43 साल पहले इंदिरा गाँधी से की थी बगावत, 2019 में ‘चेले’ ने ही बुरी तरह हराया: हिन्दू नहीं, इस धर्म को मानते हैं कॉन्ग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे

1979 में मल्लिकार्जुन खड़गे ने इंदिरा गाँधी से कर दी थी बगावत (फाइल फोटो)

कॉन्ग्रेस पार्टी को 24 साल बाद गाँधी परिवार से अलग मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun kharge) के रूप में नया अध्यक्ष मिला है। अध्यक्ष पद के चुनाव में खड़गे को कुल 7897 वोट मिले। वहीं, उनके प्रतिद्वंद्वी शशि थरूर (Shashi Tharoor) को सिर्फ 1072 वोट मिले। इस चुनाव में कुल 9385 नेताओं ने वोट डाले थे, जिनमें से 416 वोट रद्द हो गए।

नतीजे से पहले ही शशि थरूर ने कहा कि अध्यक्ष पद के चुनाव में अनियमितता हुई है और यह फ्री और फेयर नहीं था। मधुसूदन मिस्त्री को लिखे खत में थरूर ने कहा कि उत्तर प्रदेश में चुनाव के संचालन में अत्यंत गंभीर अनियमितताएँ सामने आईं। थरूर ने खड़गे के समर्थकों पर यूपी में चुनाव के दौरान अनाचार में लिप्त रहने का आरोप लगाया। यह पत्र अब सामने आया है।

हालाँकि, चुनाव में हार के बाद शशि थरूर मल्लिकार्जुन खड़गे के घर पहुँचे और उन्हें बधाई दी। इस दौरान थरूर ने खड़गे से कहा, “मैं उम्मीद करता हूँ कि खड़गे इस जिम्मेदारी को निभाने में सफल होंगे।” वहीं, सचिन पायलट और तारिक अनवर भी खड़गे के घर पहुँचकर उन्हें बधाई दी। इस चुनाव में खड़गे को 90 प्रतिशत वोट मिले हैं।

पार्टी अध्यक्ष पद का नतीजा सामने आने के बाद पार्टी नेता और ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पर निकले राहुल गाँधी (Rahul Gandhi) का भी बयान आया है। राहुल गाँधी ने कहा, “मैं कॉन्ग्रेस अध्यक्ष की भूमिका पर टिप्पणी नहीं कर सकता। यह मल्लिकार्जुन खड़गे तय करेंगे कि मेरी भूमिका क्या रहेगी।” राहुल गाँधी ने कहा कि वे अब नए अध्यक्ष खड़गे को रिपोर्ट करेंगे। उन्होंने कहा कि कॉन्ग्रेस अध्यक्ष के पास सर्वोच्च अधिकार है।

थरूर द्वारा धाँधली के लगाए गए आरोपों पर राहुल गाँधी कहा, “कॉन्ग्रेस देश की अकेली पार्टी है, जिसने अध्यक्ष पद के चुनाव कराए। हम ही ऐसी पार्टी हैं, जिसमें चुनाव आयोग है और जिसके मुखिया टीएन शेषन जैसे व्यक्ति हैं। अगर चुनाव में धाँधली हुई है तो इस पर पार्टी का चुनाव आयोग निर्णय लेगा।”

कॉन्ग्रेस पार्टी के 137 साल के इतिहास में 6ठी बार अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ है। इससे पहले साल 1939, 1950, 1977, 1997 और 2000 में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुए थे। पार्टी में 22 वर्षों के बाद अध्यक्ष पद का लिए चुनाव हुआ है। वहीं, 24 साल बाद कॉन्ग्रेस को फिर से गैर-गाँधी परिवार का अध्यक्ष मिला है। इससे पहले अध्यक्ष बनने वाले गैर-गाँधी परिवार के अंतिम व्यक्ति सीताराम केसरी (Sitaram Kesari) थे।

मल्लिकार्जुन खड़गे साल 1972 में कर्नाटक के गुरमितकल सीट से विधायक का चुनाव लड़कर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने उसी सीट से लगातार 2008 तक चुनाव लड़े और जीते। खड़गे 32 साल तक एक ही सीट से चुनाव लड़कर लगातार 9 बार जीतने वाले संभवत: पहले नेता होंगे।

साल 1979 में खड़गे ने अपने राजनीतिक गुरु देवराज उर्स के साथ ही इंदिरा गाँधी से बगावत करके कॉन्ग्रेस से अलग हो गए थे। हालाँकि, 1980 के चुनाव में देवराज की पार्टी को सिर्फ एक सीट मिली। इसके बाद देवराज के साथ नेता वापस कॉन्ग्रेस में शामिल हो गए। इनमें मल्लिकार्जुन खड़गे भी थे।

मल्लिकार्जुन खड़गे को गाँधी परिवार का करीबी माना जाता है। अध्यक्ष पद के नामांकन से सिर्फ एक दिन पहले खड़गे का नाम अध्यक्ष पद के लिए सामने आया था। इससे पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की नाम की चर्चा थी, लेकिन वहाँ विधायकों के बगावत के बाद मामला बदल गया। बता दें कि चुनावों के दौरान खड़गे ने कहा था कि यदि पार्टी चलाने के लिए गाँधी परिवार से राय-मशविरा करना पड़ा तो इसमें कोई बुराई नहीं है और वे ऐसा करेंगे।

मल्लिकार्जुन खड़गे के बारे में एक और रोचक तथ्य ये है कि 2019 के जिस लोकसभा चुनाव में गुलबर्गा से उन्हें अपने राजनीतिक करियर की एकमात्र हार मिली, उसका कारण उनके ही एक चुनावी एजेंट थे। उन्हें हराने वाले भाजपा नेता उमेश जाधव कभी उनके कभी उनके इलेक्शन एजेंट हुआ करते थे। इससे पहले खड़गे को ‘सलिलदा सरदार’ कहा जाता था, अर्थात जिसने हार का मुँह नहीं देखा हो। वो खुद को बौद्ध धर्म का अनुयायी मानते हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया