‘लोकतंत्र की हत्या करने वाले कूड़ेदान में…’ – आपातकाल के बाद अटल बिहारी वाजपेयी का रामलीला मैदान वाला भाषण

जनता का चिर-परिचित अंदाज में अभिवादन करते अटल बिहारी वाजपेयी

1975 से लेकर 1977 के बीच देश की जनता ने लोकतंत्र का सबसे भयावह दौर देखा। जब देश की मर्ज़ी के खिलाफ़ देश के लोगों पर आपातकाल थोप दिया गया था। भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी और तमाम नेताओं व समाजसेवियों को जेल में ढूँस दिया गया था। फिर जनता ने ‘आपातकाली’ इंदिरा सरकार को हटा कर नई सरकार चुनी।

तब राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान में लाखों लोगों की जनसभा हुई थी। उसमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी ने आपातकाल लगाने वाली सरकार की खुल कर आलोचना की थी। अपने भाषण में उन्होंने कहा था कि जनता अनुशासन थोपने वाली सरकार नहीं चाहती है। इसके अलावा उन्होंने अपने भाषण में कई उल्लेखनीय बातें भी कही थीं।  

अटल बिहारी वाजपेयी ने भीड़ को संबोधित करते हुए अपना भाषण शुरू किया था। उन्होंने भाषण में कहा कि अनेक वर्षों से हमने एक सपना पाला था। अपने हृदय में एक अरमान जगाया था। उस सपने को सत्य में बदलने के लिए हम लगातार जूझते रहे, संघर्ष करते रहे। अब जाकर वह सपना साकार होता दिखाई दे रहा है। देश में जो कुछ हुआ, उसे केवल चुनाव नहीं कह सकते हैं। एक शांतिपूर्ण क्रांति हुई है, लोक शक्ति की लहर ने लोकतंत्र की हत्या करने वालों को इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिया है।    

इसके बाद अटल जी ने कहा जिनके मन में लोकतंत्र के लिए अटूट निष्ठा है, जो सामाजिक समता और आर्थिक बराबरी में विश्वास करते हैं, उन्हें जनता ने सेवा का मौक़ा दिया है। हम दिल्ली की जनता के आभारी हैं, जिसने दिल्ली की सारी सीटें कॉन्ग्रेस के हाथों से छीन कर जनता पार्टी को सौंप दी हैं। देश के और भागों में भी जनता ने असंदिग्ध निर्णय दिया है। याद है आपको, मैं चुनावों की सभा में कहा करता था कि सत्तारुढ़ दल के लोग पूछते हैं हमारा प्रधानमंत्री कौन होगा।    

फिर अटल जी ने कहा कि सत्ताधारी दल के लोग कहते हैं कि उन्होंने अपना प्रधानमंत्री चुन लिया है। वह कोई और नहीं बल्कि इंदिरा गाँधी होंगी। मैं पूछा करता था अगर श्रीमती इंदिरा गाँधी रायबरेली से हार गईं तो क्या होगा? अंततः वह हार गईं और हमने अपना प्रधानमंत्री निर्वाचित कर लिया।

लेकिन जैसा हमने पहले स्पष्ट किया था कि हमारी लड़ाई कुर्सी की लड़ाई नहीं है। हमारे लिए यह शुरू से ही सिद्धांतों की लड़ाई रही है और हमने इसे वैसे ही लड़ा है। हमें प्रसन्नता है कि जनता ने इस संघर्ष की गंभीरता को पहचाना और दो टूक फैसला दिया। जनता ने हमें बड़ी ज़िम्मेदारी दी है, हम प्रार्थना करते हैं कि वह हमें शक्ति दें और हम अपने कर्तव्य का निर्वहन कर सकें।    

इसके बाद अटल जी ने कहा जनता ने सिर्फ हमें ही ज़िम्मेदारी नहीं दी है। बल्कि अपने ऊपर भी ज़िम्मेदारी ले ली है। वोट देकर काम ख़त्म नहीं होता है बल्कि एक नया काम शुरू होता है। जिन्होंने अनुशासन के नाम पर ज़्यादती की थी उनका तो सफ़ाया हो गया। पर अनुशासन की ज़रूरत अभी भी बनी हुई है।

अंतर केवल इतना है कि हमारा अनुशासन ऊपर से थोपा नहीं जाएगा, आत्मानुशासन होगा। जनता ने जो जागरूकता चुनाव में दिखाई है, वही उसे दिन प्रतिदिन के जीवन में दिखानी होगी। समाज का कोई वर्ग इस आँधी से अछूता नहीं रहा है। देश के हर वर्ग, समुदाय और समूह के लोगों ने हमारा साथ दिया है।        

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया