राजनीतिक हिंसा के लिए कुख्यात बंगाल में चुनाव खत्म, फिर भी राज्य में ही रहेंगे 32000 जवान: क्या काबू में रहेंगे TMC के गुंडे, जानिए क्यों पहली बार लेना पड़ा यह फैसला

पश्चिम बंगाल के गरबेटा में भाजपा उम्मीदवार प्रनत टुडू पर भी भारी पत्थरबाजी हुई

लोकसभा चुनाव 2024 का समापन हो चुका है। अब सिर्फ मतगणना, रुझानों और अंतिम परिणाम का इंतज़ार है। लगभग सभी Exit Polls ने भाजपा के पूर्ण बहुमत से सत्ता में आने का अनुमान लगाया है, ऐसे में I.N.D.I. गठबंधन के कैम्प में उदासी का माहौल है। इन सबके बीच 42 लोकसभा सीटों वाला पश्चिम बंगाल भी चर्चा में है। बताया जा रहा है कि यहाँ पहली बार ऐसा होगा जब भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरेगी। इन सबके बीच चुनावी हिंसा के लिए कुख्यात इस राज्य में इस बार भी वही हाल रहा।

पश्चिम बंगाल में सातों चरणों में मतदान हुए। चुनाव के बीच में ही संदेशखाली का मुद्दा भी छाया रहा। बशीरहाट के इस क्षेत्र में सत्ताधारी TMC (तृणमूल कॉन्ग्रेस) नेता शाहजहाँ शेख और उसके गुर्गों पर जनजातीय समाज की महिलाओं के यौन शोषण के आरोप लगे, उसकी गिरफ़्तारी हुई और राज्य सरकार को उसे संरक्षण देते हुए देखा गया। रामनवमी के त्योहार के ठीक बाद चुनाव शुरू हो गया, ऐसे में पश्चिम बंगाल में मुस्लिम ध्रुवीकरण का खेल भी जम कर खेला गया।

ज़्यादा पीछे जाने की ज़रूरत नहीं है, आप अंतिम चरण के मतदान को ही ले लीजिए। कोलकाता के जाधवपुर के भंगार स्थित सतौलिया में हिंसा हुई। हिंसा भाजपा-TMC के बीच नहीं थी, बल्कि फुरफुरा शरीफ दरगाह के मुखिया अब्बास सिद्दीकी की पार्टी ISF और राज्य में 34 वर्षों तक सत्ता में रही CPI(M) समर्थकों के बीच हुई। साउथ 24 परगना के कुलतली में तो उपद्रवी भीड़ पोलिंग स्टेशन के बहतर ही घुस गई और EVM को तालाब में फेंक दिया।

संदेशखाली में मामला इतना बढ़ गया कि स्थानीय महिलाओं को सुरक्षा के लिए बाँस की डंडियाँ लेकर सड़क पर उतरना पड़ा। उनका कहना था कि शाहजहाँ शेख से उन्हें अब भी खतरा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक के लोकसभा क्षेत्र डायमंड हार्बर में भाजपा समर्थकों के साथ TMC के गुंडों ने हिंसा की। जाधवपुर के गांगुली बागान में TMC वालों ने लेफ्ट वालों को पीटा। साउथ 24 परगना के इतखोला में मीडियाकर्मी भी पत्थरबाजी की चपेट में आ गए।

ये सिर्फ अंतिम चरण की घटनाएँ थीं, वो भी जो मीडिया में आ गईं, तो सोचिए पश्चिम बंगाल में सातों चरणों में किस माहौल में चुनाव हुआ है। और किस माहौल में वहाँ मतगणना होगी, किस माहौल में भाजपा कार्यकर्ता खुद को पाएँगे जब उनकी पार्टी सीटों की बढ़त लेगी। इसकी शुरुआत भी हो गई है। नदिया जिले में हाल ही में भाजपा में शामिल होने वाले हफीजुल शेख को मार डाला गया। चाय की टपरी पर उनके सिर में गोली मारी गई। उनका सिर क्षत-विक्षत हो गया

यही कारण है कि भले ही चुनाव संपन्न हो गए, लेकिन पैरामिलिट्री की कंपनियाँ पश्चिम बंगाल में अभी अगले कुछ दिन भी डटी रहेंगी। ‘सेन्ट्रल आर्म्ड पुलिस फ़ोर्स’ (CAPF) की 400 कंपनियाँ राज्य में तैनात की गई हैं। 4 जून को भले ही मतगणना पूरी हो जाए और परिणाम आ जाएँ, अगले 2 हफ्ते तक जवान यहाँ रहेंगे। 19 जून तक इन्हें यहाँ मोर्चा सँभालने को कहा गया है। 2023 में संपन्न हुए पंचायत चुनाव में भी 50 से अधिक लोग मारे गए थे।

पश्चिम बंगाल में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, अगर हम 2021 में हुए विधानसभा चुनावों को देखें तो उसमें भी CAPF की 1000 कंपनियाँ तैनात की गई थीं। तीसरे चरण के बाद 200 नई कंपनियाँ बुलाई गईं, वहीं 71 अतिरिक्त कंपनियाँ चौथे चरण के बाद बुलानी पड़ी। ऐसे में समझ जाइए कि चुनाव आयोग को पश्चिम बंगाल में मतदान संपन्न करवाने में कितनी दिक्कतें आती हैं। चुनाव भी 8 चरणों में कराने पड़े थे। इसी तरह 2019 का लोकसभा चुनाव भी हिंसा से अछूता नहीं रहा था।

पहली बार भाजपा ने पश्चिम बंगाल में 18 सीटें प्राप्त की, जबकि TMC 22 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बनी। लेकिन, बड़ी बात ये थी कि भाजपा 2 सीटों से 18 पर पहुँची थी, जबकि तृणमूल कॉन्ग्रेस 34 से 22 पर आ गई। अब पश्चिम बंगाल में मतगणना व उसके बाद के संभावित माहौल को देखते हुए संवेदनशील इलाकों को चिह्नित कर वहाँ सुरक्षा बढ़ाई जा रही है। पश्चिम बंगाल ऐसा राज्य है, जहाँ सिर्फ चुनाव के दौरान नहीं बल्कि उसके बाद भी जबरदस्त हिंसा होती है।

बड़ी बात ये है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से कोई इस्तीफा नहीं माँग रहा, न ही कोई उन्हें तानाशाह बता रहा। न ही उनके खिलाफ YouTube पर ध्रुव राठी जैसे लोग वीडियो बना रहे, न ही अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान पश्चिम बंगाल के माहौल को लेकर ख़बरें प्रकाशित कर रहे। TV पर बुद्धिजीवियों को भी इस पर चर्चा करते हुए नहीं देखा गया। हाँ, जो भाजपा केंद्र में सत्ता में है और जिसके कार्यकर्ता मारे जा रहे हैं, उसे ज़रूर तानाशाह बता-बता कर एजेंडे के तहत एक अलग नैरेटिव फैलाया जा रहा है।

पश्चिम बंगाल में भ्रष्टाचार के भी कई मामले सामने आ रहे हैं। शाहजहाँ शेख भी राशन घोटाले में फँसा हुआ है, उसे गिरफ्तार करने गई ED की टीम पर हमला हुआ था। कलकत्ता हाईकोर्ट ने भर्ती घोटाले के बाद 25,000 से भी अधिक नव-नियुक्त शिक्षकों को हटा दिया। ऐसे ही 2010 के बाद जारी हुए OBC प्रमाण-पत्रों को रद्द कर दिया गया, क्योंकि मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए इसमें कई मुस्लिम जातियों को जोड़ दिया गया था। पश्चिम बंगाल ‘कट मनी’ वाले घूस के लिए भी जाना जाता है, ऐसे में भ्रष्टाचार वहाँ व्यवस्थागत हो चुका है।

लेफ्ट के समय ही पश्चिम बंगाल चुनावी हिंसा का जब बन गया था, TMC ने इस कल्चर को जोरदार तरीके से आगे बढ़ाया। TMC के नेताओं और इसके कैडर को समझना चाहिए कि ये लोकतांत्रिक चुनाव है, कोई युद्ध नहीं। यहाँ उँगली का इस्तेमाल कर के बटन दबाया जाता है, ट्रिगर नहीं दबाया जाता। यहाँ अपने मताधिकार का प्रयोग करना है, किसी का सर नहीं फोड़ना। जनादेश को स्वीकार किया जाता है, हार होने पर हिंसा नहीं की जाती। हिंसा की संस्कृति गलत है, ये इंसानों का काम नहीं।

BSF के पूर्व DG प्रकाश सिंह ने चुनाव आयोग के ताज़ा फैसले को समझाते हुए कहा है कि सामान्य परिस्थितियों में केंद्र में सरकार बन जाने और राज्य में प्रशासन राज्य सरकार के अधीन हो जाने के बाद केंद्र सरकार राज्य से सुझाव का इंतज़ार करती है कि वहाँ अर्धसैनिक बलों की ज़रूरत है या नहीं। प्रकाश सिंह का मानना है कि हालिया मामला असाधारण है, क्योंकि ECI ने ये आदेश दिया है। उनका कहना है कि सीटें TMC को ज़्यादा मिलें या BJP को, हिंसा की आशंका दोनों परिदृश्यों में है।

यानी, परिणाम जो भी हों लेकिन हिंसा की आशंका है ही है। हालाँकि, आशंका ये भी है कि केंद्रीय बलों का इस्तेमाल राज्य सरकार के अधीन रहता है, ऐसे में हिंसा की स्थिति में TMC सरकार इसका इस्तेमाल नहीं करती है तो सुरक्षा बलों के जवान Immobilised (अचल) अवस्था में रहेंगे। ऐसी परिस्थिति में क्या होगा, सवाल ये है? क्योंकि, हिंसा का आरोप सत्ताधारी दल पर है, अर्धसैनिक बलों का इस्तेमाल भी उनके हाथ में है। खैर, देखते हैं इस बार पश्चिम बंगाल के पिटारे में क्या है।

अनुपम कुमार सिंह: भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।