खग ही जाने खग की भाषा: रामचरित मानस के बहाने कोरोना और चमगादड़ वाली धूर्तता के पीछे का सच

रामचरितमानस में है चमगादड़ से बीमारी होने का जिक्र?

“खग ही जाने खग की भाषा”, हिंदी का एक प्रचलित मुहावरा है। मोटे तौर पर इसका इस्तेमाल तब होता है जब दो लोग बात तो सार्वजनिक तौर पर कर रहे हों मगर उसका गूढ़ अर्थ केवल वही दोनों समझ रहे हों। बाकी लोगों के लिए उसका कोई अर्थ नहीं निकलता है। जो लोग संवाद (कम्युनिकेशन, मास कम्युनिकेशन) जैसे विषय पढ़ते हैं, उन्होंने इसे किसी ना किसी अध्याय में टार्गेटेड कम्युनिकेशन के नाम से पढ़ रखा होता है। जासूसी फिल्मों के शौक़ीन लोगों ने भी देखा होगा कि कैसे कोई चिट्ठी जो आम सी लगती है, उसमें छुपा कोई कूट सन्देश निकल आता है।

ये सब टार्गेटेड कम्युनिकेशन है, जिसे मोटे तौर पर “खग ही जाने खग की भाषा” कह दिया जाता है। इस जुमले के पैदा होने के पीछे रामचरितमानस है। रामचरितमानस को अलग-अलग जगह दो लोगों के संवाद के तौर पर लिखा गया है। जैसे अगर शुरुआत का हिस्सा देखें तो ये शिव-पार्वती संवाद है। रामचरितमानस का आखरी हिस्सा काकभुशुण्डी और गरुड़ का संवाद है। वहाँ होता कुछ यूँ है कि गरुड़ जी राम कथा सुनना-समझना चाहते थे मगर खुद भगवान भी उन्हें समझा पाने में स्वयं को असमर्थ पा रहे थे।

अंततः उन्होंने निर्णय लिया कि कोई पक्षी (खग) ही गरुड़ को रामकथा समझा पाएगा। इसलिए गरुड़ को काकभुशुण्डी जी के पास रामकथा के श्रवन के लिए भेज दिया गया और कहा गया “खग ही जाने खग की भाषा”। ये कहानी आज इसलिए याद आई क्योंकि रामचरितमानस के उत्तर काण्ड में जहाँ काकभुशुण्डी, गरुड़ को सात प्रश्नों के उत्तर दे रहे होते हैं, वहाँ किसी ने “चमगादड़” शब्द देख लिया। वहाँ काम-क्रोध, लोभ इत्यादि की बीमारी से तुलना की गई है तो “रोग” शब्द भी नजर आ गया।

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अब इस (संभवतः धूर्त) व्यक्ति को ये भी पता था कि अधिकांश हिन्दुओं की रामचरितमानस में श्रद्धा तो है, लेकिन कभी उन्होंने इसे पूरा पढ़ा नहीं! तो एक पन्ने की तस्वीर को उन्होंने दोहा संख्या 120 में चमगादड़ और रोग का जिक्र है, ऐसा कहकर व्हाट्स-एप्प इत्यादि माध्यमों से दौड़ा दिया। पूरा पढ़ने वालों को पता होता है कि वहाँ काम को वात (वायु), लोभ को कफ, और क्रोध को पित्त कहा गया है, जिनके बढ़ने से रोग होता है। सबकी निंदा करने वाले अगले जन्म में चमगादड़ होंगे, शायद उल्टा लटकने वाले, तुलसीदास जी का ऐसा आशय रहा होगा।

इसका वो मतलब तो बिलकुल नहीं जो बताया जा रहा है। बाकी अगर खुद भी ऐसा फॉरवर्ड देखा हो तो सोचियेगा, अभी दस-बारह दिन बाकी हैं। इतने दिनों में अगर पूरी रामचरितमानस एक बार पढ़ लें, तो कम से कम कोई इतनी आसानी से तो नहीं ठग पाएगा! थोड़ी मेहनत तो करवाइए ठगों से।

Anand Kumar: Tread cautiously, here sentiments may get hurt!