प्रिय हिन्दुओ! कमलेश तिवारी की हत्या को ऐसे ही जाने मत दो, ये रहे दो विकल्प

कमलेश तिवारी की हत्या के बाद हिन्दुओं को संगठित होने की ज़रूरत है

कमलेश तिवारी की हत्या से क्या संकेत देने की कोशिश की गई है? साफ़ है, हत्यारे यह जताना चाहते थे कि भले ही पंचायत से लेकर केंद्र तक भाजपा सत्ता पर काबिज हो जाए, इस्लाम हमेशा प्रभावी रहेगा और हिन्दुओं पर हावी रहेगा। सोशल मीडिया पर समर्थकों ने भी अपनी पार्टी से सवाल पूछने शुरू कर दिए हैं कि आख़िर वो इस्लामिक कट्टरवाद से जूझने के लिए क्या क़दम उठा रही है? वो कट्टरपंथ, जो अपने मूल रूप में, ख़ूनी अंदाज़ में, हिन्दुओं के दरवाजों पर दस्तक दे रहा है। उससे बचाव के लिए क्या किया जाए?

यह सवाल नया नहीं है। इस वर्ष कई बार उठाया जा चुका है। दिल्ली के हौज़ काजी स्थित दुर्गा मंदिर में मुस्लिमों ने तबाही मचाई और प्रतिमाएँ विखंडित कर डाली, तब भी यह सवाल उठा। दशहरा और दुर्गा पूजा के दौरान श्रद्धालुओं के जुलूसों पर ‘मुस्लिम बहुल इलाक़ों’ से गुजरने के दौरान न जाने कितने हमले हुए, तब-तब ये सवाल उठा। देश के विभिन्न भागों, ख़ासकर पश्चिम बंगाल में हिन्दू कार्यकर्ताओं, नेताओं या हिन्दू संगठनों से जुड़े लोगों को मारा गया, तब भी लोगों ने ये सवाल उठाया। अब कमलेश तिवारी की हत्या हुई है तो अब इस सवाल का उठना एक बार फिर लाजिमी है क्योंकि न सिर्फ़ सामान्य मुस्लिम बल्कि कई ऐसी घटनाएँ सामने आई हैं कि ‘मुस्लिम बुद्धिजीवी’ भी कमलेश तिवारी की लाश पर ख़ुशी मनाने में लगे हुए हैं

भाजपा ने अभी तक आधिकारिक रूप से तो इसपर कुछ नहीं कहा है लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं व पदाधिकारियों ने ज़रूर अपना पक्ष रखने की कोशिश की है। आख़िर लोगों की क्या माँगें हैं? कुछ लोगों ने क़ानून-व्यवस्था के मुद्दे पर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाने की माँग की थी। इसपर पार्टी नेताओं ने असमर्थता जताई। कमलेश तिवारी मामले में त्वरित कार्रवाई और 24 घंटे के भीतर साज़िशकर्ताओं को धर-दबोचना भाजपा वाले अपने पक्ष में गिनाते हैं। यह गौर करने वाली बात है कि 2014 में मोदी के सत्ता संभालने के बाद से अब तक कुछ छिटपुट घटनाओं को छोड़ दें तो आतंकी किसी सार्वजनिक स्थल पर हमला करने में नाकाम रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आलोचक भी मानते हैं कि यूपीए काल के मुक़ाबले सुरक्षा व्यवस्था काफ़ी पुख्ता हुई है। अगर कहीं चूक हुई भी है तो उस पर हम बात भी करते हैं। ताज़ा उदाहरण देखिए। कमलेश तिवारी की हत्या हुई तो ये चर्चा का विषय बना की किस तरह उन्हें पूर्णरूपेण सुरक्षा मुहैया कराने में गलतियाँ हुईं। लेकिन, इसकी भी कोई गिनती नहीं है कि ऐसी कितनी ही घटनाओं को समय रहते टाला जा रहा है। सुरक्षा एजेंसियाँ ऐसी सभी घटनाओं को सार्वजनिक नहीं करतीं। याद कीजिए, महाराष्ट्र के मुंब्रेश्वर मंदिर के प्रसाद में जहर मिला कर बिना किसी बम ब्लास्ट के ही कितने ही हिन्दुओं को मारे जाने की साज़िश रची जा रही थी, जिसे समय रहते विफल कर दिया गया था। सुरक्षा एजेंसियों ने लगातार जिहादियों के ऐसे न जाने कितने ही मंसूबों और प्रयासों पर पानी फेर दिया।

ऐसी किसी घटना के बाद लोगों का गुस्सा होना और अपनी भावनाओं को जाहिर करना लाजिमी है, वाजिब है। आम जनता सारे तकनिकी पहलुओं का विश्लेषण करने के बाद टिप्पणी नहीं करती। जनता जो देखती-सुनती है, उसपर प्रतिक्रिया व्यक्त करती है। जैसा कि ऊपर हमने चर्चाएँ की, आप आम जनता से यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वो एक-एक ट्वीट या फेसबुक पोस्ट करने से पहले उतना सोच-विचार करे। आप मेरी ही ट्विटर टाइमलाइन देख लीजिए। मेरा गुस्सा आपको प्रत्यक्ष दिखेगा, मेरी भावनाएँ आपको ज़रूर महसूस होंगी और आपको पता चलेगा कि कमलेश तिवारी की हत्या के बाद मेरी प्रतिक्रिया वही थी, जो हर हिन्दू की है। गुस्सा तो इतना था कि मैंने कुछ ट्वीट्स लिख कर डिलीट भी कर दिया था।

जैसे-जैसे किसी घटना के बाद समय बीतता है, लोगों का गुस्सा ठंडा होता चला जाता है और उस घटना को लेकर चर्चाएँ कम होती जाती हैं। मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि समय बीतने के साथ सबकुछ ठीक हो जाएगा। हालाँकि, ऐसी सम्भावना है। लेकिन इससे क्या हो जाएगा? क्या कुछ दिनों के लिए ‘सब ठीक-ठाक है’ वाला माहौल आ भी जाए तो इससे सबकुछ तो ठीक नहीं हो जाएगा। यह अस्थायी होगा। लिबरल और वामपंथी फिर से ‘डरा हुआ मुसलमान’ वाले नैरेटिव पर लौट आएँगे। जैसा कि ट्रेंड चलता आया है, फिर कोई जिहादी ‘गजवा-ए-हिन्द‘ के लक्ष्य को मन में बिठाए कमलेश तिवारी जैसी वारदात को अंजाम देकर लिबरलों और वामपंथियों के बने-बनाए नैरेटिव को धराशायी कर देगा।

न सिर्फ़ भारतीय जनता पार्टी बल्कि आज अपना गुस्सा व्यक्त कर रहे हिन्दुओं को भी इसका समाधान निकालने की ज़रूरत है। भाजपा को क्या करना चाहिए? चूँकि काफ़ी सारे ऐसे लोग हैं जो पार्टी को पहले से ही बता रहे हैं कि उसे क्या कदम उठाने चाहिए और क्या करना चाहिए, मैं उसपर चर्चा नहीं करूँगा। हाँ, लेकिन मैं भाजपा को एक सलाह ज़रूर दूँगा। आज जो गुस्सा हिन्दुओं का दिख रहा है, भले ही यह सोशल मीडिया तक ही सीमित नज़र आ रहा हो, लेकिन इसे भाजपा गंभीरता से ले। भले ही कुछ दिनों में सबकुछ सामान्य होने के साथ भाजपा राहत की साँस लेने लगे लेकिन आगे जाकर यह पार्टी को नुकसान पहुँचा सकता है।

मैं गुस्साए हिन्दुओं से भी कुछ बातें कहना चाहूँगा। कुछ सलाह देना चाहूँगा। मैं ये जानता हूँ कि मैं एक ऐसे समूह को सलाह दे रहा हूँ जो असंगठित है और इसके एकता की कोई रूप-रेखा नहीं है। यह अजीब है न, क्योंकि मैं एक ऐसे समूह को सलाह दे रहा हूँ, जिसके पास किसी निर्णय को लागू करने और उसका क्रियान्वयन करने के लिए कोई संरचना या ढाँचा नहीं है, सिवाय भाजपा को सलाह देने के। हालाँकि, इसका एक दूसरा पक्ष भी है। एक विशाल संगठन ब्यूरोक्रेसी की जड़ता से जूझता रहता है, वहीं इसके मुक़ाबले किसी स्टार्ट-अप के पास नए फ़ैसले लेने और उसका क्रियान्वयन के लिए ज्यादा स्वतंत्रता होती है।

मेरे पास हिन्दुओं के लिए दो सलाह हैं। पहले कंस्ट्रक्टिव है, जिसे अमल में लाना तुलनात्मक रूप से आसान हो सकता हैं। वहीं मेरी दूसरी सलाह कुछ लोगों को उग्र प्रतीत हो सकता है और वो इसे विनाशकारी भी घोषित कर सकते हैं।

इस्लामिक कट्टरवादी विचारधारा के ख़ात्मे के लिए ‘कमलेश तिवारी एक्ट’

भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान पैगम्बर मुहम्मद पर विवादित टिप्पणी के आरोप में एक व्यक्ति की हत्या की गई और इसके बाद अंग्रेजों ने ईशनिंदा क़ानून की रूपरेखा तैयार की। जैसा कि अपेक्षित है, जिस आदमी ने इस हत्या को अंजाम दिया, उसे पाकिस्तान में महिमामंडित किया जाता है। आखिर ऐसा हो भी क्यों न? जिन्ना और अल्लामा इक़बाल जैसी हस्तियों ने भी तो उस हत्यारे की प्रशंसा की थी

कमलेश तिवारी की हत्या यह बताती है कि दशकों पहले जिस विचारधारा ने पाकिस्तान को जन्म दिया, वह भारत में अभी भी जीवित है और फल-फूल रही है। मैं ऐसा इसीलिए कह रहा हूँ क्योंकि सामान्य मुस्लिमों से लेकर ‘बुद्धिजीवी’ मुस्लिमों तक, इस वर्ग के कई लोग इस हत्या का जश्न मनाते हुए देखे गए हैं और ऐसा वे छिप कर नहीं कर रहे। इसीलिए, वो विचारधारा आज भी जीवित है, पोषित हो रही है।

काफ़ी लोगों का मानना है कि अगर ऐसी ही एक हत्या के कारण ब्रिटिश इंडिया में ईशनिंदा क़ानून लाया गया था, अब उसी प्रकार की घटना हुई है तो उस क़ानून को कचड़े के डब्बे में फेंके जाने का समय भी आ गया है। मुझे लगता है कि ऐसी माँग करना थोड़ा सा भटकने के बराबर है। मुद्दा ईशनिंदा नहीं है, मुद्दा वो विचारधारा है- जो पाकिस्तान को जन्म देती है। पाकिस्तान को जन्म देने वाली वो इस्लामिक विचारधारा, वो कट्टरपंथी भावना- जिसे तथाकथित बुद्धिजीवियों का समर्थन और पोषण प्राप्त होता है।

तो फिर कमलेश तिवारी को असली श्रद्धांजलि क्या होगी? एक ऐसे क़ानून को लाया जाए, जो उस विचारधारा को सिरे से ख़त्म कर दे, जिसनें पाकिस्तान को जन्म दिया। एक ऐसा क़ानून, जो इस्लामी विचारधारा और गतिविधियों से जूझे, उनके ख़िलाफ़ काम करे।

हमें याद होने चाहिए कैसे कॉन्ग्रेस और वामपंथियों के बनाए वातावरण में कथित एंटी-लिंचिंग क़ानून (राजस्थान में) बनाया गया और कम्युनल वायलेंस बिल लाया गया। अब समय आ गया है कि जब वामपंथ विरोधी ताक़तें इस्लामिक विचारधारा विरोधी क़ानून लेकर आएँ। इस क़ानून के पक्ष में जितनी भी दलीलें दी जाएँ, कम ही होंगी। यह क़ानून ज़रूरी है भारत की भौगोलिक अखंडता बनाए रखने के लिए। यह क़ानून आवश्यक है भारत को एक और बँटवारे से बचाने के लिए।

जो लोग पब्लिक पॉलिसी और क़ानून बनाने के दाँव-पेंच को समझते हैं, ऐसे लोगों को लाकर इस क़ानून को ड्राफ्ट किया जाना चाहिए। हमने देखा था कि किस तरह कमलेश तिवारी पर पैगम्बर मुहम्मद पर टिप्पणी करने का आरोप लगा तो लाखों मुस्लिमों ने सड़क पर निकल कर उन्हें मृत्यदंड देने की बात की, खुलेआम धमकी दी। उनका क्या बिगड़ जाता? अगर किसी ने आगे आकर एक एफआईआर दायर भी कर दी तो उनपर ज्यादा से ज्यादा धारा 506 (धमकी देना) लगाया जाता। वो लाखों की संख्या में सड़कों पर निकले क्योंकि इस्लामिक विचारधारा के ख़िलाफ़ आज ऐसा कोई क़ानून नहीं है। उन्होंने लाखों की संख्या में निकल कर कमलेश तिवारी को फाँसी देने की माँग की, क्योंकि शासन-सत्ता ने उन्हें रोकने की चेष्टा नहीं की। या वे डर गए?

क़ानून तो ऐसा होना चाहिए कि अगर कोई भी मुस्लिम भीड़ की शक्ल में या अकेले सड़क पर निकल कर इस तरह की हरकतें करे या फिर जबरन शरीयत थोपने की कोशिश करे तो पुलिस को यह अधिकार होना चाहिए कि वह उसके ख़िलाफ़ त्वरित कार्रवाई करे और ऐसे लोगों को कठोर से कठोर सज़ा दी जाए। ऐसा तब होगा, तब सज़ा का प्रावधान किया जाएगा। भारत के हर हिस्से में ऐसा होना चाहिए।

ये तो बस सिक्के का एक पहलु है। जहाँ तक पैटर्न देख कर साफ़ झलकता है, मुस्लिमों का लक्ष्य सिर्फ़ पूरे भारत में शरीयत क़ानून चलाना ही नहीं बल्कि उनके कुछ और भी बड़े खतरनाक इरादे हैं। उन इरादों की पहचान होनी चाहिए, उन्हें नए क़ानून में शामिल करते हुए उसके लिए कठोर सज़ा का प्रावधान भी होना चाहिए। उदाहरण के तौर पर कई बार ईशनिंदा को लेकर ग़लत आरोप लगाए जाते हैं। ऐसा करने वालों को कड़ी सज़ा मिलती है क्या? एक और खतरनाक चलन है मजहबी नियम-क़ायदों का जिक्र करते हुए स्थानीय क़ानून को धता बताने वाला। उन्माद को बढ़ावा देने सहित ऐसी कई चीजें है, जिनकी पहचान होनी चाहिए। उनपर चर्चा होना चाहिए, उनके ख़ात्मे पर विचार होना चाहिए और उनके लिए कड़ी सज़ा का प्रावधान होना चाहिए।

इससे पहले कि एक दूसरा पाकिस्तान पैदा हो जाए या फिर हम लंदनिस्तान बन जाएँ, ऐसे क़ानून की हमें सख़्त ज़रूरत है। अगर सरकार ने ऐसा कर दिया या फिर लोगों ने इसके लिए पहल की, तो हिन्दुओं का गुस्सा थम सकता है। मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि ये विकल्प आसान है क्योंकि इसके लिए आंदोलन करना पड़ेगा, माहौल बनाना पड़ेगा और सरकार को बताना पड़ेगा। लेकिन, आप जैसे ही मेरे दूसरे सुझाव को पढ़ेंगे- आपको ये आसान लगने लगेगा।

एक होइए, संगठित होइए, दबाव बनाइए और अपनी एकता प्रदर्शित कीजिए

इससे पहले कि मैं अपने दूसरे सुझाव पर आऊँ, आपको मैं अपने एक लेख की याद दिलाना चाहूँगा। उस लेख को मैंने तब लिखा था, जब 2019 लोकसभा चुनाव के बाद नरेंद्र मोदी दोबारा चुन कर सत्ता में आए थे और उन्हें 2014 से भी बड़ा बहुमत मिला था। उसमें मैंने यह बताने की कोशिश की थी कि राइट विंग को भी नरेंद्र मोदी को ठीक से समझने की ज़रूरत है। आपको बता दूँ कि मेरा दूसरा विचार क्रियान्वयन के तौर पर कठिन है और इसे कुछ लोग तबाही वाला भी बता सकते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनकी चुप्पी के लिए निशाना बनाया जा रहा है। उन्हें निशाना बनाने वाले वही लोग हैं, जिन्हें ‘भक्त’ कहा जाता है। और हाँ, उन्हें ‘भक्त’ उन्हीं लोगों ने नाम दिया है, जो दशकों से एक परिवार विशेष की गुलामी करते आ रहे हैं। लोग सोशल मीडिया पर पूछ रहे हैं कि आखिर ‘मोदी पर कमलेश तिवारी की हत्या से कोई फ़र्क़ क्यों नहीं पड़ रहा?’ इसी बीच पीएम मोदी के एक कार्यक्रम की तस्वीरें आईं, जिसमें वह आमिर ख़ान और शाहरुख़ ख़ान जैसे सितारों के साथ दिख रहे हैं। लोगों का गुस्सा और बढ़ गया।

ध्यान रखिए, मैं मोदी की तरफ़ से आपलोगों को जवाब नहीं दे रहा हूँ। इस परिस्थिति में ऐसा करना ग़ैरज़रूरी होगा। हालाँकि, मैं भले ही उस आदमी पर लगातार हो रहे जुबानी हमलों से सहमत न रहूँ जिसने पिछले एक दशक से हिन्दू पुनरुत्थान को एक नई ऊर्जा और दिशा दी है, मैं लोगों के गुस्से को समझता हूँ और उनकी संवेदनाओं की कद्र करता हूँ।

मैंने अपने लेख में सुझाव दिया था कि आपको एक ऐसी संगठित ताक़त बननी पड़ेगी कि पीएम मोदी को आपको सुनने के लिए मजबूर होना पड़े। आपको एक ऐसे समूह की शक्ल लेनी होगी, जो एक हो और एक सुर में आवाज़ उठाए।

अब मेरे दूसरे सुझाव का वक़्त आ गया है। ये मेरे पिछले सुझावों से कई क़दम आगे निकल जाता है। एक तरह से देखा जाए तो यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीधी लड़ाई है। वो लड़ाई, जिसके ख़िलाफ़ मैंने ख़ुद सलाह दी थी। लेकिन हाँ, ये मोदी से कोई युद्ध नहीं है बल्कि अपनेआप को साबित करने की लड़ाई है। ये बात बहुतों को चुभ सकती है लेकिन कुछ लोगों का तो ये भी मानना है कि कमलेश तिवारी की हत्या जैसे मुद्दे सिर्फ़ सोशल मीडिया पर शोर फैलाते हैं। जवाब में कुछ लोग ये भी कहते हैं कि सोशल मीडिया पर शोर फैलाने वाले ऐसे मुद्दे वास्तविकता में गौण रहते हैं।

हालाँकि, मुझे नहीं लगता कि ऐसा है क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के बयानों से साफ़ है कि वास्तविक धरातल पर भी इस मुद्दे ने जगह बनाई है- यूपी में भी और राज्य से बाहर भी। भाजपा से जुड़े कई लोगों ने कमलेश तिवारी के परिजनों की मदद के लिए अभियान चला रखा है। उनके परिवार के लिए फण्ड जुटाने और उन्हें न्याय दिलाने सहित कई सारे अभियान चल रहे हैं।

लेकिन फिर भी काफ़ी सारे लोग ऐसे हैं जो मानते हैं कि सचमुच वास्तविकता में भाजपा नेताओं ने कमलेश तिवारी की हत्या के बाद कुछ नहीं किया। भाजपा और सरकार का इस तरफ़ ध्यान दिलाने, उन्हें इस मुद्दे की गंभीरता से अवगत कराने का एकमात्र माध्यम है उन्हें इस बात का एहसास दिलाना कि ऐसे मुद्दों का वास्तविकता में, ज़मीनी स्तर पर भी बहुत असर होता है। स्थानीय स्तर पर क्या हम हर एक क्षेत्र में किसी एक ऐसे व्यक्ति को चुन सकते हैं जो हमारा प्रतिनिधित्व करे और इन मुद्दों पर भाजपा के सामने सीना ठोक कर खड़े होकर उन्हें हमारी संगठनात्मक ताक़त से अवगत कराए?

दिल्ली में चुनाव आने वाले हैं। चाँदनी चौक विधानसभा क्षेत्र, जहाँ हौज़ काजी में मंदिर में तोड़फोड़ मचाई गई और प्रतिमाएँ विखंडित की गईं- वहाँ हम एक ऐसा उम्मीदवार उतार सकते हैं जो इन मुद्दों पर हमारा प्रतिनिधित्व करे? इससे हम ख़ुद को साबित कर पाएँगे। इसके बाद या तो भाजपा हमारी बात सुनने को मजबूर हो जाएगी या फिर हम उस दिशा में चल निकलेंगे, जहाँ हमें और भी काफ़ी कुछ करने की ज़रूरत है।

आप मेरे इस सुझाव को किसी व्यक्तिगत चुनौती की तरह मत लीजिए क्योंकि मैं भी आपकी तरह, एक आम हिन्दू की तरह आक्रोशित हूँ। लेकिन हाँ, मैं चाहता हूँ कि इस गुस्से का कुछ सकारात्मक नतीजा निकले जिससे हम हिन्दुओं को फायदा हो। मैं समाधान की दिशा में प्रयास करना चाहता हूँ, समस्या की जड़ तक पहुँच कर उसे खोदने के तरीकों पर विचार-विमर्श करता हूँ। मेरे इन प्रयासों का ही नतीजा है कि आप ऑपइंडिया से रूबरू हैं। ये भी मेरी उन्हीं कोशिशों का एक हिस्सा है।

Rahul Roushan: A well known expert on nothing. Opinions totally personal. RTs, sometimes even my own tweets, not endorsement. #Sarcasm. As unbiased as any popular journalist.