तेजाब हमला निर्मम अपराध, दोषी नरमी का हक़दार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने तेजाब हमला को बताया निर्मम अपराध

तेजाब हमले का नाम सुनते ही हमारी रूह काँप जाती है, रोंगटे खड़े हो जाते हैं। तो जरा उन लोगों के बारे में सोचिए, जिन्होंने इस दर्द को झेला है, इसे जिया है। कभी एकतरफा प्यार, तो कभी आपसी दुश्मनी की वजह से सैकड़ों लड़कियों के ऊपर तेजाब से हमला होता आ रहा है। ये हमला उन्हें ना सिर्फ शारीरिक तौर पर बल्कि मानसिक तौर पर भी गहरा आघात पहुँचाता है। इससे शरीर तो झुलसता ही है साथ ही आत्मा भी झुलस जाती है।

तेजाब हमला निर्मम अपराध

अभी ताजा मामले में उच्चतम न्यायालय ने भी तेजाब हमले को ‘असभ्य व निर्मम’ करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये एक असभ्य व निर्मम अपराध है, जिसके लिए किसी तरह की कोई नरमी नहीं बरती जा सकती। बता दें कि शीर्ष अदालत ने करीब 15 साल पहले 2004 में 19 वर्षीय लड़की पर तेजाब फेंकने के अपराध में 5 साल जेल में गुजारने वाले दो दोषियों को आदेश दिया कि वे पीड़ित लड़की को डेढ़ डेढ़ लाख रूपए का अतिरिक्त मुआवजा भी दें। इस मामले पर न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि न्यायालय इस स्थिति से बेखबर नहीं है कि पीड़िता को इस हमले से जो भावनात्मक आघात पहुँचा है, उसकी भरपाई दोषियों को सजा देने या फिर किसी भी मुआवजे से नहीं की जा सकती। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने दोनों दोषियों को सुनाई गई 10 वर्ष की सजा को घटाकर 5 वर्ष कर दिया था। राज्य सरकार हाईकोर्ट की इसी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाया।

तेजाब हमले के बाद करना पड़ता है अंतहीन मुसीबतों का सामना

तेजाब हमले को लेकर आम तौर पर लोग यही सोचते हैं कि सिर्फ चेहरा ही या फिर शरीर का कोई एक अंग ही तो जला या खराब हुआ है, मगर वो नहीं जानते कि जो लड़कियाँ इसकी शिकार होती हैं, उन्हें अंतहीन मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। लोगों को ऐसा लगता है कि ये दर्द सिर्फ जले हुए भाग के ठीक होने तक ही रहता है, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि इसका असर अंदरूनी टिश्यू पर भी होता है, क्योंकि जो तेजाब डाला जाता है, वो सिर्फ शरीर के ऊपरी भाग पर ही नहीं, बल्कि अंदरुनी टिश्यू में भी चला जाता है। जिसका असर बाद में पता चलता है। इसकी वजह से लीवर, फेफड़े वगैरह भी डैमेज हो जाते हैं, जिससे पीड़िता की मौत भी हो सकती है।

तेजाब हमले की पीड़ित महिलाओं को होने वाली परेशानियों को लेकर बीबीसी ने इसके विशेषज्ञ सर्जन से बात की है। जिसमें ये बताया गया है कि इस दौरान पीड़िता किन किन परिस्थितियों से गुजरती है। इसका इलाज अलग-अलग चरणों में होता है। पहले तो इसे दवाओं की मदद से ठीक करने की कोशिश की जाती है, मगर जब घाव दो से तीन हफ्तों में ठीक नहीं होता, तो दूसरे चरण में ‘स्किन ग्राफटिंग’ करनी पड़ती है। इसमें पीड़ित के शरीर से त्वचा की एक पतली परत ली जाती है और जले हुए हिस्से पर नई त्वचा की परत लगा दी जाती है और अगर जले हुए हिस्से में खून की सप्लाई सही होता है वो हिस्सा धीरे धीरे ठीक हो जाता है। अमूमन ऐसी स्थिति में पीड़ित के शरीर के ही किसी हिस्से की त्वचा की परत लेकर लगाया जाता है, लेकिन जब पीड़ित इस स्थिति में नहीं होता है कि उसके शरीर के किसी हिस्से से त्वचा ली जा सके, तो फिर ऐसे में अस्थाई तौर पर किसी दूसरे व्यक्ति के शरीर के किसी हिस्से की त्वचा लेकर लगा दिया जाता है, मगर ये ज्यादा दिन के लिए काम नहीं करता है, जल्द ही पीड़ित को अपनी स्किन देनी पड़ती है।

तेजाब पीड़िता प्रज्ञा ने की मिसाल कायम

अक्सर ऐसा देखा जाता है कि तेजाब हमले के बाद पीड़िता टूट जाती है, उनका आत्मविश्वास खत्म हो जाता है, उनके अंदर हीन-भावना घर कर जाती है, लेकिन कुछ ऐसी भी लड़कियाँ हैं, जो कि हौसला दिखाते हुए मिसाल कायम करती है और दूसरों को भी प्रेरित करती है। इन्हीं में से एक हैं- वाराणसी की प्रज्ञा सिंह। प्रज्ञा बताती हैं कि साल 2006 में उनके ऊपर तेजाब से हमला किया गया था, जिसमें उनका चेहरा बुरी तरह से जल गया था। इसे ठीक होने में लगभग दो साल लग गए। हालाँकि उनके सामने तेजाब हमले से उबरने के लिए कॉस्मेटिक सर्जरी का विकल्प था, जिससे उनके घाव के निशान खत्म हो सकते थे और उनका चेहरा पहले की तरह बन सकता था, लेकिन उन्होंने हिम्मत और आत्मविश्वास का परिचय देते हुए अपने इसी चेहरे के साथ आगे की ज़िंदगी को जीना स्वीकार किया। प्रज्ञा ने पीड़ित बने रहने की बजाए ऐसे जघन्य अपराधों की शिकार हुई पीड़िताओं के लिए बदलाव लाने की ठान ली और साल 2013 में उन्होंने अतिजीवन फाउंडेशन की स्थापना की। इसके तहत वो अपने जैसी पीड़िताओं की मदद करने के साथ ही उनकी मुफ्त सर्जरी भी करवाती है। उनकी ज़िंदगी संवारने के लिए उन्हें नौकरी भी दिलवाती है।

तेजाब हमले से नहीं रुकती ज़िंदगी

प्रज्ञा जैसी महिलाओं को देखकर प्रेरणा मिलती है कि तेजाब हमले के जख्मों से ज़िंदगी रूकती नहीं है, बस हौसलों की कमी होती है। अगर वो हौसला दिखा दिया जाए तो ज़िंदगी थोड़ी सी आसान हो जाती है। वहीं हिमाचल प्रदेश की 19 वर्षीय तेजाब पीड़िता के मामले में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से सुनाया गया फैसला सराहनीय है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया