‘बाइबिल ठीक करेगा कोरोना’: वैक्सीन के खिलाफ मिशनरी प्रोपेगंडा पर चुप्पी, मदद करने वाले मंदिर ही बन रहे निशाना

कोरोना वैक्सीन के खिलाफ मिशनरी प्रोपेगंडा पर चुप क्यों मीडिया?

देश भर में कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर जहाँ केंद्र सरकार जागरूकता फैलाने में लगी हुई है और रोज ज्यादा से ज्यादा टीकाकरण का लक्ष्य लेकर चल रही है, वहीं कुछ मजहबी ताकतें ऐसी हैं जो कोरोना के खिलाफ इस लड़ाई को कमजोर कर के कट्टरता के सहारे लोगों को बरगलाने में लगी हुई है। हाल ही में हमने बताया था कि कैसे ‘इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA)’ के अध्यक्ष JA जयलाल देश के अस्पतालों में ईसाई धर्मांतरण की साज़िश रच रहे थे।

भारत के स्वास्थ्य प्रोफेशनल्स के सबसे बड़े परिषद ‘इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (IMA)’ के अध्यक्ष JA जयलाल ‘सेक्युलर संस्थाओं’ के ईसाई धर्मांतरण की इच्छा रखते हैं और चाहते हैं कि अस्पतालों का इस्तेमाल भी ईसाई धर्मांतरण के लिए हो। उन्होंने कहा था कि वे चाहते हैं कि IMA ‘जीसस क्राइस्ट के प्यार’ को साझा करे और सभी को भरोसा दिलाए कि जीसस ही व्यक्तिगत रूप से रक्षा करने वाले हैं। उनका मानना है कि चर्चों और ईसाई दयाभाव के कारण ही विश्व में पिछली कई महामारियों और रोगों का इलाज आया।

अब आप सोचिए, एक इतने बड़े पद पर बैठा व्यक्ति जब इस तरह की बातें करता है तो मीडिया उसकी आलोचना क्यों नहीं करती? आपको मीडिया में उसकी आलोचना तो दूर की बात, कहीं उसकी मंशा को लेकर एक खबर तक नहीं मिलेगी। जिस व्यक्ति को एक वैज्ञानिक और मेडिकल प्रोफेशनल्स की संस्था का मुखिया चुना गया है, वो इसके इस्तेमाल मजहबी गतिविधियों के लिए करता है और मीडिया में कहीं कोई सवाल नहीं।

इन चीजों का अब दुष्प्रभाव भी देखने को मिल रहा है। उत्तर-पूर्वी राज्यों में ईसाई संगठनों ने कोरोना वैक्सीन को लेकर इतनी अफवाहें फैलाई हैं कि वहाँ लोग इसे ‘शैतानी ताकत’ बताते हुए इसकी डोज लेने से इनकार कर रहे हैं। ‘प्रेयर वॉरियर्स’ जैसी संस्थाएँ इसके पीछे हैं। एक ईसाई संगठन ने टीकाकरण को ‘ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध’ बताते हुए इससे दूर रहने की अपील की थी। बरगलाया गया कि कोरोना का टीका लेने वाले ईसाई साम्राज्य में प्रवेश नहीं कर पाएँगे।

इसके पीछे JA जयलाल किस्म के लोग ही हैं। ये लोग मेडिकल संस्थाओं से लेकर चर्चों तक में बैठे हुए हैं। ऐसा नहीं है कि अन्य मजहबों में ये समस्या नहीं है। महाराष्ट्र और गुजरात में मुस्लिमों को कोरोना वैक्सीनेशन के प्रति जागरूक करने के लिए मस्जिदों से अजान के वक़्त इसके बारे में बताया गया, लेकिन असर ढाक के तीन पात ही रहा। कुछ मुस्लिम बहुल इलाकों में अफवाह फैली कि कोरोना वैक्सीन से लोग नपुंसक हो जाएँगे।

लेकिन, ईसाई मिशनरियों द्वारा इस तरह के अफवाह फैलाने के दुष्परिणाम दूरगामी होते हैं। भारत में ईसाईयों में अधिकतर वो लोग हैं, जो पहले हिन्दू थे और गरीबी के कारण उन्हें लालच देकर ईसाई बनाया गया। धर्मांतरण का ये खेल केरल से लेकर झारखंड और उत्तर-पूर्व तक चल रहा है। गरीबों पर इस महामारी की सबसे ज्यादा मार पड़ी है और उन्हें ही टीके से दूर किया जा रहा है। मणिपुर के ईसाईयों का मानना है कि उन्हें वैक्सीन नहीं, बाइबिल बचाएगी।

इसी तरह मध्य प्रदेश के रतलाम में एक महिला डॉक्टर मरीजों से ये कहते हुए पाई गई कि वो ठीक होने के लिए जीसस से प्रार्थना करें। बाजना गाँव में अनुबंध पर बहाल ये डॉक्टर ‘कोरोना को मारने के लिए’ ईसाई मजहबी गतिविधियों का प्रचार कर रही थी। भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा ने इस घटना के बारे में ट्वीट करते हुए कहा भी कि दवाई की जगह धर्म परिवर्तन की घुट्टी पिलाने वालों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

https://twitter.com/Shailen96752478/status/1396373302810071043?ref_src=twsrc%5Etfw

आज अगर ये सब हो रहा है तो इसके पीछे वो नेतागण भी जिम्मेदार हैं, जो विपक्ष में बैठे हुए हैं। राहुल गाँधी से लेकर अखिलेश यादव तक ने कोरोना वैक्सीन को लेकर जम कर अफवाहों का बाजार गर्म किया। विपक्षी दलों व इनके नेताओं ने कभी वैक्सीन के ट्रायल को लेकर तो कभी इसके ‘साइड इफेक्ट्स’ को लेकर अफवाहें फैलाईं। आज यही नेता टीकाकरण के आँकड़े दिखा कर इसके धीमे होने का आरोप लगा रहे हैं।

इनके लिए वैक्सीन पहले अच्छा था और अब बुरा हो गया है। इन नेताओं ने जम कर विदेशी वैक्सीन्स की पैरवी की। इसके लिए पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह से पत्र भी लिखवाया गया। वो अलग बात है कि उन्होंने और उनकी पत्नी ने स्वदेशी वैक्सीन की दोनों डोज ले ली थी। इसके बाद दोनों कोरोना संक्रमित हुए लेकिन अस्पताल से सकुशल वापस आए। वैक्सीन की दूसरी डोज लेने के बाद एंटीबॉडी बनने में दो हफ्ते का वक़्त लगता है।

इन सबके बावजूद सवाल किस से पूछे जा रहे हैं? हिन्दुओं से। निशाना किस पर साधा जा रहा है? मंदिरों पर। उन मंदिरों पर जो लंदन से लेकर अयोध्या तक जनहित के कार्यों में लगे हुए हैं। UK की सरकार ने कोरोना के खिलाफ जागरूकता के लिए वहाँ के स्वामीनारायण मंदिर की मदद ली। अयोध्या में राम मंदिर ने अपने निर्माण से पहले ही ऑक्सीजन प्लांट्स लगवाने का फैसला लिया। कई मंदिरों ने राज्यों और केंद्र के आपदा कोष में धन दान किए।

मुंबई में जैन मंदिरों ने खुद को कोविड केयर सेंटर्स में तब्दील कर लिया। काशी विश्वनाथ मंदिर ने गरीबों के भोजन का बीड़ा उठाया। तिरुपति बालाजी मंदिर के कर्मचारियों ने अपना 1 दिन का वेतन दान किया। पटना के महावीर मंदिर, गुजरात के सोमनाथ मंदिर और बनासकांठा के अम्बाजी मंदिर ने एक-एक करोड़ रुपए सरकार को दान में दिए। इस तरह हर छोटे बड़े मंदिरों, मठों व साधुओं ने अपना-अपना योगदान दिया।

क्या आपने कभी किसी खबर में सुना कि इन्होंने दान के बदले में धर्मांतरण को आगे बढ़ाया हो? ये काम तो वो लोग कर रहे हैं, जिन्हें दवाओं और मेडिकल गाइडलाइंस के प्रति लोगों में जागरूकता फैलानी चाहिए। पर IMA के JA जयलाल जैसे लोग उलटे बाबा रामदेव पर आरोप लगा रहे हैं कि जीवन को खतरे में डालने और एलोपैथी दवाओं को लेकर झूठी अफवाह फैलाने के लिए उन पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए।

लोगों की मदद करने वाले मंदिरों से सवाल पूछने वाले मीडिया क्या कर रहा है? वामपंथी मीडिया पोर्टल द वायर, द स्क्रॉल में बतौर लेखक योगदान देने वाले किरण कुंभार ने IMA अध्यक्ष डॉ. जेए जयलाल के समर्थन में आवाज उठाई थी। यानी, मीडिया जनता के मददगारों को बचा रहा है और उन्हें बरगलाने वालों को सिर चढ़ा रहा है। ईसाई धर्मांतरण और इस्लामी कट्टरता से कोरोना के खिलाफ लड़ाई को हो रहे नुकसान पर बात ही नहीं की जा रही।

अनुपम कुमार सिंह: भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।