महिलाओं को समानता, फिक्स्ड टर्म रोजगार, रिस्किलिंग फंड सहित मोदी सरकार द्वारा श्रम कानून में सुधार के बाद उठ रहे 5 सवालों के जवाब

नरेंद्र मोदी (फ़ाइल फोटो)

वर्तमान संसद सत्र में मोदी सरकार ने श्रम कानून सुधार के लिए तीन विधेयक राज्यसभा में पास कर दिए । इनके नाम- ‘व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य कोड (OSH Code), औद्योगिक संबंध कोड (Industrial Relations Code), सामाजिक सुरक्षा कोड (Code on Social Security) हैं।

केंद्र सरकार ने कहा है कि 100 से ज्यादा राज्य और 40 से ज्यादा केंद्र के कानून हैं जो श्रम के विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करते हैं जैसे औद्योगिक विवाद, कार्य करने की स्थिति, सामाजिक सुरक्षा और मजदूरी का संकल्प आदि। उन्होंने बताया कि श्रम पर बने दूसरे राष्ट्रीय आयोग (2002) ने मौजूदा कानूनों को पुराने प्रावधानओं और असंगत परिभाषा के साथ बहुत जटिल पाया, इसलिए इनमें सुधार लाने के लिए आयोग ने केंद्र से इस संबंध में सिफारिश की।

साल 2019 में श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने 29 कानून को खत्म करने के लिए 4 बिल बनाए। इनमें वेतन सुरक्षा संहिता साल 2019 में संसद से पास हो गई थी जबकि अन्य को स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजा गया। इसके बाद कमेटी ने तीनों विधेयकों पर अपनी रिपोर्ट जमा की और मोदी सरकार ने उन विधेयकों को नए बिल के साथ 19 सितंबर को रिप्लेस कर दिया और फिर उपरोक्त तीनों संहिताएँ भी पास हो गईं।

अब इन्हीं संहिताओं को लेकर तरह तरह के सवाल उठ रहे हैं। इसीलिए आज हम आपको इनसे जुड़े पाँच सवालों का जवाब देने जा रहे हैं।

औद्योगिक संबंध संहिता 2020: यह संहिता श्रम कानून के मुख्य तीन कानून को रिप्लेस करती है

  1. औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947।
  2. द ट्रेड यूनियंस एक्ट, 1926।
  3. औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946।

प्रश्न-1: 300 से ज्यादा श्रमिक रखने वाली यूनिटें बिना सरकार की अनुमति के श्रमिकों को नियुक्त और बर्खास्त कर सकती हैं, इसलिए हो सकता है इससे श्रमिकों की नियुक्ति और उनकी बर्खास्तगी में बढ़ोतरी हो?

आईआर संहिता में छटनी, क्लोजर या जबरन छटनी में थ्रेसहोल्ड को 100 श्रमिक से बढ़ाकर 300 श्रमिक करने की बात है। इस पर श्रम मंत्री ने खुद बताया है कि श्रम एक समवर्ती सूची का विषय है और संबंधित राज्य सरकारों को भी अपनी परिस्थितियों के अनुरूप श्रम कानूनों में परिवर्तन करने का अधिकार है।

इसी अधिकार का उपयोग करते हुए 16 राज्य, पहले ही अपने यहाँ यह सीमा बढ़ा चुके हैं। संसदीय स्थायी समिति ने भी यह सिफारिश की थी कि इस सीमा को बढ़ा कर 300 कर दिया जाए।

इसके अतिरिक्त इस प्रावधान का एक पक्ष यह भी होता है कि ज्यादातर संस्थान, 100 से अधिक श्रमिकों को अपने संस्थान में नहीं रखना चाहते हैं, जिससे अनौपचारिक रोजगार को बढ़ावा मिलता है।

श्रम मंत्री ने इस विषय में बताते हुए उल्लेख किया कि आर्थिक समीक्षा-2019 के अनुसार राजस्थान राज्य में इस सीमा को 100 से 300 करने के बाद, बड़ी फैक्ट्रियों की संख्या के साथ-साथ, श्रमिकों के रोजगार सृजन में भी बढ़ोत्तरी हुई है तथा छटनी के मामलों में अभूतपूर्व कमी आई है।

इसलिए इससे यह स्पष्ट होता है कि इस एक प्रावधान को बदलने से देश में बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों को स्थापित करने के लिए निवेशक प्रेरित होंगे और ज्यादा संख्या में बड़ी फैक्ट्रियों के स्थापित होने से, रोजगार के कहीं ज्यादा अवसर, हमारे देश के श्रमिकों के लिए उत्पन्न होंगे।

यहाँ यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि इसमें ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि 300 श्रमिकों तक संख्या बढ़ाने से श्रमिकों की नियुक्ति और उनका निलंबन में बढ़ोतरी होगी। हाँ, इसमें यह जरूर स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी भी श्रमिक की नौकरी छूट जाती है तो दोबारा उसके रोजगार की संभावना बढ़ाने के उद्देश्य से आईआर संहिता में पहली बार पुनः कौशल (रि स्किलिंग) फंड का प्रावधान किया गया है। इन श्रमिकों को इसके लिए 15 दिन का वेतन दिया जाएगा।

प्रश्न- 2: क्या ‘फिक्सड टर्म एंप्लॉयमेंट’ से नियुक्ति और बर्खास्तगी की शुरुआत नहीं होगी?

कई लोगों द्वारा, ‘फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट’ की शुरुआत को एक नए नियम के रूप में देखा जा रहा है, जिसे मोदी सरकार लेकर आई। हालाँकि, बता दें कि केंद्र सरकार और 14 अन्य राज्यों द्वारा फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट को पहले ही अधिसूचित किया जा चुका है। इन राज्यों में असम, बिहार, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, एमपी, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, यूपी, और उत्तराखंड शामिल हैं।

पहले एक नियोक्ता केवल पर्मानेंट एंप्लॉय या कॉन्ट्रैक्ट पर एंप्लॉय को रख सकता था। इससे कई बाध्यता उत्पन्न होती थीं। कई बार नियोक्ता को अकुशल श्रमिक को बिना किसी कमिटमेंट के भी रखना पड़ता था। इसके अलावा यह भी आरोप लगते थे कि ठेकेदार न्यूनतम वेतन, ईपीएफ, और ईएसआईसी जैसे लाभों के मामले में खुद तो पूरी राशि ले लेता मगर कॉन्ट्रैट वाले श्रमिकों को वही चीज पास नहीं करता।

हालाँकि, अब फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट की शुरुआत के साथ, नियोक्ता सीधे बिचौलिए के बिना कर्मचारी के साथ एक निश्चित अवधि का कॉन्ट्रैक्ट कर सकता है। एक फिक्सड टर्म कर्मचारी को नियमित कर्मचारी जैसे फायदे देने की बात भी इसमें है। इसलिए फिक्सड टर्म एंप्लॉयमेंट श्रमिकों या कर्मचारियों के हित में हुआ सुधार है, जिसे इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड ने प्रस्तावित किया है।

Fixed Term Employment को मान्यता से, अब श्रमिकों को ठेका मजदूरी के स्थान पर Fixed Term Employment का विकल्प मिलेगा। यानी अब उन्हें Regular Employee के समान काम के घंटे, वेतन वा सामाजिक सुरक्षा मिलेगी।

व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य कोड

इस संहिता ने 13 कानूनों को अपने में समेकित किया है जो स्वास्थ्य सुरक्षा और काम करने की स्थिति आदि को नियंत्रित करते थे। इनमें फैक्ट्रीज एक्ट 1948, द माइन्स एक्ट 1952 और कॉन्ट्रैक्ट लेबर एक्ट, 1970 मुख्य रूप से शामिल हैं।

प्रश्न-3: अंतर-राज्य प्रवासी कर्मचारी की परिभाषा अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979 अधिनियम और नए कोड में भिन्न है – क्या यह भ्रम पैदा करेगा?

अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979 को व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य कोड में रखा गया है। वहीं, पूर्ववर्ती अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों को OSH कोड में और मजबूत किया गया है। ऐसे ही अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक की परिभाषा सामाजिक सुरक्षा कोड और OSH कोड में समान है।

अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक की परिभाषा अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979 में बहुत ही सीमित थी। यह बताता था कि एक व्यक्ति जो एक राज्य में एक ठेकेदार के माध्यम से दूसरे राज्य में रोजगार के लिए भर्ती किया जाता है, एक ‘अंतर-राज्य’ प्रवासी कर्मचारी’ है।

वहीं, OSH कोड प्रवासी कार्यकर्ता की परिभाषा को उन श्रमिकों को शामिल करने के लिए विस्तारित करता है, जिन्हें कॉन्ट्रैक्टर के अलावा नियोक्ता द्वारा सीधे नियुक्त किया जाएगा। इसके अलावा, अब यह भी संभव हो गया है कि एक प्रवासी, जो किसी राज्य में अपने दम पर आता है, आधार की मदद से इलेक्ट्रॉनिक पोर्टल पर पंजीकरण करके खुद को एक प्रवासी श्रमिक घोषित कर सकता है। ये प्रक्रिया बेहद आसान है और इसके लिए आधार के सिवा कोई डॉक्यूमेंट की आवश्यकता नहीं होती।

इतना ही नहीं, इसमें असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का राष्ट्रीय डाटा बेस बनाया जाएगा, जहाँ पर सेल्फ रजिस्ट्रेशन करना होगा। इस संहिता में प्रवासी मजदूरों के लिए हेल्पलाइन का कानूनी प्रवाधान है। इन्हें राशन, भवन निर्माण कामगारों के लिए ईपीएफओ, ईएसआईसी, मातृत्व लाभ, ग्रेच्युटी तथा असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा फंड से संबंधित उपबंध शामिल हैं।

प्रश्न-4: महिलाओं के लिए रात की शिफ्ट रखना क्या उनकी सुरक्षा से समझौता नहीं है।

कार्यस्थलों पर लिंग समानता की माँग बहुत लंबे समय से उठ रही थी। OSH कोड यह सुनिश्चित करता है कि कार्यस्थलों और महिलाओं में लैंगिक समानता बनी रहे। श्रम एवं रोजगार मंत्री ने कहा है कि महिलाओं को पुरुषों के समान ही कार्य करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए तब ही हम नवीन भारत का निर्माण कर पाएँगे। इसलिए पहली बार हमने यह प्रावधान किया है कि महिलाएँ किसी भी प्रकार के संस्थान में अपनी स्वेच्छानुसार रात में भी काम कर सकेंगी। परन्तु, नियोक्ता को इसके लिए, उपयुक्त सरकार द्वारा निर्धारित, सभी आवश्यक सुरक्षा प्रबंध करने पड़ेंगे।

प्रश्न 5: क्या नई संहिताओं में कल्याणकारी प्रावधान कम किए गए हैं?

नई संहिता को लेकर कई लोग आरोप लगा रहे हैं कि इसमें कल्याणकारी प्रावधानों को कम कर दिया गया है। या इससे श्रमिकों के अधिकार और कल्याण प्रभावित होंगे। हालाँकि यह सभी आरोप सच्चाई से बहुत दूर हैं क्योंकि इन सुधार विधेयकों के जरिए नए कर्मचारियों के कल्याण का ही काम हुआ है

संहिताओं में कल्याणकारी प्रावधान

  • ESIC का विस्तार किया जाएगा।
  • देश के 740 जिलों में ESIC की सुविधा होगी, अभी ये सुविधा फिलहाल 566 जिलों में ही है।
  • खतरनाक क्षेत्र में काम कर रहे संस्थानों को अनिवार्य रूप से ESIC से जोड़ा जाएगा, चाहे 1 ही श्रमिक काम क्यों ना करता हो।
  • पहली बार 40 करोड़ असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों को ESIC से जोड़ा जाएगा।
  • बागान श्रमिक भी ESI के दायरे में आएँगे।
  • दस से कम श्रमिक वाले संस्थानों को भी स्वेच्छा से ESI का सदस्य बनने का विकल्प होगा।
  • बीस से अधिक श्रमिकों वाले संस्थान EPFO की कवरेज में आएँगे।
  • असंगठित क्षेत्र के स्वरोजगार से जुड़े श्रमिकों को भी EPFO में लाने की योजना बनाई जाएगी।
  • जिस भी कंपनी में 20 से अधिक श्रमिक काम कर रहे हैं। उस संस्थान को रिक्त पदों की जानकारी Online Portal पर देनी अनिवार्य होगी।
ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया