‘तेज रफ्तार’ पर राष्ट्रवाद भारी, बिहार की बाज़ी एनडीए ने पलटी

बिहार में एक चुनावी सभा के दौरान जुटी जनता

तेज रफ्तार, तेजस्वी सरकार। यह राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन का नारा है। इसी गठबंधन का वादा है कि सरकार बनते ही 10 लाख सरकारी नौकरी मिलेगी। इसे कई राजनीतिक विश्लेषक मास्टरस्ट्रोक भी मानते हैं।

पहला चरण: नीतीश कुमार से नाराजगी पड़ी भारी

28 अक्टूबर को बिहार विधानसभा की 71 सीटों पर वोट डाले गए थे। ये सीटें राजद के दबदबे वाली मानी जाती हैं। हालाँकि, 2010 में जब बीजेपी और जदयू साथ थे तो उन्हें इन 71 सीटों में 61 पर जीत मिली थी। 2015 में जदयू जब राजद के साथ चली गई तो महागठबंधन को 53 सीटें मिली और तत्कालीन एनडीए केवल 14 सीटों पर सिमट गई थी।

यानी, इन सीटों पर जदयू जिधर होती है, पलड़ा उधर झुक जाता है। लेकिन, इस बार इन सीटों पर नीतीश कुमार को लेकर भारी नाराजगी साफ दिख रही थी। बालू खनन बंद होने से भी लोग नाराज थे। पलायन और रोजगार बड़ा मुद्दा बनता दिख रहा था। लोजपा के अलग होने से कागजों पर भी एनडीए के समीकरण उलझे हुए थे। 71 में से 42 सीटों पर लोजपा ने उम्मीदवार दिए थे। भोजपुर, बक्सर और मगध की कुछ सीटों पर विपक्षी गठबंधन को वामदलों के साथ होने का फायदा भी हो रहा था। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के ‘हम’ का साथ होना एनडीए के लिए इस तरह का कोई प्रभाव पैदा नहीं कर रहा था।

ऐसे माहौल में मतदान से ठीक पहले मुंगेर में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान श्रद्धालुओं पर बल प्रयोग हुआ। इन सब फैक्टर का असर इन सीटों के मतदान पर भी दिखा। इन जगहों पर मतदान के बाद भी राजद के नेतृत्व वाला गठबंधन एनडीए पर भारी दिख रहा था। बीजेपी से जुड़े सूत्रों ने ऑपइंडिया को बताया कि उनके इंटरनल सर्वे में भी पहले चरण की 71 सीटों से मिले ​फीडबैक बेहद निराशाजनक हैं।

दूसरे चरण में पलटी बाजी

इस चरण में 3 नवंबर को 94 सीटों पर मतदान हुआ। पहले चरण के मतदान के बाद मिले फीडबैक के बाद एनडीए ने नए सिरे से रणनीतियों पर अमल करना शुरू किया। मुंगेर पर डैमेज कंट्रोल की कवायद शुरू हुई। फ्रांस में इस्लामी कट्टरपंथी घटना और मथुरा की एक मंदिर में नमाज पढ़ने के मामले ने पलायन और रोजगार के चर्चे को नेपथ्य में धकेल दिया। विंग कमांडर अभिनंदन की रिहाई पर पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ के खुलासे ने भी मोदी सरकार की छवि मजबूत करने का काम किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सभाओं के बाद राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, ईसाई धर्मांतरण जैसे मसले चर्चा के केंद्र में आ गए।

मसलन, मुस्लिम बहुल केवटी, बिस्फी और जाले के समीकरणों का प्रभाव मधुबनी और दरभंगा की सभी 20 विधानसभा सीटों पर हो रहा है। खासकर, जाले से कॉन्ग्रेस द्वारा मस्कूर अहमद उस्मानी को प्रत्याशी बनाने का मतदाताओं के बीच सही संदेश नहीं गया। इसके अलावा इन इलाकों में ओवैसी के चुनावी कार्यक्रमों ने भी एनडीए के पक्ष में मतदाताओं को गोलबंद करने में निर्णायक भूमिका निभाई। ये दोनों ऐसे जिले हैं जहाँ मजहबी कट्टरपंथ का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। ‘दरभंगा मॉड्यूल’ तो राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहा है। इसके अलावा ईसाई मिशनरियाँ भी प्रभाव बढ़ा रही हैं। भले धर्मांतरण को लेकर लोग फिलहाल उतने मुखर नहीं हैं, लेकिन मजहबी कट्टरपंथ के खतरे के खिलाफ यहाँ के लोग अब खुलकर बोलने लगे हैं।

इसका सीधा फायदा एनडीए खासकर बीजेपी को हो रहा है। इसने महादलितों और अतिपिछड़ों के बीच नीतीश कुमार के कमजोर होते आधार को भी रोकने का काम किया है। विपक्ष को कई सीटों पर पप्पू यादव की जाप और ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट (जिसमें उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी, असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम, बसपा, समाजवादी जनता दल लोकतांत्रिक सहित 6 पार्टियाँ शामिल हैं) के उम्मीदवारों ने भी नुकसान पहुॅंचाया है।

इन सबका ही असर है कि ​कुछ दिन पहले तक जिन सीटों पर एनडीए उम्मीदवारों की हार तय लग रही थी, मतदान के बाद अब उनकी जीतने की चर्चा जमीन पर अचानक से होने लगी है।

तीसरा चरण निर्णायक

7 नवंबर को तीसरे और आखिरी चरण में 78 सीटों पर वोट डाले जाएँगे। इनमें ज्यादातर सीटें सीमांचल और कोसी की हैं। साथ ही तिरहुत और मिथिलांचल की बची हुई सीटों पर भी वोट डलेंगे। कोसी और सीमांचल की सीटों पर अल्पसंख्यक, महिला और प्रवासी वोटरों का सबसे ज्यादा असर होगा। सीमांचल की तो कई सीटों पर 50 फीसदी से ज्यादा अल्पसंख्यक वोटर हैं। पर एनडीए के लिए राहत की बात यह है कि इन सीटों पर ओवैसी फैक्टर के साथ-साथ हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का मुद्दा भी काम कर रहा है। इन 78 सीटों में से 58 ऐसी हैं, जहाँ पिछली बार पुरुषों से अधिक महिलाओं ने वोट डाला था। अच्छी बात यह है कि महिलाओं खासकर, ग्रामीणों महिलाओं के बीच नीतीश कुमार की लोकप्रियता अब भी बनी हुई है। इस चरण में भितरघात और बगावत भी कई सीटों पर विपक्ष का सिरदर्द है।

इस्लामी कट्टरपंथ के खिलाफ गोलबंदी का ही असर है कि कई सीटों पर राजद का माई समीकरण भी अब दरकता दिख रहा है, जबकि शुरुआत में यह वर्ग राजद के पक्ष में काफी मुखर और लामबंद दिख रहा था। इनको लग रहा था कि सत्ता में प्रभाव में लौटने का यही मौका है और तेजस्वी यादव की ताजपोशी तय है। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ा माहौल बदलने लगा। जैसा कि रतनपुर के विशेषचंद्र कुमार कहते हैं, “हिंदुत्व को मिटाने में सभी नेता लगा हुआ है। मुस्लिम जिस भी गाँव में है हिंदू की बहू-बेटी का इज्जत भी नहीं छोड़ रहा है। आतंकवादी, गुंडा को राज दीजिएगा तो वो क्या करेगा। वो औरंगजेब जैसा करेगा। सब जानते हैं कि मोदी जी के आने के बाद देश का, समाज का, सबका विकास हुआ है।”

असल में मतदाताओं पर मोदी का यही प्रभाव बिहार में एनडीए की उम्मीदों का पतवार है।

अजीत झा: देसिल बयना सब जन मिट्ठा