कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के दो साल पूरे होने पर बीएस येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के ऐलान के बाद शुरू हुई हलचल अब शांत है। मंगलवार (जुलाई 27, 2021) शाम हुई विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री पद के लिए बसवराज बोम्मई का नाम सर्वसम्मति से पास कर दिया है।
कहा जा रहा है कि बैठक में स्वयं बीएस येदियुरप्पा ने ही इस नाम का प्रस्ताव रखा और फिर बाकी नेताओं ने इस पर सहमति दी। इससे पहले बसवराज, येदियुरप्पा सरकार में गृह मंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। बुधवार यानी 28 जुलाई को वह 3 बजकर 20 मिनट पर सीएम पद की शपथ लेंगे।
https://twitter.com/ANI/status/1420032190713323521?ref_src=twsrc%5Etfwबता दें कि बसवराज के पिता एस आर बोम्मई भी राज्य में मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। वहीं बसवराज ने भी जनता दल के साथ राजनीति की शुरुआत की थी। साल 1998 और 2004 में वह धारवाड़ से दो बार विधान परिषद के लिए चुने गए। लेकिन साल 2008 में वह भाजपा में शामिल हो गए और इसी वर्ष उन्होंने हावेरी जिले के शिगगाँव से विधायक पद पर जीत हासिल की।
28 जनवरी 1960 को जन्मे बसवराज बोम्मई फिलहाल कर्नाटक के गृह मंत्री हैं। उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन की हुई है। राज्य में कई सिंचाई प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिए उनकी तारीफ होती रही है। इसके अलावा वह येदियुरप्पा के करीबी माने जाते हैं।
उल्लेखनीय है कि कर्नाटक में दो साल सरकार चलाने के बाद मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने एक कार्यक्रम में ऐलान किया था कि वह अपना सीएम का पद छोड़ रहे हैं। हालाँकि आज उन्होंने बोम्मई का नाम पास होने पर कहा, “हमने सर्वसम्मति से बसवराज एस बोम्मई को भाजपा विधायक दल का नेता चुना है। मैं पीएम मोदी को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद देता हूँ। पीएम के नेतृत्व में वह (बोम्मई) कड़ी मेहनत करेंगे।”
https://twitter.com/ANI/status/1420037769825456134?ref_src=twsrc%5Etfwगौरतलब है कि केंद्र की कॉन्ग्रेस सरकार ने एसआर बोम्मई की सरकार को 21 अप्रैल 1989 को संविधान के अनुच्छेद 356 के अंतर्गत कर कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। उन्हें बहुमत साबित करने का भी मौका नहीं दिया गया था। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। एसआर बोम्मई बनाम भारत सरकार नाम से मशहूर इस मामले में 1994 में शीर्ष अदालत का फैसला आया था। इसमें अदालत ने उनकी सरकार की बर्खास्तगी को अनुचित बताया था। कहा था कि उन्हें बहुमत साबित करने का अवसर मिलना चाहिए था। इसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 356 लागू करने में केंद्र सरकार की मनमानी शक्ति को सिमित करने के लिए कई शर्तें जोड़ी थी।