बिहार में आरक्षण बढ़ कर हुआ 75%, राज्यपाल ने विधेयक को दी मंजूरी: नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में होगा लागू

बिहार के राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (फोटो साभार: NBT/Jagran)

बिहार के राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर ने 75 प्रतिशत आरक्षण वाले विधेयक को मंजूरी दे दी है। इस विधेयक के तहत बिहार में सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का कोटा 60 से बढ़ाकर 75 प्रतिशत कर दिया गया है। इस विधेयक को बिहार विधानसभा ने 13 अक्टूबर, 2023 को पारित किया था। इसके बाद, इसे राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था। राज्यपाल ने इस विधेयक पर 21 नवंबर, 2023 को हस्ताक्षर किए।

आरक्षण विधेयक को राज्यपाल के स्तर से मंजूरी मिलने के बाद गैजेट जारी कर दिया गया है। इस विधेयक को मंजूरी दिए जाने के बाद, बिहार में सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का कोटा 75 प्रतिशत हो गया है, जिसमें आरक्षित वर्ग के लोगों को 65 फीसदी और 10 फीसदी आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को आरक्षण मिलने का रास्ता साफ हो गया है।

बिहार में अब आरक्षण की सीमा 75 प्रतिशत

अब तक पिछड़ा-अति पिछड़ा वर्ग को 30 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा था, लेकिन नए कानून के तहत इस वर्ग को 43 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलेगा। इसी तरह, पहले अनुसूचित जाति (SC) वर्ग को 16 प्रतिशत आरक्षण था, अब 20 प्रतिशत मिलेगा। अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग को पहले एक प्रतिशत आरक्षण था, जो बढ़कर दो प्रतिशत हो गया है। केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लिए दी गई 10 प्रतिशत आरक्षण की सीमा बनी रहेगी। इस तरह से कुल आरक्षण की सीमा अब 75 प्रतिशत तक पहुँच चुकी है।

हालाँकि, इसे लागू कैसे किया जाएगा, इस को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। इस अधिनियम को लागू करने की राह में कई दिक्कतें हैं। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50% तय की है। इसके ऊपर आरक्षण को बढ़ाना संवैधानिक रूप से चुनौतीपूर्ण है।

दरअसल, 1992 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने इंदिरा साहनी केस के फैसले में तय किया था कि आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती है। मंडल कमीशन की सिफारिश पर अमल के फैसले के खिलाफ इंदिरा साहनी की अपील पर यह फैसला आया था। फिलहाल तमिलनाडु ही देश का ऐसा इकलौता राज्य है, जहाँ 69 प्रतिशत आरक्षण लागू है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी फैसले के आधार पर मराठा और जाट आरक्षण को 50 फीसदी की सीमा को लाँघने वाला बताकर खारिज कर दिया था।

इस विधेयक को लेकर बिहार में काफी विवाद हुआ था। विपक्षी पार्टियों ने इस विधेयक को असंवैधानिक बताया था। उन्होंने कहा था कि यह विधेयक बिहार में जातिवाद को बढ़ावा देगा। हालाँकि, सरकार ने इस विधेयक को मंजूरी देकर यह स्पष्ट कर दिया है कि वह पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया