिन इस बार उन्होंने भी जेडीएस से कॉन्ग्रेस की ओर शिफ्ट किया है। इसकी वजह डीके शिवकुमार का वोक्कालिगा होना और कॉन्ग्रेस की जीत पर उनके मुख्यमंत्री बनने की प्रबल संभावना ही बताई जा रही है।

लेकिन कॉन्ग्रेस की परेशानी केवल मुख्यमंत्री चुनने तक ही सीमित नहीं है। उपमुख्यमंत्री पद के लिए भी दावेदारी शुरू हो गई है। बेलगावी उत्तर के विधायक आसिफ सैत का कहना है कि कर्नाटक कॉन्ग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष सतीश जारकीहोली को डिप्टी सीएम बनाया जाना चाहिए। जमीर अहमद खान और रामलिंगा रेड्डी को भी डिप्टी सीएम बनाने की माँग हो रही है।

कर्नाटक रेड्डी जनसंघ का कहना है कि रामलिंगा रेड्डी उनके समुदाय के सबसे वरिष्ठ नेता हैं। वे शिवकुमार और सिद्धारमैया की तुलना में ज्यादा बार विधानसभा के लिए चुने जा चुके हैं। अपनी माँग नजरंदाज किए जाने पर समुदाय के कड़े विरोध की चेतावनी भी कॉन्ग्रेस को दी है। इसी तरह जमीर अहमद खान के समर्थन में भी कोप्पल जिले के गंगावती में मुस्लिमों ने प्रदर्शन किया है।

कर्नाटक वक्फ बोर्ड के चेयरमैन शफी सादी भी उपमुख्यमंत्री पद पर मुस्लिम की दावेदारी जता चुके हैं। इतना ही नहीं वे गृह, राजस्व, स्वास्थ्य जैसे 5 खास विभाग के मंत्री भी मुस्लिम चाहते हैं।

इस खींचतान के बीच सवाल यह नहीं रहा कि कॉन्ग्रेस किसे मुख्यमंत्री चुनती है? ​कितने डिप्टी सीएम बनाती है? या फिर मंत्रिमंडल में किनको जगह मिलती है? सवाल है कि कॉन्ग्रेस को स्पष्ट जनादेश देकर भी कर्नाटक की जनता ने क्या हासिल किया? हमने ऐसी ही स्थिति में मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया को कॉन्ग्रेस छोड़ते और कमलनाथ की सरकार गिरते देखा है। इसी स्थिति के कारण हमने राजस्थान को अशोक गहलोत और सचिन पायलट तथा छत्तीसगढ़ को भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के शीतयुद्ध में पिसते देखा है।

क्या गारंटी है कि शिवकुमार या सिद्धारमैया में से जिसे नेतृत्व का अवसर नहीं मिलेगा, वो इसी तरह की स्थिति पैदा नहीं करेंगे? भले शिवकुमार आज मीडिया पर केस करने की बात कर रहे हैं। कह रहे हैं कि वे ब्लैकमेल नहीं करेंगे। पीठ में छुरा नहीं घोपेंगे। लेकिन इसके साथ ही वे यह भी कह रहे हैं कि सीएम की कुर्सी कोई पैतृक संपत्ति नहीं है जिसका बँटवारा हो। यह भी कहा है कि जब पार्टी संकट में थी तो उन्होंने जिम्मेदारी ली थी और कर्नाटक जीत कर आलाकमान को दिया है। वहीं ​मीडिया रिपोर्टों की माने तो सिद्धारमैया कम से कम शुरुआती दो साल सीएम रहना ही चाहते हैं। यह भी कहा जा रहा है कि ज्यादातर विधायक उनके ही समर्थक हैं। सिद्धारमैया वैसे भी जेडीएस छोड़कर कॉन्ग्रेस में आए हुए नेता हैं। ऐसे में किसी दल से तलाक ले लेना उनके लिए नई बात नहीं होगी।

मैथिली में एक कहावत है पानि में माछ आ नौ कुट्टी बखरा यानी पानी से मछली बाहर लाया नहीं गया और बँटवारा हो गया। इसका मतलब होता है कुछ प्राप्त होने से पहले ही खुशफहमी पाल लेना! दरअसल कर्नाटक में कॉन्ग्रेस को मिला जनादेश कुछ समुदायों और एक विशेष मजहब की इसी तरह की खुशफहमियों की उपज है। कॉन्ग्रेस की मजबूरी है कर्नाटक को मुख्यमंत्री देना। वह देगी भी। लेकिन सत्ता रूपी मछली में हिस्सेदारी की पहले से ही खुशफहमी पाले बैठे हिस्सेदार, क्या मनवांछित हिस्सेदारी नहीं मिलने पर कॉन्ग्रेस और कर्नाटक को चैन से जीने देंगे।

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