आजादी के बाद पहली बार CPI हेडक्वॉर्टर में लहराएगा तिरंगा: पहले कहते थे ‘झूठी आजादी’, किया था भारतीय सेना को रक्तदान का विरोध

भारतीय सैनिकों के बलिदान के बावजूद वामपंथी नेता नहीं करते हैं चीन की आलोचना (फाइल फोटो)

स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार होने जा रहा है जब स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) के मौके पर प्रमुख वामपंथी दल CPI(M) अपने मुख्यालयों व दफ्तरों में राष्ट्रीय ध्वज फहराएगा। पार्टी ने निर्णय लिया है कि स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगाँठ पर कोलकाता के अलीमुद्दीन स्ट्रीट स्थित मुख्यालय के अलावा अन्य पार्टी दफ्तरों में तिरंगा फहराया जाएगा। लेफ्ट फ्रंट के नेता और विधायक सुजान चक्रवर्ती ने इस सम्बन्ध में आलाकमान को प्रस्ताव भेजा था।

पार्टी आलाकमान ने इस पर मुहर लगा दी है। उन्होंने बताया कि इस अवसर पर CPI(M) पूरे साल भर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करेगा और स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगाँठ पूरे धूमधाम के साथ मनाएगा। पार्टी आलाकमान हाल ही में पश्चिम बंगाल में मिली बुरी हार के पीछे का कारण जुटा रहा है और नेताओं से सुझाव माँग रहा है। 2011 तक वहाँ सत्ता में रहे वामपंथी दलों व उनके गठबंधन साथी कॉन्ग्रेस को इस साल हुए विधानसभा चुनावों में एक भी सीट नसीब नहीं हुई।

https://twitter.com/AninBanerjee/status/1424332198451171330?ref_src=twsrc%5Etfw

पूर्व केंद्रीय विदेश सचिव विजय गोखले ने अपनी पुस्तक ‘The Long Game: How the Chinese Negotiate with India’ में बताया है कि चीन किस तरह से भारत में अपना ‘घरेलू विपक्ष’ बनाने के लिए वामपंथी दलों में अपने करीबी तत्वों का इस्तेमाल करता रहा है। 2007-08 में भारत-अमेरिका परमाणु संधि को रुकवाने के लिए चीन ने ये चाल चली थी। उस वक़्त कई वामपंथी नेता इलाज के बहाने चीन की यात्रा करते थे।

हालाँकि, वामपंथी दलों के नेता इस बात को नकारते रहे हैं। ‘न्यूज 18’ के एक लेख में भाजपा के विदेश मामलों के प्रभारी विजय चौथैवेल ने लिखा है कि किस तरह जब बात देशहित और अंतरराष्ट्रीय वैचारिक साथियों की आई तो हमेशा से वामपंथी दलों ने देशहित को ताक पर रखा। 1939 में दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जब सोवियत संघ (USSR) और जर्मनी साथी थे, तब CPI ने हिटलर की आलोचना करने से इनकार कर दिया था।

इसके बाद जब 1941 में हिटलर ने USSR पर आक्रमण किया, मॉस्को ने भारतीय वामपंथियों को बताया कि असली युद्ध फासिज्म और ‘मित्र राष्ट्रों’ के बीच है। इसीलिए, उन्हें इस युद्ध में अंग्रेजों का समर्थन करने को कहा गया। विजय चौथवेल लिखते हैं कि इसके बाद अचानक से CPI हिटलर का विरोधी बन गया और उसने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ से भी दूरी बना ली। ग्रेट ब्रिटेन की कम्युनिस्ट पार्टी (CPGP) ने भी CPI को एक पत्र भेजा था।

इसमें उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ किसी भी प्रकार के विरोध को रोकने और युद्ध के लिए हथियारों व रसद के उत्पादन के लिए ट्रेड यूनियनों को एकजुट रखने का निर्देश दिया गया था। हैरी पोलिट के इस पत्र को तब भारत में अंग्रेजों के गृह सचिव रेगीनाल्ड मैक्सवेल ने वामपंथी नेताओं को सौंपा था। इसके बाद अंग्रेजों ने CPI नेताओं को जेल से छोड़ा, उन्हें ट्रेड यूनियनों का नियंत्रण लेने दिया और इसे कानूनी वैधता भी प्रदान कर दी।

उसी समय गंगाधर अधिकारी ने 1942 में ‘पाकिस्तान थीसिस’ पेश किया, जिसमें भारत के विभाजन का समर्थन किया गया। 1947 में आज़ादी मिलने के बाद भी CPI ने कभी इसे स्वीकार नहीं किया और पार्टी के वरिष्ठ नेता बीटी रणदिवे ने तब कहा था, “ये आज़ादी झूठी है।” 1959 में तब तिब्बत पर चीन अत्याचार कर रहा था, तब वामपंथी दलों ने चीन का समर्थन किया। उन्होंने दावा किया कि चीन तो तिब्बत को मध्यकालीन अंधकार से निकाल कर आधुनिकता की तरफ ले जा रहा है।

विजय चौथवेल लिखते हैं कि तिब्बत के विद्रोह को इन वामपंथी दलों ने भारत और अमेरिका की साजिश बताया था। 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान भी ये वामपंथी दल चीन के साथ थे और भारतीय जवानों को रक्तदान करने का विरोध कर रहे थे। केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री EMS नम्बूद्रीपद ने खुल कर चीन का समर्थन किया था। उन्होंने चीन की आक्रामकता व घुसपैठ को मानने से इनकार करते हुए उल्टा भारत को ही शांति से समझौता करने व की सलाह दी थी।

इसी तरह 2017 में जब डोकलाम विवाद हुआ तब भी इन वामपंथी दलों ने चीन की निंदा नहीं की। इन्होंने भारत से कहा कि वो भूटान को चीन के साथ सीमा समझौता करने दे और खुद अलग हट जाए। गाल्वम में जब भारतीय जवान बलिदान हुए, तब भी CPI(M) ने अपने बयान में चीन की आलोचना तक नहीं की। इसका सीधा अर्थ है कि हमेशा से वामपंथी दल अपने विदेशी आकाओं के इशारे पर नाचते रहे हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया