‘राम मंदिर की जगह बौद्ध विहार, सुप्रीम कोर्ट ने माना’ – शुभ कार्य में विघ्न डालने को वामपंथन ने शेयर की पुरानी खबर

मस्जिद की तरफ से बैटिंग करने वाले अब अयोध्या में बौद्ध विहार होने की बात रहे

कम्युनिस्ट पार्टी के नेता अब सठियाने लगे हैं। दरअसल, जब किसी की मति भ्रष्ट होने लगती है तो उसे बिहार में ‘सठिया जाना’ कहते हैं। सीपीआई की पोलित ब्यूरो की सदस्य सुभाषिनी अली ने एक पुराना लेख शेयर कर के अयोध्या राम मंदिर विवाद में ‘ट्विस्ट’ की बात की। उन्होंने दावा किया कि अयोध्या राम मंदिर की जगह बौद्ध विहार था। हिन्दुओं और बौद्धों को लड़ाने के लिए ये प्रपंच रचा गया, ये बात किसी से छिपी नहीं है।

72 वर्षीय सुभाषिनी अली ने भी यही किया। अयोध्या राम मंदिर मामले का निपटारा हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की पीठ ने राम मंदिर के पक्ष में फ़ैसला सुनाया था। बाबरी मस्जिद को वहाँ राम मंदिर को ध्वस्त कर के बनाया गया था, जिसके लिए हिन्दू 400 सालों से न्याय की माँग कर रहे थे। दूसरे पक्ष को 5 एकड़ ज़मीन कहीं और देने के लिए कहा गया। अब राम मंदिर निर्माण का कार्य भी शुरू हो चुका है, इसीलिए प्रोपगंडा भी चालू है।

आगे बढ़ने से पहले नास्तिक वामपंथन सुभाषिनी अली के बारे में जान लेते हैं। उनके माता-पिता प्रेम सहगल और लक्ष्मी सहगल सुभाष चन्द्र बोस की ‘इंडियन नेशनल आर्मी’ में कार्यरत थे। उनके तलाकशुदा पति मुजफ्फर अली जाने-माने फिल्मकार हैं, जिन्होंने ‘उमराव जान’ नामक चर्चित फिल्म का निर्देशन किया था। दोनों में तलाक हो चुका है और वो अलग रहते हैं। सुभाषिनी, बृंदा करात के अलावा पोलित ब्यूरो में अकेली महिला हैं।

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अब बात करते हैं अयोध्या राम मंदिर में बौद्ध विहार होने वाले विवाद की। दरअसल, हाल ही में जब मंदिर के निर्माण के लिए खुदाई चालू की गई, तब वहाँ पुरातात्विक अवशेष मिले, जो वहाँ हिन्दू मंदिर होने के दावों की पुष्टि करते हैं। खंडित मूर्तियों के अवशेष के साथ-साथ वहाँ शिवलिंग भी मिले। राम मंदिर मामले में दूसरे पक्ष के वकील रहे जफरयाब जिलाने ने इसे प्रोपेगेंडा बता दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि चुनावी फायदे के लिए ऐसा किया जा रहा है।

फिर दलितों को भटका कर उनका फायदा उठाने वाले भीमवादी सक्रिय हुए। दिल्ली के पूर्व सांसद उदित राज और कॉलेजों में सवर्णों का शोषण करने वाले दिलीप मंडल ने वहाँ बौद्ध मठ होने की बात कही। दोनों ने अपने गिरोह के साथ मिल कर प्रपंच फैलाया कि जिसे शिवलिंग कहा जा रहा है, वो एक बौद्ध स्तम्भ है। जबकि वहाँ जो चक्र मिला है, वो धम्म चक्र है। जो लोग पहले वहाँ मस्जिद होने की बातें कर रहे थे, अब वही बौद्ध विहार के लिए माहौल बनाने में जुट गए।

बौद्धों को याद दिलाया गया कि कैसे अशोक के पुत्र बृहद्रथ का उनके सेनापति पुष्यमित्र सुंग ने धोखे से वध कर दिया था। वामपंथी इतिहासकार कहते हैं कि इसके बाद बड़े स्तर पर बौद्ध विहारों और स्तूपों को ध्वस्त कर दिया गया था। कई तो इसे ब्राह्मणवादी अत्याचार तक कह कर दुष्प्रचारित करते हैं। इसीलिए, उन अवशेषों के अशोक काल के होने की बात कही गई। दलितों और बौद्धों को हिन्दू धर्म से अलग दिखाने के लिए ऐसा किया गया।

ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के महासचिव खालिक अहमद खान ने कहा है कि यह अवशेष बौद्ध धर्म से जुड़े हैं। वामपंथी भी यही राग अलाप रहे हैं। कल को अगर वहाँ से कोई दिगंबर प्रतिमा मिलती है तो वो ये भी कहने लगेंगे कि वहाँ मंदिर नहीं था बल्कि जैन विहार था। एक तरह से देखा जाए तो उन्हें सिर्फ़ ये कहना है कि वहाँ मंदिर नहीं था। वो ख़ुद निश्चित नहीं हैं कि अगर मंदिर नहीं था तो था क्या? जब जैसा कुचक्र चले, किसी संप्रदाय को भड़काने के लिए कुछ भी बोल दो, यही उनका लक्ष्य है।

ऐसा नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई नहीं हुई थी। सुभाषिनी अली ने जो ख़बर शेयर की है, वो 2018 की है, जब अयोध्या के ही विनीत कुमार मौर्य ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर वहाँ बौद्ध स्थल होने की बात कही थी। जिस तरह सुनवाई के बाद वहाँ मस्जिद वाला मामला रिजेक्ट हो गया, ठीक उसी तरह ये याचिका भी नकार दी गई।

इतिहास में बौद्ध काल के राज्यों द्वारा मंदिरों को ध्वस्त करने का विवरण नहीं मिलता। खुद सम्राट अशोक ने कई मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया था। भगवान बुद्ध ने जिस ‘अहिंसा परमो धर्मः’ का उपदेश दिया, वो श्री कृष्ण द्वारा ही कहा गया था। इस हिसाब से हिन्दू धर्म और बौद्ध, ये दोनों ही प्राचीन सनातन संस्कृति के छत्र तले आगे बढ़े हैं। ऐसे में दोनों को लड़ाने वाली साजिश अंग्रेजों की चाल का अनुसरण है, और कुछ नहीं।

किसे नहीं ज्ञात है कि अंग्रेजों ने भारतवर्ष में अपना राज कायम करने के लिए लालची राजाओं का सहारा लिया था। एक-दूसरे से सभी राज्यों को लड़ाया था। साथ ही लोगों को भड़का कर सांप्रदायिक विभेद पैदा किया, ताकि उनके ‘फूट डालो और राज करो’ की व्यवस्था में कोई कमी न रह जाए। आज के नव भीमवादियों और इस्लामी कट्टरपंथी बुद्धिजीवियों की चाल को देखें तो वो अंग्रेजों से ही प्रेरित लग रहे हैं, और कुछ नहीं।

सुभाषिनी अली तो ख़ुद को नास्तिक बताती हैं और कहती हैं कि किसी भी धर्म में उनका कोई इंटरेस्ट नहीं है क्योंकि उन्हें लगता है कि कुछ धर्मों में काफी कड़े नियम बना दिए गए हैं। अगर उनकी किसी भी धर्म में रूचि नहीं है तो फिर अचानक से बौद्ध धर्म से उनका प्रेम कैसे सामने आ गया? असल में यहाँ जितने भी नास्तिक वामपंथी हैं, ऐसा नहीं है कि वो सभी धर्मों में विश्वास नहीं रखते, बल्कि वो हिंदुत्व से घृणा करते हैं और इसे नीचा दिखाना चाहते हैं।

जिस चीज का फैसला सुप्रीम कोर्ट में हो चुका है, जहाँ कार्य शांतिपूर्वक चल रहा है- वहाँ खलल डालने के लिए अभी और भी प्रपंच रचे जाएँगे। कल को ये लोग ये भी बोल सकते हैं कि जीसस का जन्म वहीं पर हुआ था। सुभाषिनी अली जैसे नेताओं का आजकल कोई काम-धाम बचा नहीं है, क्योंकि वामपंथियों का जेएनयू और केरल छोड़ कर बाकी पूरे देश से सफाया हो चुका है, तो उन्हें टाइमपास के लिए कुछ तो भ्रम और फेक न्यूज़ फैलाना होगा।

अयोध्या में दर्शन के लिए तो गुरु नानक भी गए थे, ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने भी माना था। दस्तावेजों के अनुसार ऐसा साबित हुआ था। कल को हो सकता है कि जिस गुरु नानक का वहाँ दर्शन करने जाना राम मंदिर की मौजूदगी का सबूत बना, उन्हीं के अनुयायियों, सिखों को भड़काने के लिए यहाँ गुरुद्वारा होने की बात कह दी जाए। ऐसे ही कॉन्ग्रेस ने कर्नाटक में लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देकर हिन्दू धर्म को तोड़ने की कोशिश की थी।

अनुपम कुमार सिंह: भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।