कोई उँगली के इशारों से सामान उठा कर रख देता था, तो किसी के चमत्कारों को ओशो ने भी स्वीकारा: आस्था के रहस्यों को कभी नहीं उजागर कर सकता विज्ञान

पश्चिम और उसके मानसपुत्रों का हमेशा से प्रयास रहा है सनातन की हर परंपरा को आडंबर साबित करना (फाइल फोटो)

सोचने वाली बात है कि बागेश्वर धाम का इतना मुखर विरोध क्यों हो रहा है? भारत आस्था पर आधारित देश रहा है हमेशा से, और यहाँ ऐसे चमत्कार भी अक्सर घटित होते रहे हैं। जब वैज्ञानिक व्यवस्थाओं ने अपना दम तोड़ दिया, तब आस्था से कई ऐसे असंभव कार्य भी घटित हुए हैं जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। कई दिनों से निरंतर बागेश्वर धाम के महंत पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी के विरोध में मुखर होते स्वरों को आप सब महसूस कर रहे होंगे।

मैं न तो उनसे कभी मिला हूँ और न ही उनसे मिलने की कोई आकांक्षा है। लेकिन, उनके बोलने का बेबाक और निश्छल अंदाज भाता जरूर है। उनके बोलने में कोई बल तो महसूस होता है, अन्यथा इतने विश्वास के साथ कोई बात नहीं बोली जा सकती है। जहाँ तक चमत्कार की बात है तो नास्त्रेदमस के बारे में कहा जाता है कि उसे भविष्य की घटनाएँ दिखाई देती थीं, जिसके आधार पर उसने कई भविष्यवाणियाँ कीं। आज भी उसकी भविष्यवाणियों की चर्चाएँ होती रहती है।

इटली के मीराबेली जो बाद में भविष्यवक्ता बने, एक जूते की दुकान में काम करते थे और किसी ग्राहक को जो भी जूता दिखाना होता था उसे अपने उँगली के इशारे मात्र से उठाते और यथा स्थान पहुँचा देते थे। यह चमत्कार नहीं था तो क्या था? देवराहा बाबा और मेहर बाबा के चमत्कार किसी से छिपे नहीं हैं। मेहर बाबा के चमत्कारों की चर्चा ओशो जैसे तार्किक व्यक्ति ने की है और स्वीकारा भी है। वैदिक साहित्य में अष्ट सिद्धियों का जिक्र आता है और इन सिद्धियों से यह सब संभव है।

मंत्र बल और साधना से इन सिद्धियों को पाया जा सकता है। पश्चिम और उसके मानसपुत्रों का हमेशा से प्रयास रहा है सनातन की हर परंपरा को आडंबर साबित करना। जो भूत-प्रेत को अंधविश्वास बताते नहीं थकते थे, लेकिन आज उनके यहाँ प्रयोगशालाएँ बनी हुई है भूत-प्रेतों पर रिसर्च हेतु। पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी आडंबरी हैं और अंधविश्वास फैला रहे हैं या नहीं, यह शोध का विषय है और आगे भविष्य में कभी न कभी सामने आ जाएगा।

मैं इनका विरोध करने वालों से सिर्फ यह कहना चाहता हूँ कि यह सिद्ध पुरुष हों या न हों आतंकवादी नहीं हैं। हैरत इस बात पर है कि जो आतंकियों के विरोध से हमेशा कतराते हैं, लेकिन बागेश्वर धाम के महंत का इतना मुखर विरोध कर रहे हैं जैसे इनकी भैंसें छोर ली हों उन्होंने। और हाँ, आस्था के विषय को विज्ञान की कसौटी पर नहीं तोला जा सकता क्योंकि विज्ञान इतना विकसित कभी नहीं हो सकता जो पूरी तरह से इस रहस्य को उजागर सके।

इसीलिए, जिनको सियासत देखना है हर विषय में उनसे अनुरोध कि और भी विषय हैं उन पर हिम्मत करिए कभी, सिर्फ़ सनातन को टार्गेट करने से परहेज़ करिए।

(इस लेख को पं. राजू शर्मा नौंटा (Surendra Pandit) ने लिखा है)