58% भ्रष्टाचारी ब्राह्मण, 84% ईमानदार मुस्लिम: बॉलीवुड के गटर ने ‘आदिपुरुष’ को किया बर्बाद, श्रीराम से लेकर हनुमान तक का अपमानजनक चित्रण

फिल्म आदिपुरुष में राम की भूमिका में प्रभास और रावण की भूमिका में सैफ अली खान

भारत देश की सिनेमा इंडस्ट्री अर्थात बॉलीवुड के दोगलेपन से हम सब काफी समय से वाकिफ हैं। कला के नाम पे ये अनगिनत अपमानजनक सामग्री बना कर बेच चुके हैं, ठीक वैसे ही जैसे किसी ने अपनी मर्यादा बेच दी हो। दूर से चमचमाता हुआ ये कालसर्पी गटर बड़ा ही आकर्षक लगता है। बहुत ही गिने चुने व्यक्ति हैं जो सामाजिक दृश्य की सही प्रस्तुति करते हैं अपनी सिनेमा में। बॉलीवुड के दूषित गर्भ से एक और अपमानजनक फ़िल्म का जन्म हुआ है जिसका नाम आदिपुरूष है।

जी हाँँ, हमारे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के शौर्य और शिक्षा को अमर्यादित रूप से प्रस्तुत करने की कोशिश। माता सीता की झलक ऐसी दिखाई गई है जैसे पुराने फिल्मों की मधुबाला। राम भक्त श्री हनुमान जी की भक्ति और तप का उपहास और शिव भक्त प्रकांड पंडित रावण की भी भर्त्सना की गई है। हनुमान चालीसा में ही अंजनीपुत्र के स्वरूप का वर्णन श्री तुलसीदास जी ने किया है। वो पंक्तियाँ हैं:

कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥
अर्थ- आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।


हाथबज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजै॥5॥
अर्थ- आपके हाथ में बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।

इस फ़िल्म में दर्शाए गए हनुमान जी के चरित्र का इससे दूर-दूर तक कोई सामंजस्य नहीं दिखता। विपरीत रूप में उन्हें चमड़े के वस्त्र और बिना गदा के दिखाया गया है।

ये फ़िल्म अभी सिनेमाघरों में रिलीज नही हुई है पर इसके दो मिनिट के टीजर ने सनातनी भावनाओं को आघात किया है। कला का सही मूल्य तभी है जब वो जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए सच प्रदर्शित करे। इस फ़िल्म में ना ही श्रीराम की स्वर्णिम व्यक्तित्व की झलक मिलती है ना हनुमान जी की प्रेमपूर्ण भक्ति। सात्विक स्वभाव के हमारे देवगणों को चमड़े के वस्त्रों में दिखाया गया है। हनुमान चालीसा तक बहुत ही सुंदर व्याखान करती है।

वहीं पंडित रावण की वेशभूषा ऐसी प्रतीत होती है जैसे कोई मध्यकालीन क्रूर शासक हो जो भारत पे आक्रमण करने आया हो। रावण की स्वर्णरूपी नगरी लंका को भी एक काले खंडहर के रूप में दिखाया गया है। पुष्कप विमान की जगह किसी काले चमगादड़ को रावण की सवारी बना दी गई है। जैसा हमें ज्ञात है की शिव भक्त रावण को चारो वेद कंठस्त्य थे। शिवतांडव स्त्रोत की रचना रावण ने ही की थी। रावण अहंकारी जरूरी था, पर उतना ही ज्ञानी भी। रावण का वध तय था श्रीराम के हाथों, पर श्रीराम ने भी उसकी विद्वत्ता की सराहना की थी। रावण को तो फिल्म निर्माताओं ने छपरी हेयरकट और औरंगजेबी वेशभूषा दे दी है।

इतना बुरा वर्णन बस दो मिनट के टीजर में था तो पूरी फिल्म में की गई पात्रों की दुर्गति की कल्पना भी कठिन है।

ये पहली बार नहीं है कि बॉलीवुड ने हिंदू विरोधी फिल्म कला या यह कहूँ की कलंक के नाम पर पेश की है। पिछले वर्ष ही तांडव नाम की कुप्रस्तुति की गई थी। इस फिल्म में सैफ अली खान थे और इसपे पर बहुत बहस हुई थी। आज से कुछ वर्षो पहले आमिर खान की फिल्म पीके ने भी हिंदू समाज के गुरु की नकारात्मक छवि दिखाई थी। इसी पीके फिल्म में शिवजी के रूप का उपहास किया गया था, कहीं उन्हें मोबाइल फ़ोन पर बात करते भी दिखाया गया, सिर्फ हिंदू रीति रिवाजों का मजाक उड़ाया गया। अन्य कई फिल्में हैं जो की लव जिहाद और हिंदू फोबिया को नॉर्मलाइज करती हैं।

बॉलीवुड के गटर से निकले कुछ निर्देशक अब वेब सीरीज़ भी बनाते हैं। अलग-अलग ऑनलाइक प्लेटफार्म पे गंदी वेब सीरीज़ का अंबार लगा है। ठीक वैसे ही जैसे कूड़े का पहाड़। ऐसी ही वेब सिरीज़ जो भारतीय संस्कृति के वार पे इस सुसंस्कृति को वासना से भर रही है। कला के नाम पे बस अश्लीतला बेची जा रही ही जाती है। नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई सुटेबल ब्वॉय में अगर एक मंदिर की मर्यादा को चोट पहुँचाने की कोशिश की गई तो वहीं नेटफ्लिक्स पर ही रिलीज़ हुई एक और फिल्म लुडो को लेकर भी सवाल उठे।

इस फिल्म में चार कहानियों को एक में पिरोया गया लेकिन अनुराग बासु अपनी एंटी हिंदू सोच का गटर यहाँ भी खोल गए।
एक रिसर्च के मुताबिक- 

  • बॉलीवुड की फिल्मों में 58% भ्रष्ट नेताओं को ब्राह्मण दिखाया गया है।
  • 62% फिल्मों में बेइमान कारोबारी को वैश्य सरनेम वाला दिखाया गया है।
  • फिल्मों में 74% फीसदी सिख किरदार मज़ाक का पात्र बनाया गया।
  • जब किसी महिला को बदचलन दिखाने की बात आती है तो 78 फीसदी बार उनके नाम ईसाई वाले होते हैं।
  • 84 प्रतिशत फिल्मों में मुस्लिम किरदारों को मजहब में पक्का यकीन रखने वाला, बेहद ईमानदार दिखाया गया है, यहाँ तक कि अगर कोई मुसलमान खलनायक हो तो वो भी उसूलों का पक्का होता है।

कट्टरपंथियों के कब्जे में फिल्म इंडस्ट्री

कुल मिलाकर बॉलीवुड में एक खास धड़ा इसी पर काम कर रहा है, उन्हें पक्का यकीन है कि वो अगर हिंदू संस्कृति पर सवाल उठाएँगे तो ज़ाहिर है लिबरल सनातन समाज उन्हें कठघरे में नहीं खड़ा करेगा,  जबकि मुस्लिम समुदाय कार्टून/कैरिकेचर बनने पर ही बवाल खड़े कर देता है। यही वजह है कि कुछ फिल्मों में हिंदू धर्म के प्रति पक्षपाती रवैया देखा गया।

एक फिल्म निर्देशक का काम है सही रिसर्च करना अगर वो एक महाकाव्य पर फ़िल्म बनाने की इच्छा रखते हैं। और सवाल यह है कि बॉलीवुड में सिर्फ हिंदू भावनाओं के साथ क्यों खिलवाड़ किया जाता आ रहा है। ख़ैर हमारी उम्मीद ही शायद गलत है। जिन लोगों की ख़ुद की ज़मीर ही नहीं न खुद की इज़्ज़त, वो दूसरो के धार्मिक भावनाओं का क्या ध्यान रखेंगे। समय आ गया है खुद के लिए आवाज़ उठाने का। अपनी आवाज़ बुलंद करे और पूर्ण रूप से इस अपमानजनक फिल्म का बहिष्कार करें। जब बॉलीवुड हमारे इतिहास और भावनाओं का सम्मान नही कर सकता तो उसे भी सम्मान नही मिलेगा।

जय हिंद। जय श्रीराम।

Vivek Pandey: Vivek Pandey is an Indian RTI Activist, Freelance Journalist, MBBS, Whistelblower and youtuber. He is Writing on RTI based information, social and political issue's also covering educational topics for Opindia. He is also well known for making awareness, educational and motivational videos on YouTube.