कमलेश तिवारी की हत्या, ‘The Godfather’ का हॉस्पिटल वाला वो दृश्य और यूपी पुलिस का बदला हुआ रूप

ऐतिहासिक फिल्म का वो दृश्य, जिसमें एक शरीफ आदमी डॉन बनने की ठान लेता है

“द गॉडफादर” नाम के विख्यात उपन्यास (जिस पर उतनी ही विख्यात फिल्म भी बनी) की कहानी एक माफिया परिवार को उखाड़ने की साजिशों के इर्द-गिर्द बुनी गई है। इसका मुख्य किरदार “डॉन कोर्लेओने” उसूलों का जरा पक्का किस्म का इंसान होता है, तो अपने हिसाब से अपने दोस्तों की मदद कर रहा होता है। शायद इसी कारण वो भयावह अपराधी कम और सम्मान योग्य कोई शक्तिशाली आदमी लगता है। एक किसी तस्कर के उसके इलाके में नशीली दवाओं का धंधा करने का इरादा था, जो डॉन को पसंद नहीं था।

डॉन भले नशे के धंधे को जो भी माने, तस्कर के लिए ‘कोई भी धंधा छोटा नहीं होता’ और ‘धंधा से बड़ा कोई मजहब भी नहीं होता’। लिहाजा तस्कर डॉन का क़त्ल करवाने की कोशिश करता है। डॉन जख्मी होता है मगर बच जाता है। उसे देखने अस्पताल में उसका बेटा माइकल पहुँचता है तो देखता है कि जिस पर अभी-अभी गोलियाँ चली हैं, उसकी सुरक्षा से पुलिसकर्मी गायब हैं! किस्मत से वहां डॉन की सेहत पूछने एक गरीब बेकरी वाला युवक आया होता है। जब तक डॉन के लोग वहाँ पहुँचते, माइकल उसे ही अपने साथ खड़ा हो जाने कहता है।

डॉन की हत्या के लिए अस्पताल पहुँचे लोग जब दो नौजवानों को बाहर ही खड़ा देखते हैं तो उन्हें लगता है कि डॉन के सुरक्षाकर्मी वहाँ मौजूद हैं और वो घबराकर भाग जाते हैं। थोड़ी ही देर में जिले का पुलिस प्रमुख वहाँ पहुँचता है। उससे बातचीत में जब माइकल सुरक्षाकर्मियों के बारे में पूछता है तो पुलिस प्रमुख माइकल को भी वहाँ से भगाने की कोशिश करता है। इतने तक में साफ़ समझ आने लगता है कि पुलिस प्रमुख ने भी तस्कर से डॉन को मारने में मदद के लिए कोई मोटी रकम ली है। एक दो सीधे सवालों में ही पुलिस प्रमुख चिढ़ जाता है।

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जब माइकल सीधा ही पूछ लेता है कि डॉन को मारने देने के लिए उसने कितने पैसे लिए हैं तो कुछ पुलिसकर्मियों को माइकल को पकड़ने कहकर पुलिस प्रमुख माइकल का जबड़ा तोड़ देता है। ये घटना उपन्यास की दिशा बदल देती है। घूँसा खाने वाला माइकल उस वक्त तक शरीफ सा आदमी था। साजिशों में इतने बड़े पुलिस प्रमुख को शामिल देखने के बाद माइकल अगला डॉन बनने की तरफ मुड़ जाता है। कई बार अपराधों पर आधारित उपन्यास (फ़िल्में भी) ऐसे ही पुलिस को कुछ अपराधियों को प्रश्रय देती दिखाती हैं।

कमलेश तिवारी की हत्या वाले दिन पुलिस का बयान

बाकी ऐसा सचमुच होता होगा या नहीं, इस पर अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय हो सकती है। जो पुलिस व्यवस्था पिछली सरकार में कुछ ख़ास नहीं कर रही थी, वही यूपी पुलिस इस सरकार में बदले रूप में कैसे दिखती है, इस पर भी अलग अलग वजहें गिनाई जा सकती हैं। हाँ, बदला निजाम सबको पसंद आ रहा या नहीं, कुछ लोग भीतर ही भीतर इससे नाराज तो नहीं होंगे, इसके बारे में भी सोचा जा सकता है। सोचिएगा, फ़िलहाल सोचने पर जीएसटी तो नहीं लगता!

कमलेश तिवारी की हत्या के अगले दिन पुलिस का बयान
Anand Kumar: Tread cautiously, here sentiments may get hurt!