भारत की स्त्रियों का गरिमामयी और सशक्त इतिहास: पुरुषों के साथ मिलकर रची हैं सफलता की कहानियाँ, आवश्यकता है संपूरकता के विमर्श की

भारत की महिलाएँ सदैव सशक्त (फोटो साभार: unwomen.org.au)

एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है और एक बार फिर से वही बातें दोहराई जाएँगी कि भारत में स्त्रियों का शोषण होता रहा है और सदा से ही उन्हें प्रताड़ित किया जाता रहा है। मगर एक बार फिर से उनका वह समृद्ध इतिहास दबा दिया जाएगा, जिसे स्मरण करने की हमेशा आवश्यकता होती है। एक एजेंडा के अंतर्गत उनका पूरा का पूरा इतिहास कहीं कोठरी में दबा दिया जाता है और वह एजेंडा क्या है, उसे अभी तक समझा नहीं जा सका है।

वैदिक काल की ऋषिकाओं से लेकर वर्तमान में मंगलयान की वैज्ञानिकों तक महिलाओं का ऐसा इतिहास रहा है, जिस पर समूची सभ्यता को गर्व होना चाहिए। जब हम वैदिक काल में झाँकते हैं तो पाते हैं कि गार्गी, अपाला, घोषा ही नहीं बल्कि लोपामुद्रा, विवाह सूक्त रचने वाली सूर्या सावित्री जैसी ऋषिकाओं की गाथाएँ प्राप्त होती हैं। रामायण काल में भी सीता माता, कौशल्या, कैकई, तारा एवं मंदोदरी जैसी महिलाओं की कहानियाँ तो हैं ही, परन्तु सबसे अचंभित करने वाली कहानी ज्ञानी शबरी की है, जिसने भक्ति और ज्ञान को स्वयं में समाहित कर लिया है।

महाभारत काल में भी हमें कई स्त्रियों की अद्भुत कहानियाँ प्राप्त होती हैं, जो बार-बार यह बताती हैं कि महिलाओं के साथ भेदभाव की जो कहानियाँ हमें आज सुनाई जाती हैं, वह कहीं न कहीं झूठ हैं। रानी सत्यवती के राजा शांतनु के साथ विवाह के लिए तो एक पुरुष अर्थात देवव्रत ने सबसे बड़ा त्याग किया था और उसी त्याग के कारण उनका नाम भीष्म पड़ गया था। सावित्री की कहानी एक पुरुष अर्थात पिता द्वारा उस स्वतंत्रता की कहानी बताती है, जिसे अभी तक कल्पना करना ही करना असंभव है।

मद्र नरेश को जब तपस्या उपरान्त पुत्री की प्राप्ति हुई थी तो उन्होंने अपनी पुत्री का नाम सावित्री रखा था। सावित्री जब विवाह योग्य हुई तो उन्हें उनके पिता ने उनसे कहा कि वह उनके योग्य वर नहीं चुन सकते हैं, अत: सावित्री स्वयं ही अपने योग्य वर का चयन करें। सावित्री सत्यवान को चुनती हैं और जिनकी आयु मात्र एक वर्ष ही शेष होती है।

ऐसे में मद्र नरेश जब विवाह से इंकार करते हैं, तो सावित्री अपने पिता से सत्यवान से ही विवाह करने की बात करती हैं एवं मद्र नरेश अपनी पुत्री की इच्छा का मान रखते हैं। यह अद्भुत कथा, एक पिता के अपनी पुत्री के प्रति प्रेम की कथा बहुत अद्भुत है। और इसी कथा को तोड़-मरोड़ कर स्त्री शोषण की कहानी बता दिया गया, जबकि यह स्त्री की स्वतन्त्रता की अद्भुत कहानी है।

इसी प्रकार जैसे जैसे हम काल खंड में आगे बढ़ते जाते हैं, हमारे पास उन स्त्रियों की कहानियाँ पन्ने दर पन्ने इकट्ठी होती जाती हैं, जिन्होनें अपने जीवन के पुरुषों के साथ मिलकर सफलता की कहानियाँ रच दीं। यदि उनके जीवन के पुरुषों ने उनका साथ नहीं दिया होता तो क्या वह सफल हो पातीं? यह एक ऐसा प्रश्न है, जिसका उत्तर आज सभी को खोजना है कि आखिर स्त्री विमर्श को पुरुष विरोध क्यों बना दिया गया है?

आज जब हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं की बात करेंगे तो क्या यह बातें नहीं होनी चाहिए कि आखिर इन स्त्रियों की सफलता में पुरुषों का कितना योगदान रहा? यदि एक पुरुष ने गलत किया तो कितने और पुरुष थे, जो उस स्त्री के साथ आए? यदि रावण ने सीता माता का हरण किया तो उनकी रक्षा के लिए भी तो असंख्य पुरुषों ने अपना योगदान दिया?

यदि मीराबाई की भक्ति के चलते उन्हें उनके परिवार ने नकारा तो वहीं एक वृहद समाज ने उनका आदर किया था। यदि स्त्रियों ने जौहर किया था तो साका भी तो हजारों पुरुषों ने किया था? स्त्री और पुरुष के साझे संघर्ष एवं साझी सफलता को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पुरुष विरोधी बनाकर प्रस्तुत किया जाना कितना घातक है, वह आज समझ में आता है, जब समूचे पुरुष समाज को उन अपराधों का दोषी ठहरा दिया जाता है, जो दरअसल उसने उस सीमा तक नहीं किए थे, जितना बताया जाता है।

आज आवश्यकता इस बात की है कि एक संपूरक विमर्श बनाया जाए, एक पूरकता की बात की जाए न कि खंडित विमर्श सभी पुरुषों को कटघरे में खड़ा कर दे।

पुरुष आयोग की अध्यक्ष होने के नाते मैं उन तमाम स्त्रियों का आदर करती हूँ, जिन्होंने अपने जीवन में सफलताओं को अर्जित किया है, जिन्होनें श्रम किया है, जिन्होनें मूल्यों का संरक्षण किया है और समय-समय पर उस विमर्श को सामने लाती रहती हैं, जो पूरी तरह से भारतीय है, जो हमारा है, जो संपूरक है, जो परस्पर एक दूसरे को पूर्ण करने वाला है।

Barkha Trehan: Activist | Voice Of Men | President, Purush Aayog | TEDx Speaker | Hindu Entrepreneur | Director of Documentary #TheCURSEOfManhood http://youtu.be/tOBrjL1VI6A