बॉलीवुड की ‘गंदगी’ घर-घर तक पहुँचाकर आखिर ‘भोजपुरी इंडस्ट्री’ को नंगा नाच करने वाला क्यों कहा जा रहा है?

बॉलीवुड बनाम भोजपुरी

‘कला के नाम पर भोजपुरी फिल्मों में नंगा नाच होता है’- यह कहना एक ऐसे शख्स का है जो खुद ऐसी इंडस्ट्री से ताल्लुक रखता है जहाँ सॉन्ग्स और आयटम सॉन्ग्स के नाम पर लड़कियों के अंगों का व्यापारिकरण दशकों से चला आ रहा है। आपने सही सोचा- ये इंडस्ट्री बॉलीवुड की है और भोजपुरी फिल्मों पर हाय-तौबा मचाने वाले शख्स का नाम अनुभव सिन्हा है, जो पेशे से एक निर्देशक है।

अनुभव सिन्हा के इस बयान का जवाब भोजपुरी अभिनेत्री अक्षरा सिंह ने एक वीडियो जारी करके दिया है। अक्षरा ने अपनी वीडियो में समझाया है कि कैसे छोटे शहर से आने वाले भोजपुरी अभिनेता अपने दमखम से बॉलीवुड में जगह बनाते हैं और फिर राजनीति जैसे क्षेत्रों में भी अपना लोहा मनवाते हैं। वहीं बॉलीवुड ऐसी जगह है जिसकी सच्चाई दुनिया देख रही है, जहाँ हत्याकांड, सुसाइड और ड्रग जैसे मैटर होते रहते हैं।

अब इस पूरे विवाद में कई लोग अपने अपने मत रख रहे हैं। कुछ लोग अनुभव सिन्हा के पक्ष में है और कुछ उनकी आलोचना कर रहे हैं। मगर इस बीच यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि यह केवल किसी ‘एक शख्स’ की भोजपुरी इंडस्ट्री के बारे में सोच नहीं है। यह सोच एक बॉलीवुड निर्देशक की है जिसका काम बड़े पर्दों पर दर्शकों को ऐसी कहानियाँ दिखाने का है, जिसे न केवल लोग मनोरंजन का हिस्सा मानते हैं, बल्कि अपने जीने के तौर-तरीके में भी उसी हिसाब से बदलाव करते हैं।

भारत में फैशन की परिभाषा बॉलीवुड तय करता है। लड़कियों के खुले विचार, उनकी अच्छी- बुरी छवि, सब कुछ बड़े पर्दे पर ही तय होती है। ‘शानदार’ फिल्म में शादी के मंडप पर एक महिला कैरेक्टर शादी का जोड़ा उतारना शुरू नहीं करती कि इधर दर्शकों में बैठे एक तबके के रौंगटे खड़े हो जाते हैं। वह इसी बोल्डनेस को लड़की की आवाज उठाना समझ लेते हैं। उन तमाम मासूमों को यह नहीं पता होता कि मोटी लड़की पर हँसना और समाज में उसे पतली लड़की से कमतर दिखाने का काम भी बॉलीवुड ने अपनी फिल्मों के जरिए ही किया है।

हाल में आई ‘वीरे दी वेडिंग’ फिल्म को याद करिए। चार सहेलियों की कहानी। इसमें स्वरा भास्कर जैसी तथाकथित प्रोग्रेसिव अभिनेत्री masturabation करते हुए एक सीन देती हैं और संदेश देने की कोशिश करती हैं कि एक लड़की की इच्छाएँ इन सबके भी इर्द-गिर्द घूमती है, मगर समाज उन्हें पर्दे में रखता है और गलत समझता है, जिसके कारण वह असहज महसूस करके इन्हें छिपाती हैं। इस फिल्म का एक और कैरेक्टर सोनम कपूर हैं जिन्हें फिल्म में यह भी नहीं पता कि उनके साथ सोने वाला लड़का कौन है, कितना पढ़ा-लिखा है… तो ये उदाहरण ये बताने के लिए है कि आखिर बॉलीवुड क्या है और वह दर्शकों को क्या परोस रहा है।

ऐसे में बॉलीवुड से जुड़े लोग जब भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री पर सवाल उठाते हैं तो इससे ज्यादा हास्यास्पद क्या बात होगी! लेकिन देखा जाए तो इनका ये रवैया भारतीयों (खासकर एलीट क्लास) के डबल स्टैंडर्ड ने ही तय किया है। भाषा के आधार पर भेदभाव तो यहाँ हमेशा से होता आ रहा है, लेकिन अन्य क्षेत्रों में यह लड़ाई अंग्रेजी भाषा और हिंदी के बीच होती है। जैसे जो गाली भारतीयों को अंग्रेजी में स्टेटस का सबब लगती है। वही गाली हिंदी में दी जाए तो इंसान आग बबूला हो जाता है।

यही हालत बॉलीवुड इंडस्ट्री की भोजपुरी भाषा के साथ है। मसलन ‘एक चुम्मा तू मुझको उधार दे दे’ इन लोगों के लिए एपिक सॉन्ग्स की लिस्ट में आता है। वहीं ‘एगो चुम्मा दे दो राजा जी’ बहुत अश्लील हो जाता है। एक जनाब अनुभव सिन्हा के ट्वीट पर लिखते हैं कि भोजपुरी में कोई गाना ऐसा नही है जो असभ्य न हो। अगर परिवार के साथ आप कही हों तो आप इन्हें सुन भी नहीं सकते, क्योंकि शर्म आने लगती है।

अब भाषा के आधार पर यदि बात शर्म आने की है तो ‘सरकाई लियो खटिया जाड़ा लगे’; ‘खड़ा है खड़ा है (पॉज के बाद)… दर पे तेरे आशिक खड़ा है’ ; ‘टिप टिप बरसा पानी, पानी में आग लगी’ ;’चोली के नीचे क्या है’ जैसे गाने उस समय के हैं जब भोजपुरी इंडस्ट्री लोगों तक पहुँचनी भी शुरू नहीं हुई थी, फिर भी विजुअल्स के साथ इन गानों के दो मतलब दर्शक तक पहुँचने लगे थे। 

भोजपुरी फिल्म ने बॉलीवुड को क्या दिया? ये कहना भले ही मुश्किल है, मगर विचार करने वाली बात यह है कि जिस बॉलीवुड से सीख कर भोजपुरी इंडस्ट्री ने खुद को स्थापित किया और आज भी उनकी तरह प्रसिद्ध होना चाहती है, उस पर बॉलीवुड ही अगर सवाल उठा रहा है तो सोचिए समाज में असल रूप से नंगा नाच कहाँ चल रहा है।

हिंदी एक भाषा है जिसे भारत में कई जगह बोला जाता है, लेकिन भोजपुरी कम जगहों पर बोली जाती और एक संस्कृति का समावेश है। समय के साथ-साथ इसके इर्द गिर्द घूमने वाली भाषाएँ भी आज इसका लुत्फ उठा रही है और ये सब सिर्फ भोजपुरी इंडस्ट्री के कारण हो पाया है। कम पैकेज में बनी फिल्म या एल्बम कैसे कमाल करती हैं, यह भोजपुरी इंडस्ट्री ने ही सिखाया है। वरना अगर बात बॉलीवुड की होती तो अदनान सामी के एवरग्रीन गाने ‘थोड़ी सी लिफ्ट करा दे’ में गोविंदा को अपना चेहरा नहीं दिखाना पड़ता।

भोजपुरी इंडस्ट्री हमें और आपको वही दिखा रही है जो बॉलीवुड सालों से दिखाता आया है। फर्क बस यह है कि वहाँ के कुछ एक्टर्स (जिनके गानों को अश्लील कहा जाता है) भाव दर्शाने में बॉलीवुड अभिनेताओं- अभिनेत्रियों की तरह खरे नहीं उतर पाते, जिससे पूरा गाना थोड़ा अजीब जरूर लगने लगता है मगर उसके कारण हम भोजपुरी भाषा को या उस इंडस्ट्री को दोष नहीं दे सकते।

हिंदी भाषा आज किताबों में पढ़ाई जाती है फिर भी हिंदी का प्रयोग डायलॉग और गानों में जैसे हो रहा है वह शर्मनाक है, लोग धड़ल्ले से उसे बोल रहे हैं और समाज स्वीकार भी कर रहा है। इसलिए, यह समझने की जरूरत है कि भोजपुरी भी बस एक भाषा है और सिर्फ भोजपुरी में गीत होने से ही वो अश्लील नहीं हो जाता। आज भोजपुरी के कारण भारत का लोक संगीत में विश्व ख्याति भी पा रहा है।

वैश्विक स्तर पर बॉलीवुड की तमाम कामयाबी और ऊँचाइयों के बावजूद, छोटी सी भोजपुरी इंडस्ट्री में तसल्ली की बात यह है कि यहाँ पर कलाकार आकर संघर्ष करता है तो उसे खराब एक्टिंग के बावजूद छोटा रोल तो मिल ही जाता है, जिसका बाद में हम और आप जैसे दर्शक खूब मजाक उड़ाते हैं। लेकिन वो छोटा रोल किसी का पहला रोजगार होता है जो बॉलीवुड में मिलना असंभव है।

बॉलीवुड में ग्लैमर के नाम पर जो गंदगी पिछले 15 सालों में दर्शकों को देखने को मिली है। उसका मुकाबला शायद ही भोजपुरी का कोई गाना कर पाए। साल 2005 में आई ‘आशिक बनाया आपने’ का टाइटल सॉन्ग विजुअल्स सहित देखिए कभी। तनुश्री दत्ता का टॉपलेस होने से लेकर पूरे गाने के खत्म होने तक का सीन आज एक कल्चर की तरह दिखने लगा है और गाने में यदि बात भाषा के चुनाव की है तो क्या बुद्धिजीवी लोगों से यह उम्मीद की जाए कि वह शीला की जवानी, जलेबी बाई, चिपका ले सैंया फेविकोल से, मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए, चिकनी चमेली, डैडी मम्मी हैं नहीं घर पे, शेक योर बूटी जैसे आयटम गानों पर अपनी आवाज बुलंद करें? या “आई एम अ हंटर एंड शी वॉन्ट टू सी माय गन” जैसे गानों का मतलब श्रोताओं को समझाएँ कि कैसे इन गानों के जरिए वह सभ्य चीजें बड़े पर्दे पर पेश कर रहे हैं?

विचार करिए कि यदि बात नैतिकता दिखाने की है तो भोजपुरी और बॉलीवुड में लड़ाई कैसी? ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। भारतीय समाज को यह दोनों कैसे प्रभावित करते हैं ये बात सिर्फ़ इनके दर्शकों पर निर्भर करती हैं। आज की भोजपुरी इंडस्ट्री पुरानी इंडस्ट्री जैसी नहीं रह गई जहाँ बगल फटी शर्ट के साथ मनोज तिवारी ‘ऊपर वाली के चक्कर में’ जैसे हिट गाने दे देंं या सीनरी लगाकर पूरा गाना शूट हो जाए। बात तकनीक की हो, फैशन की हो, एक्शन की हो, या रोमांस की भोजपुरी इंडस्ट्री हर मायने में बॉलीवुड को टक्कर देने में प्रयासरत है। शायद बॉलीवुड को भी इसी लिए इससे दिक्कत हो गई है।

आज की भोजपुरी फिल्मों में भले ही एक देसी टच होता जरूर है, पर फिर भी उसकी कोशिश बॉलीवुड पसंद करने वाले दर्शकों को भी अपनी तरफ आकर्षित करने की होती है। इसलिए केवल भाषा के जुड़ जाने से किसी उद्योग को अश्लील बताना संकीर्ण मानसिकता का प्रदर्शन है। बड़े-बड़े निर्देशक जब पाश्चत्य संस्कृति को बॉलीवुड में दिखाने की कोशिश करते हैं तो वो भारत की आम जनता को परिवार के साथ देखते हुए अभद्र ही लगता है। किंतु अकेले में वह मनोरंजन में तब्दील हो जाती है।

ऐसे में खुद सोचिए भोजपुरी की पहुँच उन लोगों तक है जो इस भाषा को पसंद करते है। वहीं बॉलीवुड के गाने तो ‘गंदगी’ हर जगह पहुँचा रहे हैं। आज छोटे-छोटे बच्चे भी उन्हें देखकर डांस करते हुए अजीब तरह के भाव चेहरे पर लाने लगते हैं फिर वो तो भोजपुरी इंडस्ट्री है जो बॉलीवुड जितना ही नाम कमाना चाहती है।