कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न, बिहार में पहली गैर-कॉन्ग्रेसी सरकार के थे मुख्यमंत्री: PM मोदी बोले – वो समाजिक न्याय के पुरोधा, जन्म-शताब्दी पर यह निर्णय गौरवान्वित करने वाला

बिहार के 11वें CM कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न (चित्र साभार: India Today)

देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न (मरणोपरांत) से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। पिछड़े वर्ग से आने वाले कर्पूरी ठाकुर बिहार के 11वें मुख्यमंत्री थे। वह दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे थे। वह बिहार के पहले गैर कॉन्ग्रेसी मुख्यमंत्री थे।

कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रसन्नता जताई है। उन्होंने ‘X’ (पहले ट्विटर) पर लिखा, “मुझे इस बात की बहुत प्रसन्नता हो रही है कि भारत सरकार ने समाजिक न्याय के पुरोधा महान जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है।

उन्होंने आगे लिखा “उनकी जन्म-शताब्दी के अवसर पर यह निर्णय देशवासियों को गौरवान्वित करने वाला है। पिछड़ों और वंचितों के उत्थान के लिए कर्पूरी जी की अटूट प्रतिबद्धता और दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ी है। यह भारत रत्न न केवल उनके अतुलनीय योगदान का विनम्र सम्मान है, बल्कि इससे समाज में समरसता को और बढ़ावा मिलेगा।”

कर्पूरी ठाकुर पिछड़ी मानी जाने वाली नाई बिरादरी से आते थे। वह बिहार के पिछड़े वर्ग से आने वाले दूसरे मुख्यमंत्री थे। वह पहले 1970 में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे और सोशलिस्ट पार्टी से सम्बन्ध रखते थे। वह वर्ष 1977 में देश से आपातकाल हटने के बाद भी बिहार के मुख्यमंत्री बने।

1924 में जन्मे कर्पूरी ठाकुर स्वतंत्रता सेनानी भी थे। उन्होंने सक्रिय तौर पर महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में भाग लिया था। उन्हें 26 महीने की जेल अंग्रेजी राज का विरोध करने के कारण काटनी पड़ी थी। वह 1952 से ही बिहार विधानसभा के सदस्य बन गए थे।

कर्पूरी ठाकुर ने मुख्यमंत्री रहते हुए बिहार में आरक्षण लागू किया था जिसमें 12% आरक्षण अति पिछड़ों और 8% आरक्षण पिछड़ों के लिए दिया गया था। इसके बाद बिहार में सत्ता को लेकर मचे बवाल के कारण उनका मुख्यमंत्री पद चला गया था।

बिहार के मुख्यमंत्री रहने से पहले वह शिक्षा मंत्री भी रहे थे। इस दौरान उन्होंने एक अहम निर्णय लेते हुए कक्षा 10 तक अंग्रेजी की शिक्षा की अनिवार्यता हटा दी थी। इसके पीछे उनकी सोच थी कि इससे बच्चों की शिक्षा में बाधा पड़ती है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया