बाबरी मस्जिद तोड़ने, अल्पसंख्यकों को ‘फोड़ने’ और गोडसे वाली शिवसेना पर सोनिया गाँधी से 8 सवाल

कॉन्ग्रेस, एनसीपी के भरोसे पर शिवसेना बना रही सरकार (फ़ाइल फोटो)

महाराष्ट्र में सत्ता को लेकर चली लम्बी खींचतान उस वक़्त ख़त्म हुई जब सूबे में सरकार बनाने के लिए शिवसेना, एनसीपी और कॉन्ग्रेस एक हो गए। शिवसेना के नेतृत्व में बनने वाली सरकार को समर्थन देने के लिए दोनों दलों ने अपनी-अपनी कुछ शर्तों के साथ हामी भर दी। महाराष्ट्र में एक त्रिशंकु सरकार का खाका भी तैयार हो गया।

शिवसेना जिस कॉन्ग्रेस और एनसीपी के समर्थन से सरकार बनाने जा रही है वह तो हमेशा से उनके छद्म सेकुलरिज्म के खिलाफ राजनीति करती रही। शिवसेना संस्थापक बालासाहेब खुद हिंदुत्व के प्रबल पक्षधर थे। उनके बेटे और मौजूदा शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने भी कभी ऐसी छवि से इनकार नहीं किया। हालाँकि, जबसे महाराष्ट्र में सरकार बनाने की कवायद में तीनों पार्टियाँ एक मंच पर आईं तो इनके सुर ही बदल गए। अब कॉमन मिनिमम प्रोग्राम की बात होती है। हिन्दू आतंकवाद जैसे शब्द गढ़ने वाली कॉन्ग्रेस शिवसेना को सेक्युलर साबित करने में जुट गई है।

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इन्ही बातों को लेकर एक ट्विटर यूज़र ने अपने सिलसिलेवार ट्वीट से इन पार्टियों के बदलते हुए सुर को लेकर कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ साझा कीं। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उद्धव ने गोडसे की तारीफ करते हुए कहा था कि “जो गोडसे में विश्वास नहीं रखता उन्हें सरे-आम पीट देना चाहिए” मगर जबसे महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए यह गठबंधन बना, कॉन्ग्रेस यह दर्शाने में जुट गई है कि शिवसेना तो अपने स्वभाव से बेहद सेक्युलर है, उसने तो बस मराठी अस्मिता के लिए जंग लड़ी है।

महाराष्ट्र में तीन पार्टियों का महाअघाड़ी गठबंधन सरकार बनाने जा रहा है इसमें दो पार्टियाँ ऐसी हैं जो खुदको सेक्युलर कहती आई हैं। वहीं एक पार्टी शिवसेना है जिसपर कॉन्ग्रेस, एनसीपी जैसे दल कम्युनल का ठप्पा लगाते आए हैं लेकिन अब यही पार्टी राज्य में इनके गठबंधन की सरकार का नेतृत्व करेगी।

शिवसेना के नेता संजय राउत ने बयान दिया था “मुस्लिमों का मताधिकार छीन लेना चाहिए”- वही मुस्लिम, जिन्हें कॉन्ग्रेस पार्टी और उसके जैसे दलों ने वोट बैंक बनाकर सत्ता में रहने के लिए भरपूर इस्तेमाल किया और समय-समय पर इस करतूत को ढँकने के लिए सेक्युलर शब्द उठा लिया।

राउत ने शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के सम्पादकीय में कहा था कि जो भी गोडसे से नफरत करते हैं, वह ज़रूर इशरत से मोहब्बत करते हैं। सामना के सम्पादकीय में लिखा था कि गोडसे के स्मारक की जगह क्या इशरत का स्मारक बनाया जाए? @TweetinderKaul हैंडल वाले इस ट्विटर यूजर ने ट्वीट कर कहा कि सोनिया गाँधी से इस बात को लेकर भी सवाल होना चाहिए। बता दें कि सोनिया वर्तमान में उस कॉन्ग्रेस पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष हैं जिसके भरोसे पर शिवसेना सरकार बनाने जा रही है।

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यूज़र ने ज़िक्र किया कि 1991 में भाजपा-शिवसेना गठबंधन के लिए प्रचार करते वक़्त बालासाहेब ने खुलकर नाथूराम गोडसे का समर्थन किया था। उन्होंने कहा था कि “नाथूराम ने महात्मा गाँधी को उनके विश्वासघात के लिए मारा था, वह कोई भाड़े का शूटर नहीं था”

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शिवसेना का नाता बाबरी विध्वंस से भी जोड़ा जाता रहा है। एक समय बालासाहेब ने खुद इसका श्रेय अपनी पार्टी के शिवसैनिकों को दिया था, इस पर भी संजय राउत का एक बयान शेयर करते हुए अपने ट्वीट में निखिल ने शिवसेना के उस दौर की याद दिलाई जब बाल ठाकरे जीवित थे। मीडिया की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए निखिल मेहरा नामक इस ट्विटर यूज़र ने बताया कि शिवसेना ने बाबरी मस्जिद को 17 मिनट में ही ध्वस्त कर दिया था। यह बयान संजय राउत ने दिया था और उन्होंने कहा था, “हमने बाबरी मस्जिद को 17 मिनट में ध्वस्त कर दिया था मगर मोदी सरकार मंदिर बनाने में इतना समय क्यों लगा रही है।”

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जिन सेक्युलर पार्टियों के गठबंधन में शिवसेना शामिल हुई वह बाबरी विध्वंस को सही नहीं मानतीं। आज की शिवसेना की तुलना बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना से करते हुए ट्विटर यूज़र ने बताया कि बालासाहेब ठाकरे ने ढाँचा तोड़े जाने की घटना पर जमकर तारीफ की थी। वहीं इसी घटना के लिए सेक्युलर कॉन्ग्रेस ने अपने एक प्रधानमंत्री को उचित सम्मान तक नहीं दिया। वही कॉन्ग्रेस आज शिवसेना को सरकार बनाने के लिए महाराष्ट्र में गठबंधन को समर्थन देने जा रही है।

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इतना ही नहीं! ट्विटर यूज़र ने उस खबर को भी शेयर किया जिसमें शिवसेना ने बुर्का बैन की माँग की थी।

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कॉन्ग्रेस पार्टी अगर खुद को नैतिक साबित करती है तो वह उस शिवसेना को समर्थन कैसे दे सकती है जो उसके एजेंडे के उलट राष्ट्रवाद की बात करती है। एक अन्य ट्वीट में @TweetinderKaul ने उस मीडिया रिपोर्ट का ज़िक्र भी किया जिसमें लिखा है कि शिवसेना ने आरएसएस और भाजपा को राष्ट्रवाद पर सुदृढ़ रहने की नसीहत दी। इस सब को देखते हुए लगता है कि पिछले कई सालों से हार का मुँह देख रही कॉन्ग्रेस पार्टी अब सत्ता की चाहत में कुछ भी करने पर उतर आई है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया